साझारी के प्रवेश के समय नया लाभ विभाजन ज्ञात करने की तकनीक का वर्णन कीजिये।
नया लाभ विभाजन अनुपात (New Profit Sharing Ratio)- नये साझेदार के प्रवेश से पुराने साझेदारों का लाभ प्रभावित होता है। वह अपने लाभ का हिस्सा पुराने साझेदारों से ही प्राप्त करता है। अतः नये लाभ-विभाजन अनुपात की गणना आवश्यक होती है। साझेदारों के पारस्परिक समझौते के आधार पर इसकी गणना निम्न में से किसी भी एक विधि द्वारा की जा सकती-
(A) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार अपने विद्यमान लाभ-हानि अनुपात में त्याग करते हो।
(B) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार समान बराबर अनुपात में त्याग करते हो ।
(C) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार असमान अनुपात में त्याग करते हों।
(D) जब नया साझेदार अपना भाग किसी एक साझेदार से प्राप्त करता हो।
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(A) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार अपने विद्यमान लाभ-हानि अनुपात में त्याग करते हो-
नये साझेदार के प्रवेश से पुराने साझेदारों के लाभ विभाजन अनुपात में कोई परिवर्तन न होने पर नये लाभ-हानि विभाजन अनुपात की गणना निम्नानुसार होगी-
प्रथम चरण : फर्म के सम्पूर्ण लाभ को 1 रु. मानकर उसमें से नये साझेदार के लाभ का भाग घटा दिया जाए।
द्वितीय चरण : शेष भाग पुराने साझेदारों के मध्य वितरित करने के लिए पुराने साझेदारों के पुराने लाभ-हानि विभाजन अनुपात को भिन्न में परिवर्तित कर उसका शेष भाग से गुणा किया जाये।
तृतीय चरण : प्राप्त गुणनफल को नये साझेदार के भाग के साथ अनुपात में प्रकट किया जाये।
यह स्थिति प्रायः उस समय उत्पन्न होती है जब प्रश्न में केवल नये साझेदार के लाभ के भाग का उल्लेख हो तथा पुराने साझेदारों के त्याग की राशि का उल्लेख न हो ।
(B) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार समान/बराबर अनुपात में त्याग करते हों-
यदि नया साझेदार अपना हिस्सा पुराने साझेदारों से समान अनुपात में प्राप्त करता हो, तो पुराने साझेदारों के पुराने अनुपात में त्याग का भाग घटाकर नये अनुपात की गणना निम्नानुसार होगी
प्रथम चरण : नये साझेदार के भाग को पुराने साझेदारों के मध्य बराबर अनुपात में बाँट दिया जाए। यह भाग त्याग अनुपात होगा।
द्वितीय चरण : पुराने साझेदारों के पुराने लाभ विभाजन अनुपात को भिन्न में परिवर्तित कर उसमें त्याग का भाग घटा दिया जाए।
तृतीय चरण : घटाने के पश्चात् पुराने साझेदारों के शेष भाग में नये साझेदार का हिस्सा लेकर उसे अनुपात में प्रकट कर दिया जाए। यही अनुपात नया लाभ विभाजन अनुपात होगा।
(C) जब नये साझेदार के लाभ का भाग पुराने साझेदार असमान अनुपात में त्याग करते हों-
यदि नया साझेदार अपना लाभ का भाग पुराने साझेदारों से असमान अनुपात में प्राप्त करता हो तो ऐसी स्थिति में पुराने साझेदारों के लाभ-हानि अनुपात में उनके त्याग का भाग घटाकर नये लाभ-हानि अनुपात की गणना निम्नानुसार होगी :
प्रथम चरण- नये साझेदार के भाग को पुराने साझेदारों के मध्य प्रश्न में दिये गये त्याग अनुपात के अनुसार बराबर बाँट दिया जाये।
द्वितीय चरण- पुराने साझेदार के पुराने लाभ वेभाजन अनुपात को भिन्न में परिवर्तित कर उसमें प्रथम चरण का त्याग अनुपात का भाग घटा दिया जाए।
तृतीय चरण- घटाने के पश्चात् पुराने साझेदारों के शेष भाग में नये साझेदार का हिस्सा लेकर उसे अनुपात में प्रकट कर दिया जाए। यही अनुपात नया लाभ विभाजन होगा।
(D) जब नया साझेदार अपना भाग किसी एक साझेदार से प्राप्त करता हो :
ऐसी स्थिति में नये साझेदार के लाभ का पूरा भाग किसी एक पुराने साझेदार के लाभ में से घटाकर नये लाभ विभाजन अनुपात की गणना निम्नानुसार होगी :
प्रथम चरण- नये साझेदार के भाग को केवल त्याग करने वाले साझेदार के लाभ में से घटाया जाए।
द्वितीय चरण- त्याग करने वाले साझेदार के लाभ के शेष भाग के साथ शेष पुराने साझेदारों के लाभ का पुराना भाग तथा नये साझेदार के लाभ का भाग लेकर उसे अनुपात प्रकट कर दिया जाए।
यही अनुपात नया लाभ विभाजन अनुपात होगा इसमें शेष पुराने साझेदारों के भाग में कोई परिवर्तन नही होता।
त्याग अनुपात (Sacrifice Ratio)- “पुराने साझेदारों के मध्य लाभ-विभाजन में हुई आनुपातिक कमी त्याग अनुपात कहलाती है।”
दूसरे शब्दों में- “पुराने साझेदारों के पुराने तथा नये लाभ विभाजन अनुपात का अन्तर ही त्याग अनुपात है।”
त्याग अनुपात = पुराना अनुपात – नया अनुपात
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