Contents
हिन्दी साहित्य की उपलब्ध सामग्री (संचयन, वर्गीकरण और उपयोग)
हिन्दी साहित्येतिहास स्रोत- हिन्दी साहित्य के इतिहास की आधारभूत सामग्री को मुख्यतः दो भागों में रखा जा सकता है- (क) अन्तः साक्ष्य तथा (ख) बाह्य साक्ष्य अन्तः साक्ष्य के अन्तर्गत उपलब्ध सामग्री को भी तीन रूपों में बांटा जा सकता है- (1) भक्त एवं सन्त कवियों से सम्बद्ध आधारभूत ग्रन्थ, (2) कवियों विषयक काव्य संग्रह, (3) साहित्यकारों की प्रकाशित व अप्रकाशित रचनायें तथा कवियों के परिचय से सम्बद्ध पुस्तकें। बाह्य साक्ष्य के अन्तर्गत प्राप्त सामग्री चार रूपों में मिलती है- (1) साहित्यिक सामग्री, (2) प्राचीन ऐतिहासिक स्थान, शिलालेख, वंशावलियां व प्रामाणिक उल्लेख, (3) जनश्रुतियां (4) विभिन्न युगों की आन्तरिक व बाह्य परिस्थितियों की ज्ञापक सामग्री।
साहित्य के इतिहास के लेखन कार्य में बाह्य साक्ष्य की अपेक्षा अन्तः साक्ष्य अधिक विश्वसनीय और महत्वपूर्ण है क्योंकि एक समन्वित दृष्टिकोण सम्पन्न इतिहास लेखक अपनी विवेकमयी सार ग्राहिणी बुद्धि से उस सामग्री से ग्राह्य व प्रामाणिक उपादानों को ग्रहण करता है। एक श्रेष्ठ इतिहास लेखक सर्वदा “सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय” के आदर्श का दृढ़ता से पालन करता है।
(अ) अन्तः साक्ष्य
(1) भक्त एवं सन्त कवियों से सम्बन्ध आधारभूत ग्रन्थ- इस कोटि के अन्तर्गत गोकुलनाथ द्वारा रचित ‘चौरासी और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्तायें” नाभादास रचित ‘भक्त माल’, ‘गुरु ग्रन्थ साहब’, ‘गोसाईं चरित्र’, ध्रुवदास लिखित ‘भक्त नामावली’ तथा सन्त बानी संग्रह व अन्य संतों की बानी आदि ग्रन्थ आते हैं। चौरासी और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ताओं में पुष्टि मार्ग के अनुयायी वैष्णवों की जीवनियों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें अष्ट छाप के कृष्ण भक्ति कवि सूरदास और नन्ददास आदि सम्मिलित हैं। भक्तमाल में अनेक भक्तों के व्यक्तित्व से संबंधित 108 छप्पय छन्दों का उल्लेख है। इनमें उनके जीवन और कृतित्व के बारे में श्रद्धापूर्वक उल्लेख है। इनमें अनेक भक्ति कवि भी हैं। ‘गुरु ग्रन्थ’ साहब में कबीर, रैदास तथा नाभादास की वाणियों का संग्रह है। ‘गोसाई चरित्र’ में गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र की अलौकिक घटनाओं का वर्णन मिलता है। सन्त बानी संग्रह तथा अन्य सन्तों की बानी में 24 सन्त कवियों के जीवन चरित्र और काव्य संग्रह हैं। इन सब ग्रन्थों में भक्तों व सन्त कवियों के विषय में स्तुत्यात्मक कथन है, अतः उनके उपयोग में इतिहासोचित सावधानी अपेक्षित है। गुरुमुखी लिपि में निबद्ध हिन्दी कवियों के ग्रन्थों ने हिन्दी साहित्य के इतिहास के निर्माण में काफी उपयोगी सामग्री जुटाई है।
(2) विविध कवियों से सम्बद्ध काव्य संग्रह- इस प्रकार के अनेक काव्य संग्रह मिलते हैं- ‘कविमाला’ में 75 कवियों की कविताओं का संकलन है। ‘कालिदास हजारा’ में 292 कवियों की एक हजार कविताओं का संग्रह है। भिखारी दास के ‘काव्य निर्णय’ में जहाँ एक ओर काव्य के आदर्शों का उल्लेख है, वहाँ उसमें कुछ कवियों का संक्षिप्त निर्देश भी कर दिया गया है। ‘सत्कवि गिरा विलास’ में केशव, चिंतामणि, मतिराम और बिहारी आदि 17 कवियों की कविताओं का संग्रह है। ‘कवि नामावली में लेखक ने दस कवियों का नाम गिनाकर उन्हें प्रणाम अर्पित किया है। विद्वान मोदतरंगिणी में 45 कवियों का काव्य संग्रह है। सरदार कवि के ‘श्रृंगार श्रृंगार संग्रह’ में काव्य के विविध अंगों के निरूपण के साथ-साथ 125 कवियों की कविताओं के उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं । हरिश्चन्द्र के सुन्दरीतिलक में 69 कवियों के सवैयों का संग्रह है। ‘काव्य-संग्रह’ में अनेक कवियों है का काव्य संग्रह है। मातादीन मिश्र के ‘कवित्त रत्नाकर’ में 20 कवियों का काव्य संग्रह है। शिवसिंह सेंगर के शिवसिंह सरोज’ में एक हजार कवियों का जीवनवृत्त और उनकी कविताओं के उदाहरण जुटाए गए हैं। इतिहास की सामग्री की दृष्टि से यह ग्रन्थ काफी उपादेय है। ‘विचित्रोपदेश’ नामक ग्रन्थ में अनेक कवियों की कवितायें हैं। ‘कवि रत्नमाला’ में राजपूताने के 108 कवियों की कविताएं जीवनी सहित दी गई है। ‘हफीजुल्ला खां हजारा’ के दो भागों में अनेक कविताओं के कवित्त और सवैयों का संग्रह है।
लाला सीताराम के ‘सलेक्शन फ्राम हिन्दी लिट्रेचर’ (Selection from Hindi Literature) में अनेक कवियों की आलोचनाएं और कविताएँ हैं। लाला भगवानदीन के ‘सूक्ति सरोवर’ में बज भाषा के अनेक कवियों की साहित्यिक विषयों पर सूक्तियाँ हैं। कृष्णानन्द व्यासदेव रचित ‘राग सागरोद्भव राग कल्पद्रुम’ में अनेक राग-रागनियों के उल्लेख के साथ कृष्णोपाक है दो सौ से अधिक कवियों के काव्य संग्रह हैं। ‘दिग्विजय भूखन’ में 192 कवियों का काव्य संग्रह है। ठाकुर प्रसाद त्रिपाठी के ‘रस चन्द्रोदय’ में 242 कवियों की कविताओं का संकलन है। उपर्युक्त काव्य-संग्रहों की विषय वस्तु से स्पष्ट है कि इनमें अनेक कवियों की मूल्यवान कविताएं हैं जिनके आधार पर सम्बद्ध कवियों की साहित्यगत प्रवृत्तियाँ निर्धारित की जा सकती हैं। इन ग्रन्थों से मध्ययुगीन हिन्दी कवियों और उनके काव्यों के विषय में काफी तथ्यों का पता चलता है।
(ब) बाह्य साक्ष्य
(1) साहित्यिक सामग्री के अन्तर्गत टाड का ‘राजस्थान’ नागरी प्रचारिणी सभा की खोजक रिपोर्ट, मोतीलाल मेनारिया की ‘राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज’, बिहार में हस्तलिखित ग्रन्थ, हिन्दूइज्म एण्ड ब्राह्मणनिज्म, कबीर एण्ड दि कबीर पंथ, हिस्ट्री आफ सिख रिलीजन, इण्डियन थीइज्म, ए डिस्क्रिप्टिव केटेलाग ऑफ वार्डिक एण्ड हिस्टॉरिकल मैन्युस्क्रिप्ट, ऐन आउट लाइन ऑफ दि रिलीजस लिट्रेचर आफ इण्डिया, गोरखनाथ एण्ड दि कनफटा योगीज आदि ग्रन्थ आते हैं।
टाड रचित ‘राजस्थान’ में राजस्थान के चारण कवियों की चर्चा है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा की खोज-रिपोर्टों में अनेक अज्ञात कवियों और लेखकों का परिचय एवं उनकी रचनाओं के उदाहरण हैं। मोतीलाल मेनारिया ने अपने ग्रन्थ में राजस्थान के अनेक ज्ञात व अज्ञात कवियों एवं लेखकों का परिचय और उनकी रचनाओं के उदाहरण जुटाये हैं। ऊपर अंग्रेजी भाषा में लिखित ग्रन्थों की चर्चा की गई है उनमें हिन्दू धर्म और दर्शन के सिद्धांतों के निरूपण के साथ-साथ हिन्दी के अनेकों कवियों और आचार्यों के विचारों की भी समीक्षा कर दी गई है। इन प्रन्थों में अधिकतर साहित्य के धार्मिक तथा सांस्कृतिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। एल० पी० टैसीटरी के ‘ए डिस्क्रिप्टिव केटेलाग ऑफ वार्डिक एण्ड हिस्टारिकल मैन्युस्क्रिप्ट’ में राजस्थान में रचित डिंगल काव्य के अनेक विवरण हैं।
