इतिहास शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
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इतिहास शिक्षण के सामान्य उद्देश्य
इतिहास शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों का स्पष्टीकरण निम्नलिखित पंक्तियों में किया गया है-
1. भूतकाल के आधार पर वर्तमान का स्पष्टीकरण करना – इतिहास हमारे भूतकाल का अध्ययन है, जिसके अन्तर्गत मानव के उदय से लेकर वर्तमान क्षण तक के मानवीय क्रिया-कलापों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में निहित अनुभव हमारे वर्तमान में सहायक सिद्ध होते हैं। इस सन्दर्भ में जॉन्स का यह कथन उचित है कि- “इतिहास जीवन के अनुभवों की खान है और आज का नवयुवक इतिहास का अध्ययन इसलिये करता है, जिससे वह अपनी जाति के अनुभवों से लाभान्वित हो सके।” वस्तुतः इतिहास हमारे वर्तमान को स्पष्ट करने में अत्यन्त सहायक है। इतिहास के अभाव में अपने वर्तमान को समझ पाना इसलिए कठिन है, क्योंकि भूतकाल में मानव क्रिया-कलापों की जानकारी से अनभिज होकर हम यह ज्ञात नहीं कर सकते कि हमारे वर्तमान विकास की पृष्ठभूमि में कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं, किन-किन परिस्थितियों का योगदान है, अथवा भूत के परिपेक्ष्य में किसी भी क्षेत्र में किस प्रकार प्रगति किया जाना सम्भव हो सका है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समस्याओं में निहित कारणों एवं परिस्थितियों का स्पष्ट ज्ञान भी भूतकाल के विवरण से ही प्राप्त हो सकता है। वर्तमान जटिलताओं अथवा समस्याओं के समाधान हेतु इस जानकारी के अभाव में किसी भी प्रकार की योग्यता अथवा कौशल का विकास प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकता। वस्तुतः इतिहास एक ऐसा विषय है, जिसका ज्ञान प्रत्येक छात्र के लिये परम आवश्यक है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि विकास की प्रक्रिया अथवा विकास के कारणों एवं परिस्थितियों से अनभिज्ञ रहकर किसी भी छात्र के प्रभावशाली विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। कार्ल आगस्त मूलर ने उचित ही लिखा है— “इतिहास के द्वारा हम अपने काल की क्रियाओं का अर्थ सकते हैं, तथा यदि इतिहास नहीं होगा, तो विद्यालय अध्ययन तथा अध्यापन निरर्थक है, क्योंकि इतिहास हमारे वर्तमान को स्पष्ट करता है।”
2. मानवीय विकास का सुसम्बद्ध ज्ञान प्रदान करना- इतिहास एक ऐसा विषय है, जिसके माध्यम से समस्त मानवीय विकास की सुसम्बद्ध जानकारी प्रदान की जा सकती है। समाज के समस्त क्षेत्रों से सम्बन्धित विकास की समग्र जानकारी प्रदान करके, छात्रों में समन्वयात्मक दृष्टिकोण का विकास किया जा सकता है तथा उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से, अधिगम की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। समन्वित एवं सुसम्बद्ध ज्ञान प्राप्त करके बालकों का मानसिक दृष्टिकोण तो व्यापक होता ही है, इसके अतिरिक्त ज्ञान का सदुपयोग करने की सम्भावनाओं में भी वृद्धि होती है। वस्तुत: इतिहास ही एकमात्र ऐसा विषय है, जिससे प्राप्त विविध एवं व्यापक अनुभवों को प्राप्त करके छात्रों के व्यक्तित्व, चरित्र एवं मस्तिष्क का प्रभाव विकास सम्भव है, परन्तु वर्तमान पाठ्यक्रम एवं पाठ्यक्रम पर आधारित अनुभवों के प्रस्तुतीकरण सम्बन्धी दोष के कारण इस उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की व्यावहारिक सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी तथ्य से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं की जानकारी बालकों के अनुभवों का विस्तार करके उन्हें यथार्थ परिस्थितियों में अधिकाधिक विवेकपूर्ण निर्णय लेकर सफलता की दिशा में प्रेरित कर सकती है।
3. कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण में सहायक – प्रजातन्त्र की सफलता कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण पर अवलम्बित होती है। यद्यपि कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण में मुख्यतः नागरिकशास्त्र ही सहायक होता है, परन्तु नागरिक शास्त्र के साथ-साथ इतिहास के द्वारा भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में छात्रों में ऐसे गुणों एवं योग्यताओं का आर्विभाव किया जा सकता है, जो उसे आदर्श नागरिकता की दिशा में प्रेरित करती हों। आदर्श नागरिक के लिये यह आवश्यक है कि इसमें सामाजिक, राजनैतिक जागरूकता हो, उसमें राष्ट्रीय चरित्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास हो, तथा वह अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते हुए अपने सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में, विविध प्रकार के योगदान देने में समर्थ हो सके। इतिहास इन समस्त दृष्टियों से छात्रों को आदर्श नागरिकता का पाठ पढ़ाने में सहायक है। वस्तुतः यदि निष्पक्षतापूर्वक इतिहास की अध्ययन सामग्री का विश्लेषण किया जाय, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि आदर्श नागरिकता की दिशा में व्यावहारिक दृष्टि से गतिशील होने की प्रमुख प्रेरणा इतिहास के माध्यम से प्राप्त होती है। उदाहरण के लिये इतिहास के अन्तर्गत हम अपने राष्ट्रीय आन्दोलन एवं राष्ट्रीय महापुरुषों के योगदान के फलस्वरूप प्राप्त की गई स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करके ही यह अनुभूत कर सकते हैं कि वर्तमान स्वतन्त्रता के लिये, स्वतन्त्रता सेनानियों को संघर्ष के दौरान कितना कष्ट सहन करना पड़ा, स्वतन्त्रता से पूर्व गुलामी की स्थिति में भारतीयों की क्या दशा रही तथा गुलामी से पूर्व एवं गुलामी के उपरान्त के जन-जीवन में क्या अन्तर है, यह ज्ञान प्राप्त करके ही हम राष्ट्रीय जन-जीवन के महत्व को समझ सकते हैं, राष्ट्रीय व्यवस्था में अपने कर्त्तव्य व अधिकारों का पालन करने के लिये स्वतः प्रेरित हो सकते हैं, तथा समाज की विभिन्न इकाइयों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखकर एकता, समानता, भातृत्व एवं स्वतन्त्रता के आधार पर परस्पर योगदान दे सकते हैं।
4. वर्तमान के मूल्यांकन व भविष्य के आंकलन हेतु- इतिहास के आधार पर हमें भूतकाल में किये गये विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित मानवीय प्रयासों की जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि किसी विशिष्ट क्षेत्र में वर्तमान युग में कितनी सफलता प्राप्त हुई है अथवा कितनी नहीं। उदाहरण के लिये भूतकाल के विभिन्न युगों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति का अध्ययन करके हम यह पता लगा सकते हैं कि पारस्परिक सम्बन्धों की दृष्टि से, सांस्कृतिक प्रगति की दृष्टि से अथवा आदर्श मूल्यों की दृष्टि से वर्तमान समाज में कितनी प्रगति हो सकी है। इस प्रकार पूर्व अध्ययन के आधार पर हम अपने वर्तमान का मूल्यांकन कर सकते हैं तथा अभीष्ट की दिशा में वांछित प्रयास करने हेतु प्रेरित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त इतिहास निहित अनुभवों के आधार पर हम अपने भविष्य का आंकलन करने में समर्थ हो सकते हैं, भूतकाल में निहित अनुभवों के आधार पर हमें यह ज्ञात हो सकता है कि किसी प्रयास, कारण, घटना अथवा परिस्थिति का क्या परिणाम होता है। इस प्रकार के अनुभव को प्राप्त करके हम अपनी वर्तमान समस्याओं, परिस्थितियों, प्रगति अथवा विफलताओं के परिपेक्ष्य में भी यह आंकलन कर सकते हैं कि, भविष्य में इनके परिणाम अथवा प्रभाव क्या होंगे, तथा किस सीमा तक हम सफल अथवा असफल हो सकेंगे।
5. अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास- विश्व शान्ति, स्थायित्व एवं सहयोग आदि के विकास के अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास वर्तमान शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है। इतिहास छात्रों के मानसिक अन्तरिक्ष को विकसित करके इस उद्देश्य की पूर्ति में अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है, जिसके आधार पर छात्रों में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का विकास होता है। विगत महायुद्धों के विनाशकारी प्रभाव और वर्तमान विश्व की तनावपूर्ण परिस्थितियों के परिपेक्ष्य में इतिहास के माध्यम से इस उद्देश्य की प्राप्ति करना और भी अधिक आवश्यक हो जाता है। इस उद्देश्य के अन्तर्गत इतिहास के द्वारा छात्रों में विश्व नागरिकता, विश्व एकता एवं विश्व शान्ति की दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है। इतिहास के द्वारा हम भूतकाल में विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक योगदान, सम्बन्ध, सन्धियों, समझौतों अथवा सहयोग आदि का उल्लेख करके, विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों, प्रमुख महापुरुषों एवं धर्मों का अध्ययन करते हैं। मानवीयता का त्याग करके, क्षुद्र स्वार्थ पूर्तियों हेतु, किये गये साम्राज्यवादी अथवा विनाशकारी प्रयासों से छात्रों को अवगत कराते हैं। इतिहास के द्वारा छात्रों को उन आन्दोलनों एवं विश्व के महापुरुषों का ज्ञान प्राप्त होता है, जिन्होंने विश्व-बन्धुत्व अथवा विश्व विकास के निमित्त योगदान दिया। इस प्रकार के तथ्यों का अध्ययन करके छात्रों को यह ज्ञात हो पाता है कि विश्व के विभिन्न राष्ट्र किस प्रकार से एक-दूसरे के विकास में विभिन्न क्षेत्रों में सहायक होते हैं, तथा विश्व बन्धुत्व अथवा विश्व एकता की भावना को त्यागकर, समस्त मानव जाति को किस प्रकार के परिणामों से प्रभावित होना पड़ता है। इस प्रकार के विवरण के आधार पर ही उनमें विश्व एकता सहयोग, एवं विश्व शान्ति बनाये रखने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास होता है।
6. मानसिक शक्तियों के विकास हेतु- यद्यपि मानसिक शक्तियों के विकास में प्रायः प्रत्येक विषय किसी न किसी रूप में सहायक सिद्ध होता है, परन्तु इतिहास के द्वारा छात्रों की अनेक विशिष्ट मानसिक क्षमताओं का एक साथ विकास करने में सहायता प्राप्त होती है। इतिहास में भूतकालीन तथ्यों का वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुतीकरण किया जाता है तथ्यों के सम्बन्ध में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं तथा वैज्ञानिक विधि के आधार पर तथ्यों का विश्लेषण एवं सामान्यीकरण करते हुए निष्पक्ष निर्णयों को प्रस्तुत किया जाता है। इसके द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक बुद्धि का विकास होता है। वे इतिहास में प्रस्तुत व्यापक अनुभवों का विश्लेषण एवं संश्लेषण करने के उपरान्त तथ्यों के सम्बन्ध में यथार्थ एवं निष्पक्ष निर्धारण करना सीखते हैं। साथ ही वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषित एवं संश्लेषित तथ्यों को सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने अथवा अभिव्यक्त करने की कला का ज्ञान भी उन्हें हो जाता है इतिहास में प्रस्तुत किये गये तथ्यों के वैज्ञानिक प्रस्तुतीकरण के आधार पर ही वे अपने वर्तमान जीवन से सम्बन्धित समस्याओं के कारणों, परिणामों, अथवा प्रभावों की खोज करना भी सीख जाते हैं, उनमें स्वतन्त्र चिन्तन का विकास होता है, तथा वे तर्क, आलोचना, विवेचना, आदि में प्रवीण हो जाते हैं। यही नहीं, छात्रों की स्मरण शक्ति एवं कल्पना-शक्ति के विकास में भी इतिहास एकमात्र ऐसा विषय है, जो सर्वाधिक सहायक सिद्ध होता है। इस सम्बन्ध में के० डी० घोष ने उचित ही लिखा है- “इतिहास के द्वारा बालकों को एक विशेष प्रकार की मानसिक शिक्षा दी जाती है, जो कि शिक्षालय के किसी अन्य विषय द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती है।”
7. अतीत से प्रेम उत्पन्न करने हेतु- वर्तमान विद्यालयों में छात्रों को भूतकाल से सम्बन्धित तथ्यों के सम्बन्ध में, यथोचित जानकारी प्रदान नहीं की जाती। इसका कारण विद्यालय के छात्रों द्वारा इतिहास विषय में पर्याप्त रूचि उत्पन्न होना है, साथ ही विद्यालयों में इतिहास का प्रस्तुतीकरण भी दोषपूर्ण होने के कारण प्रभावहीन रहता है, परिणामस्वरूप छात्रों में अपनी भूतकालीन संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति सम्मान एवं गौरव की भावना का उदय नहीं हो पाता है। अपने विगत से अनभिज्ञ रहने के कारण ही वे अपने वर्तमान जीवन मूल्यों, आदर्शों, विचारधाराओं, जीवन शैली अथवा भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं विस्तार के प्रति भी सजग एवं सचेत नहीं रह पाते हैं। विद्यालय के पाठ्यक्रम में इतिहास एकमात्र ऐसा विषय है, जिसके द्वारा छात्रों को उनके अतीत से परिचित कराकर उन्हें अपने अतीत का सम्मान करने और उस पर गौरव करने की भावना का उदय किया जा सकता है। अतीत से प्रेम उत्पन्न होने पर ही छात्र आदर्शों एवं श्रेष्ठ जीवन मूल्यों के अनुरूप अपनी जीवन शैली का निर्माण कर सकते हैं, राष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा एवं विस्तार में सहयोग प्रदान कर सकते हैं तथा पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता का अन्धानुकरण करने के स्थान पर स्वयमेव अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने में सक्षम हो सकते हैं।
8. छात्रों के व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास- छात्रों के व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास करना भी इतिहास के प्रमुख उद्देश्यों के अन्तर्गत आता है। इस विषय के अभाव में छात्रों के समुन्नत व्यक्तित्व अथवा आदर्श चरित्र के निर्माण की कल्पना की जानी व्यर्थ है। किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की प्रगति शान्ति एवं स्थायित्व के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि विद्यालयों में अध्ययनरत भावी पीढ़ी के व्यक्तित्व एवं चरित्र पर विशेष ध्यान दिया जाये। किसी भी व्यक्ति समाज अथवा राष्ट्र की इस आकांक्षा को पूर्ण करने में इतिहास महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। किसी विशिष्ट व्यवहार के प्रभाव अथवा परिणाम की अनुभूति करने के उपरान्त ही हम उस व्यवहार को अपने जीवन में अपनाने के लिये प्रेरित हो सकते हैं। इतिहास इस दृष्टि से अनेक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। इतिहास में विभिन्न महापुरुषों के जीवन गाथाओं एवं उनके कार्यों का प्रभावपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इस विवरण के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया जाता है कि किसी व्यक्ति को महान् बनने में किस प्रकार की पारिवारिक, सामाजिक दशाओं अथवा परिस्थितियों का योगदान रहा, “महानता की दिशा में स्वनिर्माण करने हेतु उसने स्वयं में किन-किन योग्यताओं व गुणों का प्रादुर्भाव किया, युग की अपेक्षाओं अथवा आवश्यकताओं को पहचान कर किस प्रकार समाज अथवा राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान दिया अथवा अपने योगदान के परिणामस्वरूप सामाजिक शक्ति, सम्मान अथवा समृद्धि के रूप में उसे क्या प्राप्त हुआ। साथ ही इतिहास के अन्तर्गत देशद्रोहियों, असामाजिक तत्त्वों, उग्रवादियों, सामाज्यवादियों अथवा सभ्यता एवं संस्कृति के विनाश में योगदान करने वाले व्यक्तियों के कार्यों और कार्यों के परिणामस्वरूप उनके प्रति समाज अथवा राष्ट्र की कटु प्रतिक्रियाओं का उल्लेख भी किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन के द्वारा छात्रों में आदर्श जीवन जीने पर कल्याण हेतु समाज में अपना योगदान करने अथवा महापुरुषों के समकक्ष बनने की प्रेरणा स्वतः उत्पन्न होती है, और इसके लिए वे अपने व्यक्तित्व एवं चरित्र के विकास हेतु निष्ठापूर्वक प्रयास करने लगते हैं।
9. सामाजिक क्षमताओं का विकास – व्यक्ति अथवा समाज के विकास के लिये उनके पारस्परिक सम्बन्ध का विकास होना अत्यन्त आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों को समाज के महत्त्व की अनुभूति हो सके, तथा वे समाज के प्रति अपना योगदान देने की दशा में स्वतः प्रवृत्त हो सकें। बालकों को समाज के महत्त्व को आत्मसात कराने अथवा उनके समाजीकरण की प्रक्रिया हेतु उनमें अनेक सामाजिक क्षमताओं का विकास आवश्यक होता है। इतिहास का पाठ्यक्रम इस दृष्टि से भी छात्रों के विकास में सहायक होता है। समाज के विकास अथवा समाज के संगठन एवं महत्त्व आदि का भिन्न-भिन्न युगों के परिपेक्ष्य में अध्ययन करके, छात्रों को स्वतः यह निष्कर्ष निकालने में सहायता प्राप्त होती है कि व्यक्ति और समाज का पारस्परिक सम्बन्ध अत्यन्त घनिष्ठ है, इस सम्बन्ध के अभाव में व्यक्ति और समाज दोनों की ही प्रगति असम्भव है, तथा ‘जीओ और जीने दो’ के सिद्धान्त का अनुकरण करके ही हम एक-दूसरे के विकास में सहायक हो सकते हैं। इसके विपरीत स्थिति में न तो स्वयं के अस्तित्व की ही कल्पना की जा सकती है और न ही समाज की संक्षेप में, छात्रों को यह ज्ञान हो जाता है कि समाज से पृथक् रहकर वे सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकते, सुखी जीवन हेतु उन्हें समाज से समायोजन करना आवश्यक है, तथा इसके लिये उन्हें स्वस्थ सामाजिक आदतों, •सामाजिक क्षमताओं एवं सहयोग, सहकारिता, सहानुभूति इत्यादि गुणों का प्रादुर्भाव स्वयं करना नितान्त आवश्यक है। इस प्रकार इतिहास में न केवल तथ्यात्मक सूचनाओं को ही प्रस्तुत किया जाता है, अपितु उन तथ्यों के आधार पर व्यक्ति को एक सफल सामाजिक प्राणी बनाने हेतु, उसमें विभिन्न सामाजिक अभिव्यक्तियों, रुचियों अथवा कौशलों के निर्माण में भी सहायता प्रदान की जाती है।
10. राष्ट्रीय भावना का विकास- राष्ट्रीय भावनाओं के विकास में भी इतिहास विशेष रूप में सहायक है। राष्ट्रीय शान्ति, स्थायित्व, प्रगति एवं समृद्धि के लिये राष्ट्रीय भावना का विकास परम आवश्यक है। इसके अभाव में राष्ट्रीय अखण्डता की कल्पना नहीं की जा सकती। वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में विभिन्न तनावपूर्ण परिस्थितियों के लिये राष्ट्रीय भावना की अनुपस्थिति एक प्रमुख कारण के रूप में सहायक सिद्ध हो रही है, जिसके फलस्वरूप राष्ट्र में आन्तरिक अशान्ति, तनाव, कलह, एवं संघर्ष का वातावरण बना हुआ है। इतिहास के द्वारा छात्रों को उनकी राष्ट्रीय संस्कृति, राष्ट्रीय आदर्शों, राष्ट्रीय सम्पदा एवं प्रतीकों तथा राष्ट्रीय महापुरुषों के व्यक्तित्व एवं कार्यों से परिचित कराकर छात्रों में राष्ट्रीय भावना का विकास किया जा सकता है। अपने भूतकालीन पूर्वजों के गौरवशाली कार्यों का अध्ययन करके ही छात्रों में देश भक्ति के उदय की कल्पना की जा सकती है। इसके अतिरिक्त इतिहास में राष्ट्र की प्रगति एवं अप्रगति के कारण, पारस्परिक फूट, वर्ग-भेद, एवं गुलामी के प्रभावों तथा स्वतन्त्रता की प्राप्ति हेतु किये गये, संघर्षमय प्रयासों का उल्लेख करके भी छात्रों को राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत किया जा सकता है। इतिहास के माध्यम से ही छात्रों में अनेक ऐसे दृष्टिकोणों एवं धारणाओं का विकास होता है, जिससे वे अपनी राष्ट्रीय संस्कृति का सम्मान करते हुये उसकी सुरक्षा एवं विस्तार में अपना योगदान देने के लिये तैयार होते हैं।
विभिन्न स्तरों पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य
1. प्राइमरी स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य – प्राइमरी स्तर पर इतिहास शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्यों को निर्धारित किया जा सकता है-
- छात्रों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना।
- छात्रों में विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास करना।
- छात्रों की कल्पना शक्ति को जाग्रत करना ।
- छात्रों की स्मृति व पहचान शक्ति का विकास करना।
- भूतकालीन घटनाओं का वर्तमान पर होने वाले प्रभाव से परिचित करना।
- ऐतिहासिक बर्तनों, खिलौनों, सिक्कों, चित्रों की एलबम आदि के निर्माण का कौशल उत्पन्न करना।
- समय चार्ट, समय रेखा आदि के माध्यम से समय ज्ञान का विकास करना।
- इतिहास में छात्रों की रुचि उत्पन्न करना।
2. जूनियर स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य- जूनियर स्तर पर इतिहास शिक्षक को निम्नलिखित उद्देश्यों के आधार पर शिक्षण करना चाहिये-
- विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास करना।
- भूतकाल के परिपेक्ष्य में छात्रों को वर्तमान का ज्ञान कराना।
- इतिहास के प्रति छात्रों में प्रेम उत्पन्न करना।
- छात्रों में देश-प्रेम की भावना का विकास करना।
- समय रेखा, ऐतिहासिक मानचित्रों, रेखाकृति, ऐतिहासिक प्रतिरूप आदि के निर्माण का कौशल उत्पन्न करना।
- अमूर्त साधनों के आधार पर समय-ज्ञान का विकास करना।
- छात्रों की विचार-शक्ति को जाग्रत करना।
3. माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य – माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्यों को निर्धारित किया जा सकता है-
- समन्वयात्मक ज्ञान के आधार पर उनके मानसिक अन्तरिक्ष का विस्तार करना।
- कर्त्तव्यनिष्ठ नागरिकों के निर्माण में सहायक गुणों का विकास करना ।
- भूतकाल एवं वर्तमान के आधार पर भविष्य के आंकलन की क्षमता विकसित करना।
- तर्क, चिन्तन, कल्पना, निर्णय शक्ति का विकास करना।
- छात्रों को सामाजिक योग्यताओं एवं क्षमताओं के द्वारा समायोजन के योग्य बनाना ।
- छात्रों में इतिहास के प्रति रुचि जाग्रत करना ।
- छात्रों में समय-ज्ञान को और अधिक विकसित करना ।
- भारतीय जीवन के ढंग अथवा जीवन शैली से अवगत कराना।
- विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु लेख लिखने एवं व्यावहारिक दृष्टि से समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास करने में रुचि उत्पन्न करना।
- विश्व के महापुरुषों एवं विश्व संस्कृति के अध्ययन में रुचि उत्पन्न करना ।
- ऐतिहासिक तथ्यों की तुलना, समीक्षा व समालोचना करने की क्षमता का समुचित विकास करना।
- छात्रों को मानवीय विकास की क्रमबद्ध जानकारी प्रदान करना ।
- भूतकाल के आधार पर वर्तमान को समझने हेतु योग्य बनाना।
- विश्व संस्कृति का ज्ञान प्रदान करके अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास करना।
- अपने अतीत के प्रति प्रेम, आदर एवं गौरव की भावना उत्पन्न करना ।
- छात्रों के व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास करना ।
- छात्रों में राष्ट्रीय भावना का विकास करना।
- छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना ।
- विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं से परिचित कराकर छात्रों को उनके समाधान हेतु सक्षम बनाना।
- छात्रों को ज्ञान का भण्डार प्रदान करके उन्हें तथ्यों की दृष्टि से ज्ञान सम्पन्न बनाना।
- अन्तर्राष्ट्रीय मेलों, प्रदर्शनियों आदि में भाग लेने में रुचि उत्पन्न करना।
- मानचित्र, समय-रेखा आदि के निर्माण एवं प्रयोग का कौशल उत्पन्न करना।
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