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महाकाव्य की दृष्टि से जायसी के पद्मावत की समीक्षा कीजिए।

महाकाव्य की दृष्टि से जायसी के पद्मावत की समीक्षा कीजिए।
महाकाव्य की दृष्टि से जायसी के पद्मावत की समीक्षा कीजिए।

महाकाव्य की दृष्टि से जायसी के पद्मावत की समीक्षा कीजिए। 

भामह ने काव्यालंकार में लिखा है कि “महाकाव्य एक सर्गबद्ध रचना है, उसके चरित्र महान् होते हैं, उसमें सालंकार शिष्ट भाषा का प्रयोग होता है, सदाशयता होती है। उसमें नायक के अभ्युदय के साथ ही मन्त्र दूत प्रयाण आदि का सविस्तार वर्णन होता है। वह पंच संधियों से युक्त होता है। उसमें चतुर्वर्ग धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का विधान किया जाता है, अर्थ को प्रधान्य दिया जाता है। आचार्य दण्डी महाकाव्य के लक्षणों पर विचार करते हुए लिखा है-

“सर्ग-बन्धो महाकाव्यमुप्यते तस्य लक्षणम् ।

आशीर्नमस्क्रिया वस्तु निदे शो वापि तन्मुखम् ।।

आचार्य विश्वनाथ ने ‘साहित्य दर्पण’ ग्रन्थ में महाकाव्य के रूप का निरूपण इस प्रकार किया है-

(1) महाकाव्य की कथा सर्गबद्ध होती है। सर्गों की संख्या आठ से अधिक हो।

(2) इसका नायक धीरोदात्त गुणों से युक्त व्यक्ति होता है।

(3) शृंगार, वीर और शान्त में से कोई एक रस प्रधान होता है।

(4) वह नाटक की पंचसंधियों से समन्वित हो

(5) कथानक इतिहास प्रसिद्ध होना चाहिए।

(6) उसमें चतुर्वर्ग की प्राप्ति होना चाहिए अथवा किसी एक वर्ग की प्राप्ति हो ।

(7) उसमें आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक या वस्तु निर्देशात्मक मंगलाचरण होता है।

(8) महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चन्द्र, रात्रि, प्रातःकाल, पर्वत, ऋतु, वन, समुद्र, स्वर्ग, नगर, विवाह, युद्ध, यज्ञ आदि के भी वर्णन होने चाहिए।

पाश्चात्य लक्षण – इसी प्रकार पाश्चात्य चिन्तकों ने भी महाकाव्य के लक्षणों पर सविस्तार विचार किया है। अरस्तू ने ‘ट्रेजेडी’ और ‘एपिक’ की तुलनात्मक समीक्षा करते हुए महाकाव्य के लक्षणों पर विचार किया। उसकी दृष्टि में महाकाव्य में आदि से अन्त तक एक ही छन्द का प्रयोग होता है। उसमें आदि, मध्य और अन्त से युक्त कार्य की अन्विति होती है। इसके अतिरिक्त महाकाव्य में किसी गम्भीर पूर्ण एवं उदात्त कार्य की काव्यमय अनुकृति होती है। पाश्चात्य समीक्षकों ने विकसनशील और कलात्मक दो प्रकार के महाकाव्यों का उल्लेख किया है। ‘इलियट’ की ‘ओडेसी’ इसी प्रकार के विकसनशील महाकाव्य हैं। इसी प्रकार ‘पैराडाइज लास्ट’ कलात्मक महाकाव्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

पद्मावत का महाकाव्यत्व

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘जायसी ग्रन्थावली’ की भूमिका में पद्मावत के महाकाव्यत्व पर विचार करते हुए लिखा है- “प्रबन्ध क्षेत्र के भीतर दो सर्वश्रेष्ठ काव्य हैं-रामचरितमानस और पद्मावत- हिन्दी साहित्य का जगमगाता रत्न है।” इसी प्रकार डा० शम्भूनाथ सिंह ने लिखा है- “पद्मावत अलंकृत या साहित्यिक महाकाव्य है, अर्थात् उसकी रचना एक विशिष्ट कवि द्वारा परम्परा प्राप्त साहित्यिक शैली में हुई है। उसकी शैली में विकसनशील महाकाव्यों में प्राप्त होने वाले अनेक तत्व, अलौकिक और अति प्राकृत शक्तियों में विकास, अर्थात्मकता आदि वर्तमान है। “

(1) सुगठित कथानक – प्रबन्ध काव्य के लिये सर्वाधिक महत्व की वस्तु यह है कि उसका कथानक सुसंगठित तथा जीवन्त हो। ‘पद्मावत’ की कथावस्तु में यह दोनों गुण पूर्णरूपेण उपलब्ध होते हैं। ‘पद्मावत’ में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन तथा सिंहल की राजकुमारी पद्मिनी की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है। उसमें सम्पुर्ण कथानक को दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम खण्ड में प्रसिद्ध पद्मावती रानी की कहानी है और दूसरे खण्ड अलाउद्दीन के आक्रमण, रानियों के जौहर आदि का सफल वर्णन है। सम्पूर्ण कथानक 58 खण्डों में विभाजित किया गया है।

जायसी का सम्बन्ध निर्वाह अच्छा है। एक प्रसंग से दूसरे प्रसंग की श्रृंखला बराबर लगी हुई है। कथा प्रवाह खण्ड नहीं है। जैसा केशव की रामचन्द्रिका का है, जो अभिनय के लिए चुने हुए फुटकर पद्यों का संग्रह सी जान पड़ती है। जायसी में विराम आवश्यक हैं-जो कहीं-कहीं अनावश्यक हैं- पैर विवरण का लोप नहीं है, जिससे प्रवाह खंडित होता है।

(2) उदात्त नायक-प्रबन्ध काव्य का दूसरा प्रमुख तत्व नायक है। ‘पद्मावत’ का नायक रत्नसेन महाकाव्योचित गुणों से युक्त एक श्रेष्ठ नायक है। रत्नसेन में धीरोदात्त नायक के सभी गुण प्राप्त होते हैं। रत्नसेन दृढ़, प्रतिज्ञ, त्यागी, विनयी, स्वाभिमानी. क्षमा, शील, गम्भीर तथा शूर स्वभाव वाला एक आदर्श प्रेमी है।

(3) रसात्मकता और प्रभावान्विति रसात्मकता और प्रभावान्विति काव्यत्व की दृष्टि से महाकाव्य के अनिवार्य गुण पद्मावत में मुख्य रूप से रति भाव की व्यंजना हुई है, इसलिए इसमें शृंगार रस की प्रधानता है। लेकिन डा॰ शम्भूनाथसिंह का अभिमत है कि जायसी का लक्षय लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना करता था, इसीलिए पद्मावत में, उनकी विचारणा के अनुसार शान्त रस की प्रधानता है, वास्तविकता तो यह है कि जायसी ने कहीं-कहीं अलौकिक सत्ता की ओर संकेत किया है। प्रधानतः रत्नसेन और पद्मावती की ही कथा है, इसलिए शृंगार रस ही इस कृति का प्रमुख है। शृंगार रस के अन्तर्गत विप्रलम्भ शृंगार का चित्रण जायसी ने सफलता से किया है। नागमती का विरह वर्णन हिन्दी विप्रलम्भ शृंगार की एक अनमोल निधि है। पद्मावत का बारहमासा वियोग श्रृंगार का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

इस प्रकार रसात्मकता के अतिरिक्त प्रभावान्विति भी मिलती है। इस प्रभावान्विति में उद्वेग और अशान्ति मूलक तीव्रता और स्तब्ध करने वाली वेदना नहीं है, अपितु, शान्तिपूर्ण गम्भीरता और चिरस्थायी निर्मलता और पवित्रता है। जो पाठकों के चित्त को अभिभूत कर उन्हें असाधारण भाव लोक में पहुंचा देती है।