(2) प्राचीन ऐतिहासिक स्थान व शिलालेख – शिलालेख प्राचीन इतिहास पर प्रकाश डालने में पर्याप्त सहायक सिद्ध होते हैं। चन्देल राज परमाल (परमार्दिदेव) के समय के जैन-शिलालेख तथा आबू पर्वत के राजा जेत और शलख के शिलालेख तत्कालीन इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
ऐतिहासिक स्थानों के अन्तर्गत काशी में कबीर चौरा, अस्सी घाट, कबीर की समाधि, बस्ती जिले में आमी नदी का तट अमेठी में जायसी की समाधि, राजापुर में तुलसी की प्रस्तर मूर्ति, सोरों में तुलसीदास के स्थान का अवशेष तथा नरसिंह जी का मन्दिर, केशवदास का स्थान टीकमगढ़ और सागर आदि आते हैं।
(3) जनश्रुतियाँ- उपर्युक्त सामग्री के अतिरिक्त कवियों की जीवनियों और उनकी साधना से सम्बद्ध अनेक जनश्रुतियों प्रचलित हैं। निःसन्देह जनश्रुतियां विशेष प्रामाणिक नहीं होतीं किन्तु उनमें सत्य की ओर कुछ संकेत अवश्य मिल जाते हैं। जनश्रुतियाँ शताब्दियों से जन जिह्वा की सवारी करती आ रही होती हैं अतः इनमें अतिरंजना का योग आवश्यक है। फिर भी एक कृति इतिहास की मनीषा उनके ग्रहणीय अंशों का सार्थक उपयोग कर लेती है।
(4) विभिन्न युगों की परिस्थितियों की बोधक सामग्री में विभिन्न युग के इतिहास आदि ग्रन्थ आते हैं।
ऊपर हमने हिन्दी साहित्य के इतिहास की जिस आधारभूत सामग्री अथवा मूल स्रोतों की चर्चा की है, वह इतनी अपर्याप्त है कि उसके आधार पर हिन्दी साहित्य का एक सुनिश्चित व प्रामाणिक इतिहास तैयार हो पाना कठिन है। अतः इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों द्वारा गत 40-50 वर्षों में इस दिशा में किए गये महत्वपूर्ण अनुसंधानों और शोध प्रबन्धों की सामग्री का सावधानीपूर्वक उपयोग आवश्यक है। इन अनुसंधानों से काफी महत्वपूर्ण तथ्य आलोक में आए हैं। आधुनिक काल के इतिहास के लिए डा० माताप्रसाद गुप्त तथा डा० प्रेम नारायण टंडन आदि अनेक लेखकों द्वारा समकालीन लेखकों और उनकी रचनाओं के वृत्त संग्रह निर्देशिकाओं के रूप में पर्याप्त सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
निष्कर्ष
अन्तः साक्ष्य –
( 1 ) भक्त व सन्त कवियों तथा अन्य कवियों से सम्बद्ध रचनाएँ।
(2) कवियों एवं साहित्यकारों की प्रकाशित रचनाएँ। अप्रकाशित रचनाओं का उपयोग तनिक दुष्कर व्यापार है । अनेक अनुसंधानरत संस्थाएं अप्रकाशित रचनाओं के प्रकाशन कार्य में संलग्न हैं।
(3) अनेक कवियों के काव्य संग्रह मध्ययुगीन कवियों के बोध के लिए आवश्यक है।
बाह्य साक्ष्य – (1) साहित्यिक सामग्री, (2) शिलालेख तथा ऐतिहासिक स्थान, (3) जनश्रुतियाँ, (4) विभिन्न युगों की आन्तरिक और बाह्य परिस्थितियों का बोध कराने वाले ग्रन्थ। आधुनिक काल के इतिहास के लेखनार्थ- साहित्य के विभिन्न अंगों, रूपों, धाराओं तथा प्रवृत्तियों से सम्बद्ध अनेक अनुसंधानात्मक शोध प्रबन्ध तथा समकालीन लेखकों तथा उनकी रचनाओं के वृत्तसंग्रह उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
IMPORTANT LINK
- कबीरदास की भक्ति भावना
- कबीर की भाषा की मूल समस्याएँ
- कबीर दास का रहस्यवाद ( कवि के रूप में )
- कबीर के धार्मिक और सामाजिक सुधार सम्बन्धी विचार
- संत कबीर की उलटबांसियां क्या हैं? इसकी विवेचना कैसे करें?
- कबीर की समन्वयवादी विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
- कबीर एक समाज सुधारक | kabir ek samaj sudharak in hindi
- पन्त की प्रसिद्ध कविता ‘नौका-विहार’ की विशेषताएँ
- ‘परिवर्तन’ कविता का वैशिष्ट (विशेषताएँ) निरूपित कीजिए।