राजनीतिक अपराध क्या है? “राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं होता।” इसे निर्णीत वादों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
फ्रान्सीसी क्रान्ति के पूर्व सामान्य अपराध एवं राजनीतिक अपराध एवं अपराधी में कोई अन्तर नहीं था। सन् 1789 में फ्रांस क्रान्ति के पश्चात् राजनीतिक अपराधी की धारणा ने जन्म लिया। सन् 1793 में फ्रांस के संविधान में उन व्यक्तियों हेतु शरण की व्यवस्था की गयी जो स्वदेश से स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए बाहर निकाले गये हों या भागकर चले आये हों। इस प्रकार सन् 1830 तक राजनीतिक अपराधियों के राज्यों द्वारा प्रत्यर्पण को उचित ठहराया जाता रहा। समयानुसार, इसके विपरीत धारणा का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें इंग्लैण्ड का स्थान सर्वप्रमुख है, सन् 1833 में बेल्जियम कानून पारित होने के बाद यह धारणा और अधिक बलवती हो गयी। धीरे-धीरे यह धारणा सम्पूर्ण विश्व में फैल गयी। आज विश्व में यह सर्वत्र है कि राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं होना चाहिए।
Contents
राजनीतिक अपराध की परिभाषाएं
Harward Research Draft Covention में राजनीतिक अपराध की परिभाषा की गयी है। अनुच्छेद 5 के अनुसार, “राजनीतिक अपराध शब्द में वंचना, राजद्रोह तथा कूट रचना सम्मिलित है, चाहे वह एक व्यक्ति अथवा बहुत से व्यक्तियों द्वारा किया गया हो। इसमें वे सभी अपराध शामिल हैं जो एक संगठित दल से सम्बन्ध रखते हैं वह प्रार्थी देश की सुरक्षा या सरकारी व्यवस्था के विरुद्ध संचालित किया गया है।”
प्रो. स्टीफेन के अनुसार, “राजनीतिक अपराध वे हैं जो केवल घटनावश होते हैं तथा राजनीतिक उपद्रवों के भाग हैं।”
प्रो. महेन्द्र प्रसाद टण्डन के अनुसार, “राजनीतिक अपराध उस अपराध को कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष हों। प्रत्येक अपनी इच्छानुसार अपने दल की सरकार बनाने के लिए प्रयत्नशील हो और दूसरे दल को हराकर देश पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने के लिए कटिबद्ध हो। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु यदि कोई अपराध किया जाये तो उसे राजनीतिक अपराध माना जायेगा।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रत्यर्पण केवल सामाजिक अपराधों के विषय में हो सकता है, राजनीतिक मानने के लिए कुछ शर्तों को आवश्यक माना गया है, जैसे वह कार्य खुलकर किया जाना चाहिए, यह राजनीतिक उपद्रव के समर्थन में किया जाना चाहिए और उस उपद्रव का सम्बन्ध दो पक्षों के बीच संघर्ष से होना चाहिए और उनका ध्येय सरकार पर नियन्त्रण का होना चाहिए।
राजनैतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण (Extradition of Political Offenders)
अन्तर्राष्ट्रीय विधि का यह रूढ़िगत नियम है कि राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण नहीं किया जाता। दूसरे शब्दों में, उन्हें राज्यक्षेत्रीय राज्य द्वारा आश्रय प्रदान किया जाता है। राजशाही शासन-काल के दौरान राजनीतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण बहुत सामान्य था। वे अन्य राज्य के मामलों में मध्यक्षेप को निवारित करने के लिए प्रत्यर्पण को पसन्द करते थे। किन्तु फ्रांसीसी क्रान्ति (French revolution) के प्रारम्भ से इस प्रथा में मूल परिवर्तन हो गया। शायद पहली बार, फ्रांसीसी संविधान, 1973 (French Constitution of 1793 ) के अनुच्छेद 120 के अधीन उन अन्यदेशीयों को आश्रय प्रदान करने के लिए प्रावधान बनाया गया, जो स्वतन्त्रता आन्दोलन के कारण अपने देश से निष्कासित कर दिये जाते थे। बाद में, धीरे-धीरे अन्य राज्य भी राजनीतिक अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने के सिद्धान्त का अनुसरण करने लगे। भारतीय प्रत्यर्पण अधिनियम, 1962 धारा 31 (क) के अधीन इसी प्रकार का प्रावधान किया गया है। वर्तमान समय में, राजनीतिक अपराधियों को प्रत्यर्पण न करना अन्तर्राष्ट्रीय विधि का सामान्य नियम बन गया है। यह प्रत्यर्पण के अपवादों में से एक है।
राजनीतिक अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने के कारण
राजनीतिक अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने का नियम अनेक मतों पर आश्रित है। पहला, यह नियम मानवता के प्रारम्भिक विचारण पर आधारित है। कोई राज्य किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण करना पसन्द नहीं करेगा, यदि वह अपराधी नहीं है। यदि वह प्रत्यर्पण करता है, तो वह प्राकृतिक न्याय (natural justice) की विधि के अनुसरण में नहीं होगा। दूसरे, यदि राजनैतिक अपराधियों का प्रत्यर्पण किया जाता है, तो ऐसी सम्भावना होती है कि उनके साथ न्यायोचित व्यवहार नहीं किया जाएगा। निवेदक राज्य को सौंपे गये फरारी के निष्पक्ष परीक्षण को सुनिश्चित करना राज्यक्षेत्रीय राज्य का कर्तव्य है। चूँकि प्रत्यर्पण करने से यह सम्भव नहीं हो पाता, इसलिए उनका प्रत्यर्पण नहीं किया जाता। तीसरे यह नियम अतिरिक्त विधिक प्रकृति के किसी उपाय से राजनीतिक अपरधी को संरक्षा भी प्रदान करता है, जिसका निवेदक राज्य उनके विरुद्ध प्रयोग करने का प्रयास करता है। चौथे, अन्य देशों में राजनीतिक अपराधियों के शरण लेने का उद्देश्य वह नहीं है, जो सामान्य अपराधियों का है। पाँचवें, राजनीतिक अपराधी राज्यक्षेत्रीय राज्य के लिए उस प्रकार खतरनाक नहीं होते हैं, जैसे कि सामान्य अपराधी हो सकते हैं।
निर्णीत वाद – Re-Menier (1894) के मामले में मेउनियेर एक उग्रवादी क्रान्तिकारी था जिस पर पेरिस कॉफी हाउस व सरकारी कार्यालयों में विस्फोट करने का आरोप था। क्रान्तिकारी कार्य जनकल्याण के विपरीत था अत: इसे राजनीतिक अपराधी नहीं माना जा सकता। ब्रिटिश न्यायाधीश श्री केन ने यह कहा था, “मैं समझता हूँ कि किसी भी अपराध को राजनीतिक अपराध होने के लिए आवश्यक है कि दो या दो से अधिक दल हों, जो स्वेच्छानुसार अपनी सरकार स्थापित करना चाहते हों और इस सम्बन्ध में कोई अपराध किया जाता है तो वह राजनीतिक अपराध की श्रेणी में आता है।”
ओपेनहाइम के अनुसार, “कुछ विद्वान राजनीतिक इरादे (motive) से किये गये अपराध को राजनीतिक अपराध मानते हैं। अन्य लोग राजनीतिक प्रयोजन (political purpose) से किये गये अपराध को राजनीतिक अपराध हैं। कुछ विद्वान दोनों को आवश्यक मानते हैं। कुछ लेखक राजनीतिक अपराध की परिभाषा को राज्य के विरुद्ध किये गये कुछ अपराधों के लिए सीमित करना चाहते हैं। जैसे-महा-राजद्रोह (High Treason)। आज तक इस शब्द के उपयुक्त अर्थ के निर्णय के समस्त प्रयासों को असफलता ही मिली है और सम्भवतः इसलिए इसकी उपयुक्त और सन्तोषप्रद परिभाषा देना पर्याप्त कठिन प्रतीत होता है।”
यह सिद्धान्त Re Castioni (1891) के मामले में प्रतिपादित किया गया जिसमें स्विट्जरलैण्ड की क्रान्ति में टिसोनियो के कैप्टन ने एक सरकारी अधिकारी को मार डाला था। वह राजनीतिक अपराधी समझा गया और उसे प्रत्यर्पण में नहीं दिया गया।
Haya de la Torre (1951) के मामले में पेरू के जन नेता टारे पर सेना में विद्रोह करने का आरोप था, उसे कोलम्बिया द्वारा दूतावास में शरण प्राप्त हुई अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि यद्यपि हवाना की प्रतिज्ञा (Havana Covention) में यह निर्धारित किया जा चुका है सामान्य अपराधी स्थानीय अधिकारियों को समर्पित कर दिये जायें तथापि राजनीतिक अपराधियों के सम्बन्ध में इस प्रकार का कोई कर्तव्य विद्यमान नहीं है। न्यायालय ने कहा कि आश्रय नियमित ढंग से प्रदान किया गया था और उस आधार पर पेरू उससे माँगने का अधिकारी था, परन्तु कोलम्बिया शरणार्थी के प्रत्यर्पण हेतु बाध्य नहीं था।
मुबारक अली के मामले में, जो उसके एवं भारत सरकार के मध्य था, क्वीन्स बँच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि वर्तमान में जालसाजी की समस्या है, परन्तु इसमें कुछ राजनीतिक समस्याएं भी हैं और इनमें सम्यक् परीक्षण न होना अनुपयुक्त होगा।
अपवाद – वर्तमान समय में राजनीतिक अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने पर अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों द्वारा जो प्रतिबन्ध लगाया गया है वह सिर्फ जनसंहार का अपराध है, जनसंहार अभिसमय 1948 के अनुच्छेद 7 के अनुसार जनसंहार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल सहअपराधिता को राजनीतिक अपराध नहीं माना जायेगा। इस प्रकार ऐसे अपराध में शामिल कोई व्यक्ति यह निवेदन नहीं करेगा कि वह राजनीतिक अपराधी है।