गिरवी रखने वाले के अधिकारों एवं कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
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गिरवी पर माल स्वीकार करने वाले के अधिकार
गिरवी पर माल स्वीकार करने वाले के निम्नलिखित अधिकार होते हैं-
1. माल अपने पास रोक कर रखने का अधिकार – गिरवी रख लेने वाला गिरवी रखी हुई वस्तुओं को सम्बन्धित ऋण के भुगतान अथवा वचन के निर्वाह के साथ-साथ ऋण पर ब्याज तथा गिरवी के माल की देखभाल व सुरक्षा पर किये गये व्ययों की पूर्ति में रोक सकता। गिरवी रख लेने वाले का वस्तु पर विशिष्ट पूर्वाधिकार है। अन्य ऋणों या देनदारियों के लिए नहीं। (धारा 173)
2. विशेष या असाधारण व्ययों की पूर्ति का अधिकार – गिरवी का माल स्वीकार कर लेने को उन समस्त असाधारण व्ययों की पूर्ति करवाने का अधिकार है, जो उसने गिरवी रखे माल की देखभाल व सुरक्षा के दृष्टिकोण से किये। (धारा 175)
3. गिरवी रखने वाले द्वारा त्रुटि किये जाने की दशा में अधिकार- नियत समय पर गिरवी रखने वाले द्वारा यदि उस ऋण के भुगतान अथवा उस वचन के निर्वाह में त्रुटि की जाती है जिसकी जमानत स्वरूप माल गिरवी रखा गया है तो गिरवी रख लेने वाले को निम्न अधिकार है।
(क) गिरवी रखने वाले के विरुद्ध ऋण के शोधन या वचन के निर्वाह के लिए वाद प्रस्तुत करना और माल को जमानत के तौर पर रोक कर रखना।
(ख) गिरवी के माल को बेच देना, किन्तु इससे पूर्व गिरवी रखने वाले को उचित सूचना दिया जाना आवश्यक है।
(ग) गिरवी रखे माल को बेचने से प्राप्त राशि यदि ऋणी से प्राप्त धनराशि से कम है, तो शेष धन ऋणी से प्राप्त करने की कार्यवाही करना। यदि बिक्री से प्राप्त धनराशि अधिक है तो उपयुक्त रकम काट कर शेष ऋणी को लौटा देना। (धारा 176)
गिरवी पर माल स्वीकार करने वाले के कर्तव्य
गिरवी पर माल स्वीकार करने वाला एक निक्षेपग्रहीता के रूप में होता है और इसके लिए उसके वे समस्त कर्तव्य होते हैं जो एक सामान्य निक्षेपग्रहीता को निभाने पड़ते है, उदाहरणार्थ-
- गिरवी पर प्राप्त माल की उचित देखभाल करना और उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करना। (धारा 152)
- गिरवी पर रखे माल का उपयोग न करना। (धारा 154)
- उस माल को अपने माल से पृथक् रखना। (धारा 156-157)
- गिरवी की समाप्ति पर माल को उसके स्वामी को लौटाना। (धारा 160-161)
- गिरवी रखने वाले की त्रुटि की दशा में उसका माल बेचने से पूर्व उसे उचित सूचना देना।
- गिरवी की शर्तों के विरुद्ध कार्य करना। (धारा 153)
- गिरवी के माल में हुई वृद्धि अथवा लाभ सहित वापस लौटाना। (धारा 163)
- असाधारण व्यय पाने के लिए माल को न रोकना। (धारा 175)
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