कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित या निर्धारित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting or Determining Price Elasticity of Demand)

माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित या निर्धारित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting or Determining Price Elasticity of Demand)
माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित या निर्धारित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting or Determining Price Elasticity of Demand)

माँग की मूल्य सापेक्षता को प्रभावित या निर्धारित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting or Determining Price Elasticity of Demand)

विभिन्न वस्तुओं की मांग की मूल्य सापेक्षता को भिन्न-भिन्न घटक प्रभावित करते हैं जिन्हें मोटे तौर पर निम्न चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(I) वस्तुनिष्ठ तत्त्व (Objective Factors) इनके अन्तर्गत वस्तुओं सम्बन्धी निम्न घटकों को शामिल किया जाता है-

(1) वस्तु का स्वभाव (Nature of Commodity)—(1) अनिवार्य वस्तुओं जैसे-गेहूं, चावल, नमक, ईंधन, दवाइयाँ आदि की माँग ‘मूल्य निरपेक्ष’ (Inelastic) होती है क्योंकि अनिवार्य आवश्यकताओं को अधिक समय तक असन्तुष्ट नहीं रखा जा सकता। सामान्यतः जीवनरक्षक तथा प्रतिष्ठादायक अनिवार्य वस्तुओं की कीमत में कमी या वृद्धि होने पर इनकी मांग में कोई विशेष वृद्धि या कमी नहीं होती। (15) आरामदायक वस्तुओं जैसे- कूलर, बिजली का पंखा, स्कूटर, फ्रिज आदि की मार बहुधा ‘मूल्य सापेक्ष’ (elastic) होती है। ऐसी वस्तुओं के अभाव में लोगों का काम चल सकता है। (iii) विलासिता की वस्तुक जैसे—महंगी कार, महँगी घड़ी, हीरे जवाहरात, एअर कण्डीशनर आदि की माँग ‘अधिक मूल्य-सापेक्ष’ (more elastic) होती है ऐसी वस्तुओं का प्रयोग अनिवार्य नहीं होता, वैसे इनके प्रयोग से मनुष्य का जीवन सुखमय हो जाता है।

(2) वस्तुओं की संयुक्त माँग (Goods of Joint Demand) जब किसी आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए दो या दो से अधिक वस्तुओं की मांग एक साथ की जाती है तो ऐसी वस्तुएँ संयुक्त मांग वाली वस्तुएँ कहलाती हैं, जैसे-कार व पैट्रोल पेन तथा स्याही, कैमरा के साथ फिल्म व सैल, डबल रोटी के साथ मक्खन, दूध के साथ चीनी आदि। ऐसी वस्तुओं के मामले में एक वस्तु की मूल्य सापेक्षता मुख्यतः दूसरी वस्तु की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करती है। संयुक्त मांग वाली वस्तुओं की माँग प्रायः एक ही दिशा में परिवर्तित होती है। उदाहरणार्थ, यदि कारों की कीमत में कमी होने से कार की मांग बढ़ जाती है तो पेट्रोल की मांग भी बढ़ जायेगी, चाहे पेट्रोल की कीमत स्थिर रहती है या उसमें थोड़ी वृद्धि हो जाती है।

(3) टिकाऊ वस्तुएँ (Durable Goods) – कार, स्कूटर, टेलीविजन आदि टिकाऊ वस्तुओं को एक बार क्रय करने के पश्चात् उपभोक्ता उन्हें पुनः खरीदने के लिए कुछ महीने या वर्षों तक नहीं आते। अतः ऐसी वस्तुओं की मांग प्रायः कम मूल्य सापेक्ष (less elactic) होती है।

(4) वस्तु की कीमत ( Price of Commodity)–बहुत ऊँची तथा नीची कीमतों पर वस्तु की मांग प्रायः मूल्य निरपेक्ष (inelastic) होती है। ऊंची कीमतों पर वस्तुओं को प्रायः धनी व्यक्ति खरीदते हैं, जैसे महंगी कार व घड़ियाँ, हीरे, जवाहरात आदि, जबकि नीची कीमतों पर निर्धन व्यक्ति, जैसे- माचिस, नमक, पोस्टकार्ड, सब्जियाँ आदि। ऐसी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन आने से इनकी माँग पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। मध्यम कीमतों पर ही वस्तुओं की माँग मूल्य सापेक्ष होती है।

(5) स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि (Availability of Substitutes)- यदि वस्तु ऐसी है कि उसकी अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हैं तो उसकी कीमत में थोड़ी सी वृद्धि होने पर भी उसकी माँग कम हो जायेगी, क्योंकि उसके स्थान पर अन्य वस्तुओं का प्रयोग किया जाने लगेगा, अतः उसकी माँग मूल्य सापेक्ष होगी। विभिन्न प्रकार के बॉल पेन, ब्लेड, कोल्ड ड्रिंक्स, नहाने के साबुन आदि स्थानापन्न वस्तुओं के उदाहरण हैं इसके विपरीत, जिन वस्तुओं की स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध नहीं होतीं उनकी मांग मूल्य निरपेक्ष होती है, जैसे नमक।

