शिक्षाशास्त्र / Education

टेलीकान्फ्रेंसिंग का अर्थ, तकनीक एंव लाभ (उपयोगिता)

टेलीकान्फ्रेंसिंग का अर्थ, तकनीक एंव लाभ (उपयोगिता)
टेलीकान्फ्रेंसिंग का अर्थ, तकनीक एंव लाभ (उपयोगिता)

टेलीकान्फ्रेंसिंग क्या है? इसकी तकनीक, लाभ (उपयोगिता) के बारे में बताइए।

टेलीकान्फ्रेंसिंग का अर्थ

दूरस्थ शिक्षा के लिए शैक्षिक टेलीकान्फ्रेन्सिग को एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। इसमें कई प्रकार के माध्यम प्रयुक्त किये जाते हैं तथा पारस्परिक समूह के द्वारा दो पक्षीय प्रसारण सेवा की सुविधा रहती हैं। टेलीकान्फ्रेन्सिंग मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं- (i) दृश्य टेलीकॉन्फ्रेन्सिंग, (ii) श्रव्य टेलीकान्फ्रेन्सिग, (iii) कम्प्यूटर टेलीकान्फ्रेन्सिंग।

“कम्प्यूटर टेलीकान्फ्रेन्सिंग तकनीकी दूरस्थ शिक्षा हेतु उत्तम कोटि की तकनीकी मानी जाती है। सन् 1980 तक टेलीकान्फ्रेन्सिर्ग अपनी प्रयोगात्मक अवस्था में थी और इसका प्रयोग कभी-कभी किया जाता था, परन्तु गत कुछ वर्षों से दूरस्थ शिक्षण संस्थाओं द्वारा प्रतिदिन इसका प्रयोग होने लगा है। लेकिन इसके प्रयोग द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि इसमें लागत की कमी आयी है तथा छात्र की सेवा में गुणात्मक सुधार हुआ है। कम लागत पूँजी एवं सुगमता के द्वारा उपलब्धता के आधार पर दूरस्थ शिक्षा संस्थानों एवं शिक्षकों के द्वारा यह आकर्षण का प्रमुख केन्द्र बन गया है। टेलीकान्फ्रेन्सिंग माध्यम का शैक्षिक संस्थाओं में अधिक विकास हुआ है।

टेलीकान्फ्रेन्सिंग की तकनीकी

टेलीकान्फ्रेन्सिंग एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है के जो तीन या चार व्यक्तियों के मध्य दो या अधिक स्थानों से विषय-वस्तु के वार्तालाप में भाग ले सकते हैं, परन्तु टेलीकान्फ्रेन्सिंग एक उच्च गुणात्मक प्रकार की श्रव्य विधि है जो इसमें भाग लेनेवालों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं। श्रव्य टेलीकान्फ्रेंन्सिंग में एक साथ कई टेलीफोन लाइनों की आवश्यकता होती है या पारस्परिक सम्बन्धित युक्तियों की जरूरत पड़ती है, जिसे सम्पर्क प्रविधि के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक युक्ति को प्रत्येक सम्पर्क लाइन से जोड़ना सामान्य अभ्यास माना जाता है। सम्पर्क के साथ प्रयुक्त किये गये उपकरण साधारण प्रकार के होते हैं, जैसे- हाथ के सेट, शीर्ष सेट, स्पीकर फोन, रेडियो, टेलीफोन आदि।

श्रव्य टेलीकान्फ्रेन्सिग हेतु हमेशा स्थानीय कम्पनी के टेलीफोनों को प्रयोग में लाया जाता है तथा घरेलू लाइनों के द्वारा भी इस कार्यक्रम को सम्पादित किया जा सकता है।

टेलीकान्फ्रेन्सिग कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु वातावरण से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। इसके प्रयोग हेतु स्थानीय टेलीफोन कम्पनी से विशिष्ट प्रकार के उपकरणों को खरीदा या किराये पर लिया जा सकता है। यदि स्थानीय टेलीफोन, कम्पनी के पास निम्नलिखित प्रकार की सुविधा उपलब्ध है तो किसी विद्यालय या कॉलेज को व्यक्तिगत टेलीकान्फ्रेन्सिंग प्रणाली को शुरू करने में खर्च कम आता है।

  1. अपेक्षाकृत ढंग से टेलीफोन लाइनों की व्यवस्था की जाय
  2. स्थानीय एवं दूरस्थ शिक्षण के लिए उपयुक्त दरें हों।
  3. तात्कालिक अधिगम दृष्टि परिस्थति उत्पन्न की जाय।

टेलीकान्फ्रेंसिंग के लाभ (उपयोगिता)

श्रव्य टेलीकान्फ्रेन्सिग की प्रभावशीलता को देखने हेतु अनेक अनुसन्धान कार्य भी किये गये हैं। इसके द्वारा अधिगमकर्ता के अधिगम प्रभाव को देखने का प्रयास किया जाता है। जिस प्रकार शिक्षण की प्रक्रिया आमने-सामने की प्रक्रिया के रूप में प्रभावी है, उसी प्रकार टेलीफोन की सुविधा भी प्रभावशाली है। कनाडा में एक अध्ययन रिपोर्ट के द्वारा ज्ञात हुआ है कि स्नातक स्तर पर सांख्यिकी के छात्रों में पारस्परिक ढंग से प्राप्त शिक्षण से अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है। जबकि पारस्परिक रूप में छात्रों के मध्य इस प्रकार से विकास की सम्भावनाएँ कम रहती हैं।

सन् 1984 में अन्तर्राष्ट्रीय विचार गोष्ठी में शैक्षिक श्रव्य कान्फ्रेन्सिंग पर बल दिया गया। इस प्रकार की व्यवस्था से निम्नलिखित लाभ हैं-

1. दूरस्थ अधिगम के लिए प्रभावी सहायक- टेलीकान्फ्रेंसिंग का उपयोग उस समय अधिक बढ़ जाता है इसजब इसमें छात्र विभिन्न समुदायों के मध्य विभिन्न केन्द्रों पर हुए व्यक्तियों के मध्य प्रकार कार्यक्रम विषय दिये गये

2. मूल्य की प्रभावशीलता- दूरस्थ अधिगम कर्ताओं के लिए अन्य विधियों से यह विधि कम खर्चीली होती है।

3. लचीली प्रणाली- टेलीकान्फ्रेन्सिग की प्रणाली को शीघ्रता से छोटे या बड़े समूहों के रूप में व्यवस्थित किया जा सकता है। यह अधिक लचीली प्रणाली होती है।

4. बहु स्थानीय नियन्त्रित अधिगम- अनुदेशन अथवा कार्यक्रम के बहुआयामों को विभिन्न केन्द्रों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है।

5. उच्च कोटि का अनुदेशन- टेलीकान्फ्रेन्सिंग प्रणाली के माध्यम से अनुदेशन सामग्री के स्तर को भली-भाँति सुधारा जा सकता है या उसमें स्थिरता उत्पन्न की जा सकती है।

6. सुपरिचित अनुदेशनात्मक पद्धति – अनुदेशन की यह पद्धति अन्य पद्धतियों के समान ही हैं, जिस प्रकार से कि विभिन्न समूहों के मध्य विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा आपस में विचार-विमर्श किया जाता है।

7. समय-सारणी का निर्माण करने में सुगमता- टेलीकान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से पारस्परिक ढंग से न उपलब्ध होनेवाले छात्रों के लिए भी समय-सारणी व्यवस्थित की जा सकती है।

8. तात्कालिक पृष्ठ-पोषण- टेलीकान्फ्रेन्सिंग प्रणाली के द्वारा छात्रों को तुरन्त पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है।

टेलीकान्फ्रेन्सिग का अनुप्रयोग

सम्पूर्ण विश्व में शिक्षा माध्यमों के लिए टेलीकान्फ्रेन्सिंग की सुविधा जुटाने हेतु अनेक प्रयोग किये जा रहे हैं।  टेलीकान्फ्रेन्सिग दृश्य श्रव्य प्रणाली की तरह अन्य प्रकार की सुविधा हेतु प्रयोग में लायी जा सकती हैं। टेलीकान्फ्रेन्सिंग छात्र एवं शिक्षक को दूरदर्शन के प्रयोग की तरह कम लागत पर अधिक प्रकार की सुविधा प्रदान करती है। इसकी पूर्वावस्था में पाया गया कि टेलीकान्फ्रेन्सिंग द्वारा १ प्रकार के विभिन्न समूहों को जो कि आपस में सैकड़ों मील की दूरी पर फैले हुए समूहों को एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है। उन समूहों के मध्य चित्र एवं ध्वनि प्रदर्शित की जाती है। टेलीकान्फ्रेन्सिंग का प्रयोग भारत में भी किया जाने लगा है। इसके सन्दर्भ में

अहमदाबाद शिक्षण केन्द्र, द्वारा अनुसन्धान कार्य किये जा रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि चारों तरफ फैले हुए विभिन्न समूहों के लोगों के लिए बहुत ही अच्छा सुगम तथा प्रभावशाली आयाम हैं।

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Anjali Yadav

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