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अनुबन्ध के निष्पादन से क्या आशय है? अथवा निष्पादन की मांग कौन कर सकता है?

अनुबन्ध के निष्पादन से क्या आशय है? अथवा निष्पादन की मांग कौन कर सकता है?
अनुबन्ध के निष्पादन से क्या आशय है? अथवा निष्पादन की मांग कौन कर सकता है?

अनुबन्ध के निष्पादन से क्या आशय है? अथवा निष्पादन की मांग कौन कर सकता है?

अनुबन्ध के निष्पादन से आशय या अर्थ- अनुबन्ध के निर्माण के उद्देश्य अनुबन्ध का निष्पादन है। अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत विधिमान्य अनुबन्ध का निर्माण हो जाने के पश्चात अनुबन्ध के पक्षकारों के मध्य अनुबन्धात्मक सम्बन्ध उतपन्न हो जाते हैं। अनुबन्ध का निष्पादन होने तक पक्षकारों के मध्य सम्बन्ध बने रहते हैं और जब पक्षकार अनुबन्ध के अन्तर्गत अपने दायित्वों का पालन कर देते हैं, तो अनुबन्ध समाप्त हो जाते है। इस प्रकार एक अनुबन्ध में दो पक्षकारों के मध्य वैधानिक उत्तरदायित्वों को पूरा करके अनुबन्ध का निष्पादन कर दिया जाता है अथवा अन्य प्रकार से अनुबन्ध समाप्त हो जाता है।

अनुबन्ध निष्पादन द्वारा अनुबन्ध की समाप्ति के निम्नलिखित ढंग होते हैं, धाराएँ (37-62)

(i) धारा 37 के अनुसार, अनुबन्ध का प्रत्येक पक्षकार अपने-अपने वचनों का पालन करने के लिए तब तक बाध्य होगा, जब तक कि उसे ऐसे पालन से मुक्ति नहीं दे दी जाती।

(ii) धारा 38 के अनुसार, निष्पादन का प्रस्ताव शर्तरहित व प्रस्ताव के पूरे भाग के लिए होना चाहिए।

(iii) धारा 40 के अनुसार, अनुबन्ध का निष्पादन वचनदाता, वचनदाता के प्रतिनिधि अथवा किसी तृतीय पक्षकार से वचन का निष्पादन किया जा सकता है।

(iv) यदि अनुबन्ध में निष्पादन के समय और स्थान का उल्लेख हो, तो पक्षकारों को उसी स्थान और समय पर उसे निष्पादित करना चाहिए।

(v) धारा 59 से 61 भुगतानों के नियोजन से सम्बन्धित है। ऋणी द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार भुगतान का नियोजन करना चाहिए।

अनुबन्धों का निष्पादन कौन करे

1. स्वयं वचनदाता एवं उसके प्रतिनिधि द्वारा निष्पादन – अनुबन्ध अधिनियम की धारा-40 के आधार पर कहा जा सकता है कि जहाँ पर व्यक्तिगत योग्यता एवं निपुणता का प्रश्न है, वहाँ पर वचनदाता को स्वयं अपने वचन का निष्पादन करना चाहिए, किन्तु अन्य दशाओं में वचनदाता अथवा उसका प्रतिनिधि वचन के निष्पादन के लिए किसी भी उपर्युक्त व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है। उदाहरण- ‘अ’, ‘ब’ को तस्वीर बनाने का वचन देता है। यहाँ पर ‘अ’ को अपने वचन का निष्पादन स्वयं ही करना चाहिए।

2. संयुक्त वचनदाताओं द्वारा निष्पादन- दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से वचन देना संयुक्त वचनदाताओं का कार्य अथवा अधिकार माना गया है। इस प्रकार से दिये गये वचन के निष्पादन के सम्बन्ध में उसका दायित्व निम्न प्रकार होगा-

(i) वचनदाताओं द्वारा संयुक्त रूप से निष्पादन- धारा (43) “जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों ने एक संयुक्त वचन दिया हो तो जब तक अनुबन्ध से विपरीत अभिप्राय प्रकट न होता हो तबतक अपने संयुक्त जीवनकाल में ऐसे सभी व्यक्तियों को और उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर उसके प्रतिनिधि को शेष जीवित वचनदाताओं के साथ मिलकर वचन का निष्पादन करना चाहिए।” उदाहरण-‘अ’, ‘ब’ तथा ‘स’ मिलकर ‘द’ को 500 रु० देने का वचन देते हैं। यहाँ पर तीनों वचनदाताओं को मिलकर संयुक्त रूप से अपने वचन का निष्पादन करना चाहिए। किन्तु अचानक ‘अ’ की मृत्यु हो जाने पर उसके प्रतिनिधि तथा ‘ब’ और ‘स’ को मिलकर उस वचन का निष्पादन करना चाहिए। यदि दुर्भाग्यवश ‘ब’ और ‘स’ की भी मृत्यु हो जाये तो इस परिस्थिति में ‘अ’, ‘ब’ तथा ‘स’ तीनों के प्रतिनिधियों को मिलकर संयुक्त रूप से उनके द्वारा दिये गये वचन का निष्पादन करना चाहिए।