(6) अनेक उपयोगों वाली वस्तुएँ (Goods Having Various Uses)—जिन वस्तुओं का प्रयोग कई आवश्यकताओं की सन्तुष्टि में किया जा सकता है उनकी मांग अधिक मूल्य सापेक्ष (अधिक लोचदार) होती है, जैसे- दूध, आलू, चीनी, बिजली आदि की माँग। ऐसी वस्तुओं की कीमतों के बढ़ने पर उनकी मांग घट जाती है क्योंकि इनका प्रयोग मुख्यतः अधिक महत्वपूर्ण कार्यों में ही किया जायेगा, जबकि कीमतों के घटने पर इनका प्रयोग कम महत्वपूर्ण कार्यों में भी किया जायेगा, जबकि इनका प्रयोग कम महत्त्वपूर्ण कार्यों में भी किए जाने के कारण इनकी मांग बढ़ जाती है।

(7) उपभोग के स्वगन की सम्भावना (Possibility of Postponment of Consumption)-जिन वस्तुओं के उपभोग की भविष्य के लिए टाला (स्थगित) जा सकता है उनकी मांग लोचदार होती है, जैसे-गर्म कपड़े, टेलीविजन, फ्रिज, स्कूटर आदि की माँग किन्तु जिन वस्तुओं के उपभोग को स्थगित नहीं किया जा सकता उनकी मांग मूल्य निरपेक्ष (बेलोचदार) होती है, जैसे-खाधान्न, नमक, दवाइयों आदि।

(8) वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण (Marginal Utility of the Commodity)-जिन वस्तुओं का सीमान्त तुष्टिगुण तीव्रता से घटता है उनकी माँग मूल्य सापेक्ष होती है क्योंकि ऐसी वस्तुओं को एक सीमित मात्रा से अधिक नहीं खरीदा जा सकता।

(II) व्यक्तिनिष्ठ घटक (Subjective Factors)

(9) उपभोक्ता की आदतें (Habits of Consumer)-जिन वस्तुओं के उपभोग की उपभोक्ताओं को आदत पड़ जाती है उनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है, जैसे-पान, सिगरेट, गुटखा, चाय, शराब आदि की माँग ऐसी वस्तुओं की कीमत के बढ़ने पर भी उपभोक्ता इनके उपभोग में कमी नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त, इन वस्तुओं की कीमतों में कमी होने पर भी इनकी माँग में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती क्योंकि उपभोक्ता इनका उपभोग अपनी आदत के अनुसार ही करते हैं।

(10) उपभोक्ताओं की आर्थिक स्थिति (Economic Status of Consumers)- यदि किसी वस्तु का उपभोग केवल धनी वर्ग करता है तो उसकी माँग मूल्य-निरपेक्ष होगी क्योंकि कीमत में वृद्धि का उसकी मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा या नाममात्र का प्रभाव पड़ेगा। किन्तु गरीब व्यक्तियों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की माँग मूल्य सापेक्ष होगी क्योंकि कीमत में होने वाला थोड़ा-सा परिवर्तन भी निर्धन वर्ग के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। मध्यम वर्ग द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं की मांग प्रायः सोचदार होती है।

(11) उपभोक्ता के रहन-सहन का स्तर (Standard of Living of Consurners)-जिन वस्तुओं का उपभोग व्यक्ति-विशेष के रहन-सहन के स्तर का अंग बन जाता है उनके लिए उसकी मांग मूल्य निरपेक्ष (बिलोचदार) होती है क्योंकि कीमत में वृद्धि होने पर भी वह उनका उपभोग नहीं छोड़ पाता उदाहरणार्थ, एक शिक्षक के लिए कोट, पेंट, टाई व जूते की माग मूल्य-निरपेक्ष होगी किन्तु एक फल-विक्रेता के लिए इन वस्तुओं की माँग मूल्य सापेक्ष होगी, चाहे फल-विक्रेता की आय शिक्षक से अधिक ही क्यों न हो।

(12) वस्तु पर व्यय किया जाने वाला आव-अनुपात (Proportion of Income Spent on the Commodity) जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का थोड़ा भाग ही व्यय करता है उनकी माँग बेलोचदार या कम लोचदार होती है, जैसे नमक, दियासलाई, बूट-पालिश, सुई, धागा, समाचारपत्र, ब्लेड आदि की मांग ऐसी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने पर भी उपभोक्ताओं की माँग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो पाता। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं पर उपभोक्ता अपनी आय का अधिक या बड़ा भाग व्यय करते हैं उनकी मांग लोचदार होती है, जैसे-ऊनी कपड़े, फर्नीचर, टेलीविजन आदि ।