(4) उदात्त भाषा शैली – महाकाव्य में उदात्त भाषा-शैली एवं अलंकारिक योजना की गरिमा भी आवश्यक है। विद्वानों का कथन है कि पद्मावत में महाकाव्यों (संस्कृत, चरित काव्यों, अपभ्रंश) और मनसवी काव्यों के तत्वों का सुन्दर समावेश हुआ है। इसीलिए पद्मावत में इन तीनों प्रकार की शैलियों का समावेश है। जायसी की भाषा मुख्यतः ठेठ अवधी है। उसमें अवधी और पूर्वी हिन्दी का भी रूप मिलता है। ब्रज-भाषा और खड़ी बोली के रूप भी कई स्थलों पर आ गये हैं। शुद्ध अवधी की बोलचाल की भाषा का क्रिया का रूप सदा कर्ता के पुरुष, लिंग और वचन के अनुसार होता है परन्तु ठेठ अवधी की यह विशेषता है कि खड़ी बोली या बज-भाषा में चिन्ह सदा वर्तमानकालिक क्रिया के रूप में लगते हैं। कर्ता का रूप जेई, तेइ, केई में लिया जात है। जायसी भाषा में सूक्तियों का प्रयोग भी मिलता है जो वाक्चातुर्य और उक्ति- वैचित्र्य को भी प्रकट करती है-

“यह तन जारी छारि के कहाँ कि यन उड़ाय ।

अकु तेहि मारक उड़ि परों कंत घरे जहं पांव ।।”

सादृश्यमूलक अलंकारों में कवि ने उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक को लिया है। हेतूत्प्रेक्षा कवि को बहुत प्रिय है। ललाट का वर्णन करता हुआ कवि कहता है-

‘सहज किरनि जो सुरुज दिपाई देखि लिलार सोउ छपि जाई।’

व्यतिरेक अलंकार का भी दृष्टव्य है-

का सरिवरि तेहि देउ मयंकू चांद कलंकी, वह निकलंकू ।

औ चांद्रहि पुनि राहु गरासा। वह बिनु राहु सदा परगासा ।।

कवि ने सांगरूपक अलंकार की बड़ी सुन्दर योजना की है-

“जीव जल दिन-दिन जस घटा। भंवर छपान हंस परगटा ।।”

इस प्रकार भाषा अलंकार और शैली की दृष्टि से पद्मावत एक महान काव्य है। उसकी भाषा महाकाव्योचित लिए हुए है।

(5) महान उद्देश्य – महाकाव्य के लिए महान उद्देश्य का होना अनिवार्य है। देखा जाय तो पद्मावत में मादकता के सच्चे स्वरूप का उद्घाटन किया गया है जो प्रेम, उदारता, त्याग एवं उत्सर्ग की भावनाओं पर आधृत है उसका उद्देश्य महान है। मोक्ष प्राप्ति ही कवि का प्रधान उद्देश्य रहा है, क्योंकि वह लौकिक प्रेम के माध्यम से अलौकिक प्रेम की व्यंजना करना चाहता है।

डा० शिवसहाय पाठक ने इस प्रबन्ध काव्य की विशेषतायें निम्न प्रकार बतलाई हैं-

‘पद्मावत’ में प्रेम, उत्साह, वैराग्य, शोक, करुणा, भय आदि स्थायी भावों की गम्भीर अभिव्यंजना हुई है। वैविध्यपूर्ण मनोदशाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति और क्या अनुभूतियों की सच्चाई क्या अभिव्यक्ति की मर्मस्पर्शिता और प्रभुविष्णुता क्या प्रेम प्लावित भाव, क्या परमसत्ता के दर्शन के ले व्याकुलता और क्या तड़प जन्य प्राणशक्ति, सार्गिक अनुभूति तथा प्रियतम के दर्शन इत्यादि ने ‘पद्मावत’ में गुरुता, गम्भीरता और महाकाव्य के उपयुक्त महत्ता की प्राण प्रतिष्ठा की है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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