कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

माँग की मूल्य सापेक्षता का महत्त्व (Importance of Price Elasticity of Demand)

माँग की मूल्य सापेक्षता का महत्त्व (Importance of Price Elasticity of Demand)
माँग की मूल्य सापेक्षता का महत्त्व (Importance of Price Elasticity of Demand)

माँग की मूल्य सापेक्षता का महत्त्व (Importance of Price Elasticity of Demand)

माँग की मूल्य सापेक्षता के महत्व को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-(I) सैद्धान्तिक महत्त्व, तथा (II) व्यावहारिक महत्त्व|

[I) सैद्धान्तिक महत्त्व या लाभ (Theoretical Importance or Advantages) सैद्धान्तिक दृष्टि से ‘भाँग की मूल्य सापेक्षता की अवधारणा कई प्रकार से उपयोगी है- (1) कीन्स (Keynes] के विचार में माँग की मूल्य सापेक्षता का अध्ययन किए बिना हम कीमत, वितरण तथा कराधान सम्बन्धी अनेक सिद्धान्तों की विवेचना नहीं कर सकते। (2) माँग की मूल्य सापेक्षता (लोच) से हमें यह समझाने में सहायता मिलती है कि कीमत-परिवर्तन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में जो परिवर्तन हुए हैं उनका विभिन्न अवसरों पर विशेष परिस्थितियों में तथा समाज के विभिन्न वर्गों के लिए क्या महत्त्व है तथा उनसे रहन-सहन का स्तर किस प्रकार प्रभावित होता है। (3) माँग की मूल्य सापेक्षता से कीमत परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में हुए परिवर्तनों को गति तथा दिशा का ज्ञान होता है।

(II) व्यावहारिक लाभ (Practical Advantages)-माँग की मूल्य सापेक्षता के अनेक व्यावहारिक लाभ हैं जो निम्नलिखित हैं-

(1) कीमत निर्धारण में महत्त्व (Importance in Price Determination)-माँग की मूल्य सापेक्षता की अवधारणा किसी वस्तु के कीमत-निर्धारण में अत्यन्त सहायक होती है। प्रत्येक उत्पादक का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उत्पादक, विशेषकर एकाधिकारी (Monopolist) माँग की मूल्य सापेक्षता के ज्ञान के आधार पर यह अनुमान लगाते हैं कि वस्तु को किस कीमत पर बेचकर वे अधिकतम लाभ अर्जित कर सकेंगे—(1) यदि उनके द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग अधिक लोचदार है तो उनके लिए ऊंची कीमत तय करना लाभदायक नहीं रहेगा। (ii) इसके विपरीत, वस्तु की माँग के मूल्य निरपेक्ष (inelastic) होने पर वे ऊँची कीमत रखकर अधिकाधिक लाभ कमा सकेंगे।

(2) कीमत विभेद (Price Discrimination) –कीमत विभेद’ से तात्पर्य विभिन्न ग्राहकों या ग्राहकों के विभिन्न वर्गों या विभिन्न बाजारों में एक ही वस्तु के लिए भिन्न-भिन्न कीमतें वसूल करने से है कीमत विभेद उन्हीं दो क्रेताओं के वर्गों या बाजारों में सम्भव होता है जिनमें वस्तु की मांग की लोच भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरणार्थ, एकाधिकारी उन उपभोक्ताओं से अधिक कीमत वसूल करेगा जिनकी उस वस्तु के लिए माँग बेलोचदार है। इसके विपरीत, उन उपभोक्ताओं से कम कीमत वसूल करेगा जिनकी उस वस्तु के लिए मॉम लोचदार है। उदाहरणार्थ, घरों में उपभोग की जाने वाली बिजली की कीमत अधिक तथा उद्योगों के लिए कम रखी जाती है।

(3) संयुक्त पूर्ति वाली वस्तुओं का कीमत-निर्धारण (Price Determination of Joint Supply Products) – ‘संयुक्त पूर्ति वाली वस्तुएँ’ (joint supply products) ये वस्तुएँ होती है जिनका उत्पादन एक साथ होता है जैसे गेहूँ व भूसा, रुई व बिनीले चीनीशीरा, आदि। ऐसी वस्तुओं की उत्पादन लागत पृथक-पृथक ज्ञात नहीं की जा सकती। इसलिए इनकी कीमतों का निर्धारण उत्पादन लागत के आधार पर नहीं किया जा सकता। अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतों का निर्धारण उनकी माँग की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करता है। जिस वस्तु की मांग बेलोचदार होती है उसकी कीमत अधिक तथा जिस वस्तु की मांग लोचदार होती है उसकी कीमत कम रखी जाती है। इसी कारण गेहूं की कीमत अधिक तथा भूसे की कीमत कम होती है।

(4) साधन कीमत-निर्धारण में महत्व (Importance in Factor- Pricing) संयुक्त उत्पादन में से किस उत्पादन के साधन (भूमि, श्रम, पूंजीव संगठन को कितना पर मिलेगा यह उस साधन की मांग की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करता है। उत्पत्ति के उन साधनों को अधिक पुरस्कार दिया जाता है जिनकी मांग बेलोचदार होती है जबकि लोचदार माँग वाले साधनों को कम पुरस्कार दिया जाता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी उद्योग में श्रम की मांग अपेक्षाकृत बेलोचदार है तो श्रम की मजदूरी ऊँबी निर्धारित होगी, किन्तु बम की मांग के तीवदार होने पर मजदूरी कम तय होगी।

(5) वित्त मन्त्री के लिए महत्वपूर्ण (Important for Finance Minister)-कर लगाते समय वित्त मन्त्री वस्तुओं की मांग की मूल्य सापेक्षता को ध्यान में रखता है। (1) जिन वस्तुओं की मांग बेलोचदार (inelastic) है उन पर वित्त मन्त्री अधिक कर लगा सकता है। अधिक कर लगाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ेगी किन्तु उनकी मांग में कोई विशेष कमी नहीं होगी। अतः कर-राशि अधिक मात्रा में इकट्ठी सेगी यहाँ पर उल्लेखनीय है कि निर्धन वर्ग द्वारा क्रय की जाने वाली मूल्य निरपेक्ष मांग की अनिवार्य वस्तुओं पर कर लगाना या बढ़ाना न्यायोचित नहीं माना जाता (II) जिन वस्तुओं की माँग लोचदार (elastic) होती है उन पर अधिक कर लगाने से करों से प्राप्त होने वाली सरकारी आय बढ़ने के स्थान पर कम हो सकती है क्योंकि अधिक कर लगाने से करों से प्राप्त होने वाली सरकारी आय बढ़ने के स्थान पर कम हो सकती है क्योंकि अधिक कर लगाने से उनकी कीमतों में वृद्धि होगी जिस कारण माँग कम हो जाएगी। परिणामस्वरूप वांछित कर राशि इकट्ठा नहीं हो पाएगी। इस प्रकार माँग को मूल्य सापेक्षता’ की अवधारणा सरकार की कराधान नीति के निर्धारण में सहायक होती है।

(6) करों के भार का वितरण (Distribution of Tax Burden)-कर-भार या करापात (Incidence of tax) जानने में भी मांग की मूल्य सापेक्षता सहायक सिद्ध होती है। उदाहरणार्थ, इस अवधारणा द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि जप्रत्यक्ष करों (उत्पादन कर, विक्री कर आदि) का उपभोक्ताओं तथा उत्पादक पर कितना (burden) पड़ेगा। इन करें के कारण किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी मांग कम नहीं होगी। इसके विपरीत, यदि किसी वस्तु की माँग लोचदार है तो उपभोक्ताओं को अप्रत्यक्ष करों का मार अपेक्षाकृत कम उठाना पड़ेगा।

(7) रोजगार पर प्रभाव (Effect on Empolyment)-(1) जिन वस्तुओं की माँग लोचदार है उनकी कीमतों में कमी करके माँग में वृद्धि द्वारा रोजगार अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। इसके विपरीत, बेलोचदार माँग वाली वस्तुओं के उद्योगों में रोजगार बढ़ने के कम अवसर होते हैं। (ii) स्वचालित मशीनों (automatic machines) का रोजगार पर पड़ने वाला प्रभाव उन मशीनों द्वारा बनाई जाने वाली वस्तुओं की माँग को मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करता है। ऐसी मशीनों के प्रयोग से आरम्भ में बेरोजगारी बढ़ती है किन्तु वस्तुओं की कीमत कम हो जाती है। यदि मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुओं की माँग लोचदार है तो कीमत में कमी होने पर वस्तुओं की मांग बड़ेगी माँग के बढ़ने पर उत्पादन अधिक किया जाएगा जिससे अन्ततः रोजगार बढ़ेगा इसके विपरीत यदि मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुओं की माँग बेलोचदार है तो कीमत में कमी होने पर भी उनकी माँग में वृद्धि नहीं होगी जिस कारण उत्पादन भी नहीं बढ़ाया जाएगा। परिणामस्वरूप रोजगार में वृद्धि नहीं हो पाएगी।

(8) श्रम संघों के लिए महत्वपूर्ण- श्रम संघ अमिकों की मांग की लोच को ध्यान में रखकर सेवायोजकों (employers) से मिलकर श्रमिकों की मजदूरी तय करवाते हैं। जिन उद्योगों में श्रमिकों की सेवाओं की माँग कम लोचदार या बेलोच होती है उनके लिए अधिक मजदूरी निर्धारित कराई जा सकती है। इसके विपरीत, जिन उद्योगों में श्रमिकों की माँग लोचदार होती है उनमें मजदूरी कम रहती है।

