हिन्दी साहित्य

छायावादी विशेषताओं के आधार पर महादेवी वर्मा के काव्य की समीक्षा

छायावादी विशेषताओं के आधार पर महादेवी वर्मा के काव्य की समीक्षा
छायावादी विशेषताओं के आधार पर महादेवी वर्मा के काव्य की समीक्षा

छायावादी विशेषताओं के आधार पर महादेवी वर्मा के काव्य की समीक्षा कीजिए।

महादेवी वर्मा के काव्य में छायावाद की निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं-

(1) वैयक्तिकता (2) स्थूल के स्थान पर सूक्ष्मता (3) मानवीकरण (4) रहस्यात्मकता (5) लाक्षणिता का प्रयोग या अप्रस्तुत के स्थान पर प्रस्तुत का संकेत (6) पीड़ावाद एवं करुणावाद (7) दार्शनिकता (8) कलात्मकता (9) प्रकृति चित्रण की प्रधानता (10) जिज्ञासा की प्रधानता (11) नाद संवेदना का प्रयोग (12) चित्रात्मकता (13) प्रतीकात्मकता (14) उक्ति वैचित्र्य या अस्पष्टता।

छायावाद को दो रूपों में समझा जा सकता है। प्रथम तो रहस्यवाद के अर्थ में जहाँ उसका सम्बन्ध काव्य वस्तु से होता है अर्थात कवि उस अनन्त अज्ञात को प्रियतम मानकर आलम्बन रुप में चित्रमयी भाषा में व्यंजना करता है।”

“छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ में है।” महादेवी न केवल छायावादी कवियों में अग्रगण्य हैं अपितु ‘रहस्यवाद’ पर एकाधिकार भी रखती हैं।

छायावादी विशेषताओं के आधार पर महादेवी वर्मा के काव्य में निम्न उदाहरण द्रष्टव्य हैं-

( 1 ) वैयक्तिकता-बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ (द्वैताद्वैत) सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी (कान्त भाव) शलभ मैं शापमय वर हूँ (विरोध-चमत्कार)

( 2 ) अन्तीन्द्रिय प्रेम-कवयित्री के प्रेम का उदात्तीकरण तीन प्रकार से हुआ है। उपास्थ की अलौकिकता-“ जो तुम आ जाते एक बार।” साधिका की उच्चता-“मधुर मधुर मेरे दीपक जल।” उपकरण की पवित्रता-” यह मंदिर का दीप उसे नीरव जलने दो।”

( 3 ) मानवीकरण- “मिट चली घटा अधीर ।”

(4) रहस्यात्मकता- “तिमिर में वे पद चिन्ह मिले।”

( 5 ) अप्रस्तुत का प्रस्तुतीकरण-“कीर का प्रिय आज पिंजर खोल दो।”

( 6 ) करुणाभाव- “आँसुओं के देश में।”

( 7 ) दार्शनिकता- “स्मित तुम्हारी छलक यह ज्योत्सना अम्लान ।”

( 8 ) कलात्मकता- “गुलालों से रवि का पथ दीप जला पश्चिम में पहला दीप।”

( 9 ) प्रकृति-चित्रण- “फूट पड़े अवनी के संचित अपने मृदुतम अंकुर बन-बन ।’

( 10 ) जिज्ञासा- ‘कनक सी दिन मोती सी रात सुनहली सांझ गुलाबी प्रात।”

(11) संगीतात्मकता- “मर्मर की सुमधुर नूपुर ध्वनि।”

(12) चित्रात्मकता- “अवनि-अम्बर की रुपहली सीप में तरल मोती सा जलधि के कांपताप ।”

( 13 ) प्रतीकात्मकता- “हे से सीझा है यी दीपक, आँसू से बाती है गीली।

( 14 ) उक्ति वैचित्र्य- झर गय खद्योत सारे। तिमिर वात्याचक में सब पिस गये अनमोल तारे।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि महादेवी वर्मा की कविता छायावाद की आदर्श रचना है। यद्यपि महादेवी वर्मा के काव्य में पन्त का सा शिल्प निराला का सा उद्दाम वेग और प्रसाद का सा दर्शन संगम नहीं है फिर भी उनका काव्य एक देवी की अविचलित साहित्य अर्चना साधना का प्रतीक है। वह चिर अवाक् रहते हुए भी अपनी स्निग्ध वर्तिका में अमर संदेश की ध्वजा शिखा उठाए रखने के लिए प्रतिबद्ध एक प्रतिभा प्रदीप हैं।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment