Commerce Notes

अनुबन्ध भंग/खण्डन से क्या तात्पर्य है? अनुबन्ध के खण्डन (भंग) होने पर पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध उपचार

अनुबन्ध भंग/खण्डन से क्या तात्पर्य है? अनुबन्ध के खण्डन (भंग) होने पर पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध उपचार
अनुबन्ध भंग/खण्डन से क्या तात्पर्य है? अनुबन्ध के खण्डन (भंग) होने पर पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध उपचार

अनुबन्ध भंग/खण्डन से क्या तात्पर्य है? अनुबन्ध खण्डन की दशा में पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध विभिन्न उपचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।

अनुबन्ध खण्डन (भंग) से आशय- यदि अनुबन्ध का निष्पादन (Performance) अथवा समाप्ति अन्य किसी रीति से नहीं हो पाता है तथा पक्षकार अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं करते, तो यह स्थिति अनुबन्ध खण्डन (भंग) कहलाती है। उदाहरण के लिए अनुराग तरुण को 100 बोरे चीनी प्रति बोरा रु०1500/- में देने का अनुबन्ध करता है, परन्तु पूर्व-निर्धारित तिथि को अनुराग 100 बोरे की चीनी की सुपुर्दगी देने में असमर्थ रहता है। इस स्थिति में अनुराग के द्वारा अनुबन्ध का खण्डन कहलायेगा। इसके अतिरिक्त यदि अनुराग निर्धारित तिथि से पूर्व ही अपने दायित्व का निर्वाह करने से इनकार कर देता है अथवा निर्वाह करने के लिए स्वयं को अयोग्य बना लेता है, तो ऐसी स्थिति अनुबन्ध का अप्रत्याशित खण्डन कहलायेगी।

अनुबन्ध के खण्डन (भंग) होने पर पीड़ित पक्षकार को उपलब्ध उपचार

किसी भी अनुबन्ध में पक्षकारों का यह वैधानिक कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व हो जाता है कि वे अपने द्वारा किये गये वचन की पूर्ति करें। परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वे सदैव अपने द्वारा दिये गये वचन की पूर्ति करें। जब अनुबन्ध के पक्षकारों में से एक अपने कर्तव्यों तथा दायित्वों का निर्वाह नहीं करता, तो अनुबन्ध का खण्डन हुआ माना जाता है। ऐसी स्थिति में अनुबन्ध का खण्डन करने वाले पक्षकार के विरुद्ध खण्डन से पीड़ित या त्रस्त पक्षकार को कुछ उपचार उपलब्ध होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

1. अपने वचन के निष्पादन से मुक्ति- अनुबन्ध भंग की स्थिति में पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध के अन्तर्गत दायित्वों से मुक्ति मिल जाती है और उसे अनुबन्ध को समाप्त हुआ मानने का अधिकार है।

2. उचित पारिश्रमिक के लिए दावा करने का अधिकार- अर्जित परिणाम का आशय है, “किसी व्यक्ति को उतना धन देना है, जितना कि उसने कमाया है।” जब एक पक्षकार किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत दूसरे पक्षकार को कुछ वस्तु प्रदान करता है या उसके लिए कुछ कार्य या सेवा करता है यदि अनुबन्ध की शर्तों द्वारा अनुबन्ध खण्डित होने पर उसे वस्तु, कार्य या सेवा के लिए मूल्य अथवा पुरस्कार निर्धारित नहीं होता, तो उसे ‘उचित पारिश्रमिक’ पाने का अधिकार है। इसके अलावा वह हर्जाने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

उदाहरणार्थ, यदि ‘क’, ‘ख’ के लिए एक वर्ष तक किसी वस्तु की पूर्ति का अनुबन्ध करता है अथवा उसके लिए किसी वस्तु के निर्माण का अनुबन्ध करता है और ‘ख’ अनुबन्ध की समाप्ति से पूर्व ही उसका खण्डन कर देता है, तो ‘क’ को उचित पारिश्रमिक के सिद्धान्त के आधार पर खण्डन के समय तक की गयी सेवा के लिए उचित पारिश्रमिक पाने का अधिकार है। साथ ही वह अनुबन्ध के खण्डन के लिए हर्जाने का दावा भी कर सकता है।

3. हर्जाना प्राप्त करने का अधिकार- पीड़ित पक्षकार उस राशि के लिए क्षतिपूर्ति का दावा भी कर सकता है, जिसकी हानि उसने अनुबन्ध के खण्डन के कारण उठाई है। यह हर्जाना उसे हुई हानि की क्षतिपूर्ति के अनुरूप होगा, न कि खण्डन करने वाले पक्षकार के दण्डस्वरूप।

4. विशिष्ट निष्पादन के लिए दावे का अधिकार- कभी-कभी किसी अनुबन्ध के खण्डन की दशा में केवल हर्जाना पा लेना ही समुचित उपचार नहीं होता अर्थात् हर्जाने से ही दूसरे पक्ष को हुई हानि की पर्याप्त क्षतिपूर्ति नहीं हो पाती। विशिष्ट उपचार अधिनियम (Specific relief Act) के अन्तर्गत, पीड़ित पक्षकार दूसरे पक्षकार को उसके वचन का निष्पादन करने के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर सकता है। उदाहरणार्थ, ‘ब’ एक ऐसे फ्लैट की खोज में हैं, जो उसके सेवा स्थान से निकट हो। ‘अ’ के पास ऐसा फ्लैट होने पर ‘ब’ उसे लेने का अनुबन्ध कर लेता है। अब यदि ‘अ’ अपने वचन के निर्वाह से इनकार कर देता है, तो ‘ब’ को अनुबन्ध के विशिष्ट निष्पादन कराने के लिए वाद प्रस्तुत करने का हक है।

5. निषेधाज्ञा जारी करने के लिए दावा- यदि एक पक्षकार अनुबन्ध के दिये गये अपने वचन से मुकरने का मन्तव्य प्रकट करता है, तो दूसरा पक्षकार उससे विशिष्ट निष्पादन कराने के उद्देश्य से न्यायालय को ऐसी निषेधाज्ञा जारी करने के लिए आवेदन कर सकता है, जिससे अनुबन्ध भंग करने वाला पक्षकार ऐसा करने में असफल हो। उदाहरणार्थ, किसी ‘शो’ के आयोजन के लिए ‘अ’, ‘ब’ का एक हॉल कुछ समय के लिए किराये पर लेने का अनुबन्ध करता है। परन्तु बाद में ‘ब’, ‘अ’ को न देकर ‘स’ को हॉल देने को प्रवृत्त होता है। ‘अ’ उसके इस कार्य पर निषेधाज्ञा जारी कराने का आवेदन दे सकता है।

हर्जाने का निर्धारण करने वाले सिद्धान्त-

(1) पीड़ित पक्षकार को क्षतिपूर्ण कराने का अधिकार पीड़ित पक्षकार को भंग होने की परिस्थिति में दो प्रकार की क्षति पूर्ति प्राप्त होने का अधिकार प्राप्त होता है-प्रथम, जबकि हानि सामान्य अनुबन्ध के भंग होने के परिणाम स्वरूप हुई हो। जैसे A, B को 100 बोरी चीनी विक्रय करने हेतु अनुबन्ध करता है, परन्तु यदि A अपने द्वारा किये गये अनुबन्ध की पूर्ति नहीं करता है तो B को यह अधिकार है कि वह 100 बोरी चीनी किसी पक्षकार से खरीद ले तथा इस व्यवहार में उत्पन्न होने वाली हानि की पूर्ति A से कराये। द्वितीय जबकि पक्षकारों को अनुबन्ध भंग होने के परिणामों का ज्ञान पहले से ही होता है जैसे- A, B को 500 बोरी चीनी 500 रु० प्रति बोरी की दर से विक्रय करने का अनुबन्ध करता है तथा उसी दिन C से उसी किस्म की चीनी 500 बोरी 480 रु० प्रति बोरी की दर से क्रय करने का अनुबन्ध करता है। यदि C उपर्युक्त अनुबन्ध के अनुसार चीनी देने में असमर्थ रहता है तो A, C से 10000 रु० जो कि उसे इस व्यवहार से उत्पन्न लाभ प्राप्त होता है अर्थात् वह इसे प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है।

(2) अप्रत्यक्ष हानि की स्थिति में हर्जाना नहीं मिलता-अनुबन्ध के भंग होने के परिणामस्वरूप पीड़ित पक्षकार अप्रत्यक्ष हानि के लिए अधिकारी नहीं होता। जैसे- A अपने नौकर को B के पास भेजता है और उसके माध्यम से एक मशीन नमूने के लिए भेजा है ताकि वह इस नमूने के आधार पर मशीनों का निर्माण कर सके। परन्तु नौकर B के पास ले जाने के स्थान पर फरार (गायब) हो जाता है, अत: A को नई मशीनें समय पर प्राप्त न हो सर्की, जिसके परिणामस्वरूप उसे व्यापारिक हानि उठानी पड़ी। A इस प्रत्यक्ष हानि के लिए B पर वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता है। परन्तु A का अपने नौकर पर मशीन लेकर भागने के लिए भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत वाद योजित करने का अधिकार सुरक्षित रहेगा।

(3) हानि का अनुमान लगाते समय विद्यमान साधनों को ध्यान मे रखना आवश्यक है- पीड़ित पक्षकार को चाहिए कि अपनी हानि को कम करने के लिए उस समय उपलब्ध साधनों का उपयोग अवश्य करें। परन्तु यदि उसने ऐसा नहीं किया तो केवल हानि उतनी ही दी जायेगी जितनी कि साधनों का प्रयोग करने के बाद होनी चाहिए।

(4) निश्चित हर्जाने की दशा में- यदि अनुबन्ध करते समय अनुबन्ध को भंग करने वाले पक्षकार के लिए हर्जाने की राशि पहले से ही निश्चित की गयी थी तो पीड़ित पक्षकार केवल निश्चित राशि को ही प्राप्त करने का अधिकार होगा जैसे- A, B के साथ अनुबन्ध करता है। कि वह किसी वस्तु का निश्चित अधिकारी होगा जैसे- A, B के साथ अनुबन्ध करता है कि वह किसी वस्तु की निश्चित मात्रा में पूर्ति करता रहेगा। परन्तु यदि पूर्ति न कर सका, तो वह उसे 500 रु. मात्र हर्जाने के रूप में देगा। इस परिस्थिति में केवल हर्जाना ही प्राप्त किया जा सकेगा। भले ही पीड़ित पक्षकार को इससे अधिक हानि क्यों न उठानी पड़ी हो।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment