संगठन किसे कहते हैं? What is Organization?
संगठन (Organization)
जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी उपक्रम में साथ-साथ कार्य करते हैं, तो इन व्यक्तियों के मध्य कार्य का विभाजन कर उनमें समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है। इसी का नाम संगठन है। और यहीं से संगठन की क्रिया का शुभारम्भ होता है। जैसे मानव शरीर में अनेक छोटे-छोटे भाग होते हैं तथा प्रत्येक भाग का एक नियत कार्य होता है, जैसे-हाथों का कार्य कार्य करना; मुख का खाना; पेट का पचाना; टांगों का चलना; आँखों का देखना; कान एवं नाक का सुनना तथा सूँघना इत्यादि, किन्तु इन विभिन्न भागों के अतिरिक्त मानव शरीर के मस्तिष्क में एक केन्दीय विभाग भी होता है, जो समस्त क्रियाओं का नियोजन करता है; विभिन्न भागों का निर्देशन एवं संचालन करता है तथा उस पर पर्याप्त नियन्त्रण रखता है। मानव शरीर की भाँति ही व्यावसायिक संस्था भी विभिन्न विभागों में विभक्त होती है, जैसे क्रय विभाग, वित्त विभाग, कर्मचारी विभाग, विक्रय विभाग इत्यादि अतः विभिन्न विभागों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करने की कला को ही संगठन कहते हैं।
संगठन के कार्य को कई विद्वानों ने अपने-अपने हिसाब से परिभाषित किया है, जिनमें निम्न प्रमुख हैं-
प्रो० आर० सी० डेविस के अनुसार, “संगठन व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जो सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु नेतृत्व के निर्देशन के अन्तर्गत सहयोग करते हैं।”
मैकफरलैण्ड के अनुसार, “लक्ष्य प्राप्ति की ओर प्रयासरत एक निश्चित व्यक्ति समूह ही संगठन कहलाता हैं।”
संगठन की प्रकृति अथवा विशेषताएँ (Characteristics of Organization)
संगठन की निम्न विशेषताओं से इसकी प्रकृति स्पष्ट हो जाती है-
(1) मानवीय भौतिक साधनों में समन्वय- मानव तथा भौतिक संसाधन मिलकर ही उत्पादन या सेवा कार्य करते हैं। श्रमिक एवं कर्मचारी कच्चे माल, मशीन व वित्त की सहायता से माल का उत्पादन व विक्रय करते हैं। अच्छा संगठन वही कहलायेगा, जिसमें मानवीय भौतिक संसाधनों में ऐसा सामंजस्य हो कि उनका सर्वोत्तम उपयोग सम्भव हो सके।
(2) व्यक्ति समूह का होना- संगठन की दूसरी विशेषता यह है कि इसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह होते हैं, जिसमें उपक्रम की कार्यों को बाँटा जाता है तथा उनके आपसी सम्बन्धों को परिभाषित किया जाता है। मात्र एक व्यक्ति का होना संगठन नहीं कहा।
(3) लक्ष्य का होना- लक्ष्य और संगठन एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं, क्योंकि लक्ष्य के अनुसार ही संगठन संरचना की जाती है। यदि लक्ष्य स्पष्ट नहीं है, तो संगठन भी प्रभावपूर्ण सिद्ध नहीं होगा ।
(4) संगठन एक प्रविधि के रूप में- संगठन कार्य एक प्रविधि या प्रक्रिया है, क्योंकि संगठन संरचना के क्रमानुसार निम्नलिखित कदम उठाने होते हैं-
- (अ) प्रकृति के अनुसार कार्यों का विभाजन जैसे क्रय कार्य, विक्रय कार्य;
- (ब) प्रत्येक कार्य को छोटी-छोटी क्रियाओं से समूहबद्ध करना;
- (स) क्रियाओं के प्रत्येक समूह को उपयुक्त व्यक्ति को सौंपना ।
(5) नेतृत्व एवं निर्देशन का होना- प्रत्येक संगठन में नेतृत्व व निर्देशन का होना अनिवार्य है। नेतृत्व के निर्देशन में ही लोग कार्य करते हैं।
(6) औपचारिक सम्बन्धों की स्थापना- एक अच्छी संगठन संरचना से यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक अधिकारी के अधिकार एवं दायित्व स्पष्ट हों उनके अपने बॉस, अधीनस्थों एवं अन्य अधिकारियों से क्या सम्बन्ध होंगे, कौन किसके आदेश का पालन करेगा, कौन किसको आदेश दे सकता है; कौन किसके प्रति उत्तरदायी होगा आदि की स्पष्ट व्याख्या दी गयी हो।
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