एक अच्छे अध्यापक के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक गुण लिखिये !
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एक अच्छे अध्यापक के गुण
इस पक्ष में अध्यापक को मानसिक क्षमता, शिक्षा, विषय सम्बन्धी ज्ञान, शिक्षण अनुभव आदि पर सम्मिलित होते हैं। प्रभावशाली अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि वह बुद्धिमान हो तथा उसकी उच्च शैक्षिक निष्पत्ति हो ।
एम. एस. बार (1967) ने अनेक अध्ययनों के निष्कर्ष के फलस्वरूप अध्यापक की निर्णय लेने की क्षमता, विचार शक्ति तथा मानसिक जागरूकता का उसकी शिक्षण कुशलता से गहरा सम्बन्ध बताया। एक अच्छे अध्यापक के गुणों को प्रमुख रूप से तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है।
- ज्ञानात्मक गुण
- भावात्मक गुण
- क्रियात्मक गुण
एक अच्छे अध्यापक में इस प्रकार के गुणों का होना आवश्यक है तभी वह एक प्रभावशाली अध्यापक कहा जा सकता है। इन प्रमुख गुणों का विवरण यहां दिया गया है:-
अध्यापक के ज्ञानात्मक गुण
प्रशिक्षण विद्यालयों में प्रवेश देते समय इस बात को भी विशेष महत्व दिया जाता है कि जो छात्र इस व्यवसाय में सम्मिलित हो, वह कम से कम औसत शैक्षिक निष्पत्ति वाले हों। यह सत्य है कि किस प्रकार संवेगात्मक दृष्टि से अस्थिर व्यक्ति शिक्षा व्यवसाय में सफल नहीं होता। उसी प्रकार निम्न शैक्षिक स्तर वाला व्यक्ति प्रभावशाली शिक्षण नहीं कर पाता है। यह देखा गया है कि उच्च स्तरीय ग्रेड़ बिन्दु का श्रेष्ठ शिक्षण से घनात्मक सह-सम्बन्ध है।
शिक्षा की ज्ञानात्मक, विशेषताओं में महत्वपूर्ण यह भी है कि अध्यापक अपने छात्रों के सम्बन्ध में कितना जानता है। ओजमैन तथा विल्किन (1939) ने अपने प्रारम्भिक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला था कि जो अध्यापक अपने छात्रों के बारे में अधिक जानते हैं तथा छात्रों से सम्बन्धित अनेक सूचनाओं से परिचित होते हैं, उनसे छात्रों की शैक्षिक निष्पत्ति उन क्षेत्रों की तुलना में अधिक होती है जिसके अध्यापक उनके बारे में कुछ नहीं जानते हैं। प्रशिक्षण काल में अध्यापक के अध्यापन अभ्यास की निष्पत्ति का भी शिक्षण कुशलता के साथ घनात्मक सम्बन्ध होता है।
साठमन तथा एशर (1964) से निष्कर्ष निकाला कि अध्यापक के शैक्षिक स्तर तथा शिक्षण अभ्यास प्रोग्राम का कक्षा अनुशासन तथा विषय की तैयारी के साथ गहरा सम्बन्ध है। अध्यापक को अपने विषय का ज्ञान कितना है? तथा विषय की तैयारी वह किस प्रकार करता है? इसका प्रभाव भी उसकी शिक्षण कुशलता पर पड़ता है।
अध्यापक के भावात्मक गुण
भावात्मक विशेषताओं के अन्तर्गत अध्यापक के संवेग, रूचियों, अभिवृत्ति, मूल्य तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी आती है। शुनर्ट (1951) ने निष्कर्ष निकाला कि लक्षण तथा प्रक्रिया का हाई स्कूल छात्रों की गणित की निष्पत्ति से गहरा सम्बन्ध था।
एन्डरसन का कहना था कि प्रभुत्ववादी अध्यापक कक्षा पर अच्छा व वांछित प्रभाव चक्र को उत्पन्न करने वाले होते हैं। समन्वयी अध्यापक के पढ़ने वाले छात्र भी समन्वयी मनोवृत्ति वाले हो जाते है तथा इन छात्रों में अधिक स्वभाविकता व अच्छा संवेगात्मक व सामाजिक समायोजन पाया जाता है।
एन्डरसन ने निष्कर्ष निकाला कि समन्वयी अध्यापक सभी प्रकार के छात्रों के साथ अधिक प्रभावशाली होते हैं। जबकि कम समन्वयी अध्यापक कक्षा में कम प्रभावशाली होते हैं तथा कक्षा में भय की स्थिति अधिक होती है, जैसे कम प्रवीण अध्यापकों के छात्रों में उत्साह व प्रेरणा का अभाव होता है। अध्यापक के व्यक्तित्व के साथ छात्र की निष्पत्ति का गहरा सम्बन्ध होता है।
अध्यापक के कौशल सम्बन्धी गुण
अध्यापक की क्रियात्मक कुशलता का उसकी शिक्षण प्रभावशीलता से क्या व कितना सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध में कोई अध्ययन प्राप्त नहीं हुआ है। अध्यापक छात्रों के समक्ष एक आदर्श प्रतिमान होता है, जिसका अनुकरण छात्र करते हैं। अतः अध्यापक में पूर्ण कौशल नितान्त आवश्यक है ताकि वह छात्रों की त्रुटियों को शुद्ध कर सकें तथा उन्हें सही क्रिया करने का निर्देश दे सकें। छात्रों का सही शिक्षा स्वयं अध्यापक भी दे सकता है अथवा फिल्म या अन्य दृश्य-श्रव्य अन्य साधन की सहायता भी ले सकता है। आज शिक्षा को धनोपार्जन का साधन मान लिया गया है। शिक्षा की उत्कृष्ट विशेषताओं से कुछ भी लेना-देना नहीं हैं। आज की आवश्यकता यह है कि इस प्रकार के भटकाव से किस प्रकार बचा जा सके। शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सशक्त यंत्र भी है।
शिक्षा में शिक्षणशास्त्रीय तत्वों को बढ़ावा दिया जाए और यह प्रक्रिया कक्षा से ही आरम्भ की जानी चाहिए। कक्षा से बाहर चर्चा करने से लाभ नहीं हो सकता है। कक्षा शिक्षण में अध्यापक की भूमिका अहम् होती है। इसलिए अध्यापक तथा प्राचार्य में निम्नांकित गुणों, भावनाओं तथा नैतिकता का विकास करने की आवश्यकता है।
- अध्यापक की जवाबदेही
- अध्यापक प्रतिबद्धता
- अध्यापक का वृतिक मानक
- शिक्षा की आचार संहिता
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