समायोजन क्या है? उसके तत्वों की व्याख्या कीजिए ।
मानव जीवन की परिस्थितियाँ बराबर बदलती रहती हैं। शैशव से लेकर वृद्धावस्था तक मनुष्य के सम्मुख नयी-नयी समस्यायें और नई-नई परिस्थितियाँ आती रहती हैं और वह अपनी बृद्धि और अन्य सामयों से काम लेते हुये बराबर इन समस्याओं को सुलझाने और परिस्थितियों से निपटने की चेष्टा करता है। दूसरे शब्दों में, इस सतत प्रक्रिया का नाम ही जीवन है। लॉरेंस एफ शैफर के शब्दों में “समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीवित प्राणी अपनी आवश्यकताओं और इन आवश्यकताओं की तुष्टि को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में एक सन्तुलन बनाये रखता है। “
इस प्रकार समायोजन की प्रक्रिया के दो मुख्य तत्व होते हैं, एक तो जीव की आवश्यकतायें और दूसरा, उन आवश्यकताओं को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ ।
समायोजन के तत्व
इस प्रकार समायोजन की प्रक्रिया के विश्लेषण से उसमें निम्नलिखित 3 तत्व देखे जा सकते हैं-
(1) प्रेरणा (Motive) -समायोजन के विश्लेषण से उसमें निम्नलिखित 3 तत्व देखे जा सकते हैं ।
(2) कुण्ठित करने वाली परिस्थितियाँ- यदि परिवेश की परिस्थितियाँ आवश्यकताओं – की तुष्टि में बाधक नही होती तो समायोजन स्वभावतया हो जाता है और कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती ।
(3) विविध अनुक्रियायें – आवश्यकता की पूर्ति में बाधा उत्पन्न होने पर व्यक्ति प्रतिक्रिया स्वरूप अनेक प्रकार की क्रियायें करता है। ये अनुक्रियायें सामान्य भी हो सकती है और असामान्य भी हो सकती हैं।
समायोजन का उदाहरण- समायोजन की प्रक्रिया में उपरोक्त तत्वों को एक उदाहरण से भली प्रकार समझा जा सकता है। एक विद्यार्थी में कक्षा में सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण होने की प्रबल आकांक्षा है। वह घोर परिश्रम करता है, परन्तु फिर भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता, क्योंकि उसमें उसके लिए आवश्यक बुद्धि नही है। इस बाधा के परिणामस्वरूप विद्यार्थी अब अपने लक्ष्य को थोड़ा नीचा कर लेता है और द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण होने की आकांक्षा रखकर प्रयास करता है तदानुसार अपनी अध्ययन की क्रियाओं में भी परिवर्तन कर लेता है और उसे अपना लक्ष्य प्राप्त हो जाता है।
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