(9) निर्धनता का विरोधाभास (Paradox of Poverty)-कुछ बेलोचदार माँग (inelastic demand) वाली वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होने पर भी उनसे प्राप्त होने वाली जाय नहीं बढ़ पाती बल्कि कई बार तो कम हो जाती है। इस अस्वाभाविक स्थिति को निर्धनता का विरोधाभास’ अथवा ‘प्रचुरता के मध्य निर्धनता’ (poverty among plenty) कहा जाता है। अधिकांश ऋषि-पदार्थों की मांग बलोचदार होती है। इनकी पूर्ति के अत्यधिक बढ़ने पर इनकी कीमतों में कमी हो जाती है किन्तु इनकी मांग में विशेष वृद्धि नहीं हो पाती, जैसे गेहूं की मांग परिणामस्वरूप इनकी बिक्री से प्राप्त कुल आय कम हो जाती है। इस कारण किसानों की कृषि उपज में अत्यधिक वृद्धि होने पर भी वे गरीब हो जाते हैं। इस प्रकार भांग की कीमत लोच की अवधारणा प्रचुरता के मध्य निर्धनता की अनोखी स्थिति को स्पष्ट करने में सहायक होती है।

(10) राष्ट्रीयकरण की नीति के लिए महत्त्व (Importance in the Policy of Nationalisation)-राष्ट्रीयकरण की नीति के अन्तर्गत सरकार निजी क्षेत्र के किसी उद्योग के स्वामित्व, नियन्त्रण तथा प्रबन्ध को अपने हाथ में ले लेती है। किस उद्योग अथवा सेवा का राष्ट्रीयकरण किया जाए यह निर्धारित करते समय सरकार ‘माँग की मूल्य सापेक्षता’ को ध्यान में रखती है। जिन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं की माँग खेलोचदार होती है, जैसे बिजली, पानी, रेलवे, टेलीफोन, आदि उनकी कीमत में बहुत अधिक वृद्धि की जा सकती है। यदि ऐसे उद्योग निजी क्षेत्र में रहते हैं तो निजी उद्यमी ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बहुत अधिक कीमत वसूल करके जनता का शोषण कर सकते हैं। अतः जनता को शोषण से बचाने के लिए सरकार ऐसे उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर देती है।

(11) परिवहन तथा बिजली कम्पनियों के लिए सहायक (Helpful for Transport and Electricity Companies) परिवहन कम्पनियों के लिए भी माँग की लोच की अवधारणा काफी उपयोगी सिद्ध होती है। रेलवे तथा अन्य परिवहन कम्पनियों विभिन्न वस्तुओं के माल-भाड़े की दरें निर्धारित करते समय उनकी परिवहन सेवाओं की मांग की लोच को ध्यान में रखती है। स्पष्टतया जिन वस्तुओं के लिए परिवहन सेवाओं की माँग बेलोवदार होगी उनके लिए भाड़े की दरें अधिक होगी। इसके विपरीत, जिनकी मांग अधिक लोचदार होगी उनके लिए माड़े की दरें कम तय की जायेंगी।

बिजली कम्पनियों भी बिजली (विद्युत) के विभिन्न प्रयोगों के लिए दरें तय करते समय माँग की मूल्य सापेक्षता’ को ध्यान में रखती हैं। जिन प्रयोगों के लिए बिजली की माँग बेलोचदार होती है उनके लिए दरें ऊँची तथा जिन प्रयोगों हेतु बिजली की मांग लोचदार होती है उनके लिए दरें नीची रखी जाती है।

(12) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्व (Importance in International Trade) – (i) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित देशों को लाभ प्राप्त होता है। किन्तु किस देश को लाभ अधिक होगा तथा किसे कम इसका निर्धारण भी वस्तुओं की माँग की लोच (मूल्य सापेक्षता) द्वारा किया जाता है। जिस देश के निर्यात बेलोचदार तथा आयात लोचदार होंगे उसे अधिक लाभ होगा। इसके विपरीत, जिस देश के निर्यात लोचदार और आवात बेलोचदार होंगे उसे कम लाभ होगा। (ii) दो या अधिक राष्ट्रों के मध्य व्यापार की शर्तों ( terms of trade) का निर्धारण उनकी वस्तुओं की पारस्परिक माँग की मूल्य सापेक्षता पर निर्भर करता है। यदि हमारे देश की वस्तुओं की विदेशी बाजार में मांग मूल्य सापेक्ष है और विदेशी वस्तुओं की मांग स्वदेश में मूल्य निरपेक्ष है, तो ऐसी स्थिति में व्यापार की शर्तें हमारे विपक्ष में तथा दूसरे राष्ट्र के पक्ष में होंगी। (iii) दो राष्ट्रों के बीच विनिमय दरों (exchange rates) का निर्धारण भी उनकी मुद्राओं (currencies) की माँग की मूल्य सापेक्षता से प्रभावित होता है।

(13) राशिपातन में सहायक (Helpful in Dumping)—किसी वस्तु के अति-उत्पादन की स्थिति में वस्तु के अतिरिक्त ‘भण्डार को विदेशी बाजार में कम कीमत पर चेचने की प्रक्रिया ‘राशिपातन’ (dumping) कहलाती है। माँग की मूल्य सापेक्षता की जानकारी के आधार पर ही उत्पादक राशिपातन को नीति अपनाकर अपनी वस्तु को घरेलू बाजार में अधिक कीमत पर तथा विदेशी बाजारों में कम कीमत पर बेचने में सफल हो सकते हैं।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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