(13) कीमतों सम्वन्धी भावी अनुमान (Future Expectations regarding Prices) यदि उपभोक्ता यह अनुभव करते हैं कि किसी वस्तु की कीमत में भविष्य में पर्याप्त वृद्धि होगी तो वर्तमान में थोड़ी-सी कीमत-वृद्धि होने पर वे उसे अधिक मात्रा में खरीदेंगे। इसके विपरीत, यदि भविष्य में कीमत के घटने की आशा है तो उपभोक्ता अपनी खरीदारी कम या स्थगित कर देंगे।

(III) सामाजिक घटक (Social Factors)

(14) समाज में पन का वितरण (Distribution of Wealth in the Society)-धन का वितरण समान होने पर मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या अधिक होती है जिनकी माँग बहुधा मूल्य-सापेक्ष (लोचदार) होती है। इसके विपरीत, धन का वितरण असमान होने पर धनी व्यक्तियों की संख्या बहुत कम तथा निर्धन व्यक्तियों की संख्या बहुत अधिक होगी। सामान्यतः धनी तथा गरीब व्यक्तियों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं की माँग कम लोचदार होती है। धनी व्यक्तियों पर तो कीमत-वृद्धि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता जिस कारण उनकी मांग बेलोचदार होती है जबकि निर्धन व्यक्ति अनिवार्य वस्तुओं की ही पूर्ति कर पाता है।

(15) सामाजिक अनिवार्यता (Social Necessity)-जब कुछ वस्तुओं का उपयोग सामाजिक अनिवार्यता बन जाता है तो उनकी माँग येलोचदार हो जाती है, जैसे-शिक्षण संस्थाओं द्वारा विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रकार की यूनिफार्म का पहनना अनिवार्य कर देना, नेताओं द्वारा खादी पहनना आदि।

(16) राशन व्यवस्था (Rationing System)- जिन वस्तुओं के वितरण पर सरकार द्वारा राशनिंग व्यवस्था लागू कर दी जाती है उनकी माँग मूल्य निरपेक्ष (बेलोचदार) होती है। ऐसी वस्तुएं सभी उपभोक्ताओं को नियमानुसार निश्चित मात्रा में उपलब्ध करायी जाती हैं। अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन होने पर उनकी माँग में परिवर्तन नहीं होता।

(IV) अन्य तत्त्व (Other Factors)

(17) समय का प्रभाव (Effect of Time) मार्शल के मतानुसार वस्तुओं की मांग की मूल्य सापेक्षता पर समय का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः अल्पकाल में वस्तुओं की मांग बेलोचदार या कम लोचदार होती है जबकि दीर्घकाल में लोचदार होती है। अल्पकाल में माँग बेलोचदार इसलिए होती है क्योंकि (1) वस्तु की कीमत में होने वाली कमी या वृद्धि का प्रायः उपभोक्ता को तुरन्त पता नहीं चल पाता, (ii) अल्पकाल में उपभोक्ता कीमत परिवर्तन के साथ अपनी माँग को तुरन्त समायोजित (adjust) नहीं कर पाता, (iii) समयावधि जितनी कम होगी प्रतिस्थानापन्न पदार्थ उतने ही कम उपलब्ध हो पाते हैं क्योंकि इनके उत्पादन में समय लगता है। इसके विपरीत, दीर्घकाल में माँग लोचदार इसलिए होती है क्योंकि-(i) उपभोक्ता को कीमत- परिवर्तन का ज्ञान कुछ समय बाद हो पाता है। (ii) दीर्घकाल में वस्तु के प्रतिस्थानापन्न उपलब्ध होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं। (iii) कुछ समय के बाद अपनी माँग को कीमत परिवर्तन के साथ समायोजित कर लेते हैं।

(18) कीमत-स्तर (Price Level) किसी देश में वस्तुओं तथा सेवाओं के कीमत-स्तर का भी माँग की मूल्य सापेक्षता पर प्रभाव पड़ता है। देश में कुछ समय तक महँगाई के निरन्तर बढ़ने पर अनेक वस्तुओं की माँग मूल्य सापेक्ष (लोचदार) हो जाती है। वस्तुओं की कीमतों में निरन्तर कमी से भी रोजगार में लगे उपभोक्ताओं की माँग (मूल्य सापेक्ष) बढ़ जाती है। साथ ही यदि कीमतें इतनी अधिक कम हो जाती हैं कि पूर्ण तृप्ति की सीमा आ जाती है तो फिर माँग की लोच लुप्त होने लगती है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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