(ii) संयुक्त तथा व्यक्तिगत दायित्व- धारा (42) “जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक संयुक्त वचन देते है, तब वचनदाता, जब तक कि इसके विपरीत कोई स्पष्ट ठहराव न हुआ हो, उन संयुक्त वचनदाताओं में से किसी एक अथवा अधिक को सम्पूर्ण वचन के निष्पादन करने के लिए बाध्य कर सकता है।” उदाहरण- ‘क’, ‘ख’ तथा ‘ग’ संयुक्त रूप से ‘घ’ को 500 रुपये देने का वचन देते है। ‘घ’ उनमें से किसी एक को अथवा सबको रुपया देने के लिए बाध्य कर सकता है। (धारा 42 )

(iii) प्रत्येक वचनदाता द्वारा अंशदान की मांग करने का अधिकार- दो या दो से अधिक वचनदाताओं में से प्रत्येक व्यक्ति दूसरे संयुक्त वचनदाता को वचन के निष्पादन के लिए अपने बराबर अंशदान करने के लिए बाध्य कर सकता है, जब तक कि अनुबन्ध स इसके विपरीत कोई अन्य अभिप्राय प्रकट न होता हो।

उदाहरण– अनु, नेहा, टीना तीनों मिलकर राधा को 60,000 रुपये देने का वचन देती है। अनुबन्ध के आधार पर अनु को रुपया देने के लिए बाध्य किया जाता है। यहाँ पर अनु दोनों संयुक्त वचनदाताओं को अर्थात्-नेहा और टीना को 20,000-20,000 रुपये देने के लिए बाध्य कर सकती है ताकि अनुबन्ध का निष्पादन किया जा सके।

(iv) अंशदान में त्रुटि की दशा में हानि का बँटवारा- धारा (43) यदि दो या दो से अधिक संयुक्त वचनदाताओं में से कोई वचनदाता अपना अंशदान देने में असमर्थ रहता है, तो शेष वचनदाताओं को ऐसी त्रुटि से होने वाली हानि को बराबर-बराबर हिस्सों में सहन करना चाहिए।

उदाहरण- ‘अ’, ‘ब’ तथा ‘स’ मिलकर ‘द’ को 3000 रुपये देने का वचन देते हैं। ‘स’ अपना योगदान नहीं दे पाता तथा ‘अ’ को रुपया देने के लिए बाध्य किया जाता है। ऐसी अवस्था में ‘अ’, ‘ब’ से 1,500 रुपये पाने का अधिकारी है। उपर्युक्त उदाहरण में यदि ‘स’ से केवल 500 रुपये प्राप्त होते है, तो ‘ब’ से 1,250 रुपये की माँग की जा सकती है।

3. वैधानिक प्रतिनिधि द्वारा निष्पादन- “व्यक्तिगत निपुणता अथवा कुशलता वाले अनुबन्धों को छोड़कर वचनदाता की मृत्यु होने पर उसके वैधानिक प्रतिनिधि द्वारा अनुबन्धों का निष्पादन किया जाना चाहिए।”

4. तृतीय पक्षकार द्वारा निष्पादन- अनुबन्ध अधिनियम की धारा-41 के आधार पर हम कह सकते हैं कि- “जब वचनग्रहीता किसी तृतीय पक्षकार के वचन के निष्पादन के लिए स्वीकार कर लेता है तो वह बाद में वचनदाता को वचन के पूरा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।” भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी कपूरचन्द गोथा बनाम मीर नवाब हिमायत अली खाँ  (1963) के विवाद में इसी आधार पर निर्णय दिया था।

उदाहरण– ‘अ’, ‘ब’ को अपनी पुस्तक बेचने के लिए वचन देता है और इस बात पर सहमत हो जाता है कि ‘ब’ की ओर से कोई भी व्यक्ति पुस्तक का विक्रय कर सकता है। यहाँ पर बाद में ‘अ’, ‘ब’ को स्वयं पुस्तक बेचने हेतु बाजार में जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

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Anjali Yadav

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