हिन्दी साहित्य

साहित्यिक हिन्दी और तकनीकी हिन्दी से आप क्या समझते हैं?

साहित्यिक हिन्दी और तकनीकी हिन्दी से आप क्या समझते हैं?
साहित्यिक हिन्दी और तकनीकी हिन्दी से आप क्या समझते हैं?

साहित्यिक हिन्दी और तकनीकी हिन्दी से आप क्या समझते हैं? विवेचना कीजिए। तकनीकी हिन्दी को समझाते हुए इसके विभिन्न रूपों पर प्रकाश डालिए।

साहित्यिक हिन्दी और तकनीकी हिन्दी से आप क्या समझते हैं?

साहित्यिक हिन्दा- व्यसन के लिए लिखने वाले लेखक आजकल व्यवसाय के लिए लिख रहे हैं। पत्रकारिता एक उद्योग का रूप ले चुकी है इसलिए स्तम्भ, फीचर, भेटवार्ता, पुस्तक समीक्षा लिखने वाले लेखक अच्छा कमा रहे हैं। उपभोक्तावादी सभ्यता पत्रकारिता को सेवा के स्थान पर लाभप्रद धंधा बना दिया है। रंगमंच, रंग आलेख, पटकथा लेखन, संवाद लेखन, डबिंग, कमेंट्री कला, समाचार वाचन, विज्ञापन आदि से लेखक लाखों रुपया कमा रहे हैं। इस प्रकार कामकाजी हिन्दी का एक प्रकार्य साहित्यिक लेखन है।

साहित्य की अनेक विधाओं का रूपान्तरण दृश्य- श्रव्य माध्यमों के अनुरूप हो रहा है। नाटक के स्थान पर फीचर, फिल्म, टेलोड्रामा, टेलीफिल्म, डाक्यूड्रामा, कॉर्टून फिल्में बन रही हैं। इसमें नये प्रयोग हो रहे हैं। कहानी और उपन्यासों को टी.वी. पर धारावाहिकों में ढाला जा रहा है। रेडियोवार्ता, फीचर, संस्मरण आदि नयी विधाओं का विकास हो रहा है। इस प्रकार साहित्यिक विधाओं का दृश्यों में रूपान्तरण और इसके लिए मीडिया लेखन का अभ्यास कर नये रूपों में इन्हें लिखना इसका साहित्यिक प्रकार्य है।

तकनीकी हिन्दी – संसार भर के विकसित और विकासशील देशों के बीच का अंतर जनसामान्य के लिए जनभाषा में तकनीकी साहित्य की उपलब्धि से भी अनुमानित होता है। अधिकांश विकसित देशों में तकनीकी साहित्य अधिकतर अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। रूसी, फ्रेंच, जर्मन और जापानी में भी विज्ञान विपुल मात्रा में मिलता है। भारत जैसे विकासशील देश की मुख्य भाषा होने के नाते हिन्दी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इतना व्यापक तकनीकी साहित्य उपस्थित करे, जिसके आधार पर विज्ञान का लोकोपयुक्त प्रसार हो सके। अब तक यह माना जाता रहा है कि अंग्रेजी के माध्यम से ही इस देश में विज्ञान और तकनीकी सिद्धान्तों तथा उपलब्धियों को समझा और समझाया जा सकता है। शायद ही कोई ऐसा मंच हो जहाँ से हिन्दी की तकनीकी असमर्थता का उद्घोष न हुआ हो। शायद ही कोई ऐसा मनीषी साहित्यकार हो, जिसने हिन्दी में तकनीकी साहित्य की ओर कभी संकेत न किया हो। शायद ही कोई हिन्दीविद् हो जिसने हिन्दी में विज्ञान के अंदाजे बयाँ की उलझनों पर चिंता न व्यक्त की हो । भारतभर में फैले हुए तकनीकी ज्ञान और विकासशील विज्ञान के अंग्रेजी में ही उपलब्ध होने के कारण विशालतर जनसमूह को तकनीकी उपलब्धियों से वंचित रहना पड़ता है। यही कारण है कि भारतीय समाज का दृष्टिकोण अपेक्षित आविष्कारोन्मुखी नहीं बन पा रहा है और तकनीकी प्रगति की आत्मनिर्भरता अपेक्षित प्रौढ़ता नहीं प्राप्त कर रही जनसामान्य की भाषा में समस्त तकनीकी जानकारी उपलब्ध हो सके और वैज्ञानिक तथा विशेषज्ञ जनता से संपर्क स्थापित कर लोकोन्मुखी तकनीकी का विकास कर सके, इसके लिए आवश्यक है कि हिन्दी में तकनीकी साहित्य का बहुमुखी लेखन हो ।

अधिकांश विश्लेषण इसी निष्कर्ष तक पहुँचाते हैं कि हिन्दी का प्रयोग तकनीकी क्षेत्र में अनुवाद पर आश्रित रहा है और मौलिक लेखन को अपेक्षित प्रोत्साहन नहीं मिला है। भारत की स्वाधीनता के अनंतर हिन्दी के तकनीकी प्रयोग की दिशा में व्यापक प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी तकनीकी संसाधनों में निरन्तर हो रहे बदलाव के संदर्भ में हिन्दी की तकनीकी क्षमता विवादों के घेरे में है। स्थिति यह है कि अभी तक हिन्दी के लिए टाइपराइटर जैसी आसान तकनीक आवश्यकता के अनुकूल विकसित नहीं की जा सकी है। 1938 ई. में आयोजित तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर हिन्दी कम्प्यूटर का प्रदर्शन किया गया और निश्चय ही विज्ञान व तकनीकी उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के लिए हिन्दी को माध्यम के रूप में स्वीकृत कराने में ‘हिन्दी कम्प्यूटर’ की महत्वपूर्ण भूमिका बनेगी। हिन्दी कम्प्यूटर ने बड़ी तेजी के साथ हिन्दी के भावी तकनीकी स्वरूप को सुसंगठित करना आरम्भ किया है। क्योंकि इसमें अंग्रेजी के साथ-साथ नागरी अक्षरों का भी बड़ी खूबी के साथ संगठन किया गया है। हिन्दी कम्प्यूटर के प्रादुर्भाव ने वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं, मुद्रकों और अन्य तकनीकी विशेषज्ञों को हिन्दी की विज्ञान विषयक क्षमता के बारे में आश्वस्त करना प्रारम्भ किया है लेकिन हिन्दी का तकनीकी साहित्य केवल हिन्दी टेलीप्रिंटर तथा हिन्दी कम्प्यूटर के प्रयोग से ही पल्लवित नहीं हो सकता। निर्विवाद तौर पर हिन्दी की साहित्यिक परम्पराओं की तुलना में हिन्दी के तकनीकी लेखन का इतिहास बहुत नया है। पाठ्य पुस्तकों से अलग हॅटकर हिन्दी का तकनीकी साहित्य बहुत कम विकसित हुआ।

विज्ञान विषयक लेखन के नाम पर अनुवाद पर ही उपस्थित होते रहे हैं लेकिन अनुवाद से न तो विषय का सही प्रस्तुतीकरण संभव हो पाता है और न हिन्दी के तकनीकी लेखन को कोई नई दिशा मिलती। ऐसी तमाम चिंताओं और विसंगतियों के बावजूद उन सारे प्रयासों को विस्तृत नहीं किया जा सकता जिनका रिश्ता हिन्दी में तकनीकी साहित्य के अतीत और वर्तमान से है। अपनी मृत्यु के तीन दिन पूर्व 3 जनवरी, 1885 को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपने मित्र रामशंकर शर्मा से यह अफसोसे जाहिर किया था कि वे न तो उत्तर भारत के शिल्पकला का कोई कॉलेज खुलवा सके और न हिन्दी में वैज्ञानिक साहित्य को कोई सहारा दे सके। भारतेन्दु के समकालीन लेखकों के बीच विज्ञान जैसे उपयोगी विषय पर लिखने वालों की संख्या बहुत अधिक नहीं थी। सन् 1860 में हिन्दी की पहली एतद्विषयक पुस्तक ‘सरल विज्ञान विटप’ नाम से छपी थी, जो मूलतः विद्यालय के छात्रों के लिए तैयार की गई। पाठ्य पुस्तक थी। 20वीं शताब्दी के पहले हिन्दी में तकनीकी साहित्य प्रधानतया पाठ्य पुस्तकों के सरलतम रूप में उपलब्ध था, यद्यपि सन् 1890 के आसपास अमरावती से ‘शेतकरी’ अर्थात् ‘कृषिकारक’ पत्रिका का प्रकाशन होने लगा था और सन् 1898 में ही काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने वैज्ञानिक कोश का कार्य आरम्भ कर दिया था। ‘शेतकारी’ मासिक हिन्दी और तकनीकी पत्र था। 20वीं शताब्दी में हिन्दी की तकनीकी पत्रकारिता लगातार विकसित और प्रौढ़ होती गई हैं। विज्ञान परिषद् इलाहाबाद ने सन् 1915 से ‘मासिक’ विज्ञान की शुरूआत की जो अब तक लगातार प्रकाशमान है। मौजूदा शताब्दी में हिन्दी में लिखने वाले सभी वैज्ञानिक इस मासिक से कभी-न-कभी अवश्य संबद्ध रहे हैं। विज्ञान के वर्तमान संपादक डॉ. जगदीशचन्द्र चौहान ने इधर ऊर्जा, कम्प्यूटर और रोबोट पर केन्द्रित विशेषताओं के कारण इस पत्रिका को पर्याप्त प्रौढ़ता दी है। भारत की स्वाधीनता के बाद ‘विज्ञान जगत’, ‘विज्ञान लोक’ और ‘वैज्ञानिक’ जैसी कुछ अल्पजीवी पत्रिकाएँ भी हिन्दी में निकालीं। भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् द्वारा अंग्रेजी में तेरह पत्रिकाएँ प्रकाशित होती हैं, जबकि हिन्दी में केवल एक मासिक पत्र छपता है— ‘विज्ञान प्रगति’। सन् 1952 में रामचन्द्र तिवारी के संपादन में विज्ञान प्रगति का प्रकाशन आरम्भ हुआ था और डॉ. ओमप्रकाश शर्मा के संपादन तक इस मासिक की प्रसार संख्या अस्सी हजार तक पहुंच गई है। संप्रति इलाहाबाद विज्ञान संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका ‘विज्ञान भारती’ का नियमित प्रकाशन हो रहा है और नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया की मासिक पत्रिका ‘आविष्कार’ भी जारी है। इस क्रम में वर्मा ब्रदर्स, दिल्ली के जूनियर साइंस डाइजेस्ट का उल्लेख भी किया जा सकता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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