शिक्षाशास्त्र / Education

राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।

राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।
राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।

राज्य का क्या अर्थ है? शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के कार्य बताइये।

राज्य की परिभाषा- राज्य का तात्पर्य लोगों के ऐसे समूह से हैं जो किसी निश्चित भूमि पर रहता है जिसकी एक व्यवस्थित सरकार होती हैं और जो किसी भी बाहरी प्रतिबन्धों से स्वतन्त्र रहता है।

राज्य के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित है-

1. आई॰एल॰ कैडिल- “राज्य की परिभाषा एक सुसंगठित, राजनीतिक समुदाय के रूप में दी जा सकती है, जिसके साथ एक सरकार होती है तथा जिसे लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। “

2. गार्नर- राज्य मनुष्यों के उस बहुसंख्यक समुदाय अथवा संगठन को कहते हैं जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग में रहता है जो बाहरी नियन्त्रण से पूर्ण अथवा लगभग स्वतन्त्र है तथा जिसकी संगठित सरकार है, जिसकी आज्ञा का पालन अधिकांश जनता स्वाभाविक रूप से करती है।

श्रीमती डॉ० सी०पी० पाठक के अनुसार “प्रजातन्त्रवादी राज्य में शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार से की जाती है, जिससे व्यक्ति की वैयक्तिकता बनी रहे, उसको सर्वांगीण विकास के अवसर मिलें और अधिक मानव हित हो सके।”

राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् की शोध पत्रिका के अनुसार- “शिक्षा राज्य की एक कार्य है। इस सिद्धान्तों को समस्त देशों के उच्चतम न्यायालयों ने कई बार घोषित किया है।

राज्य के कार्य

शैक्षिक क्षेत्र में राज्य के कार्य इस प्रकार है-

(1) शिक्षा के अनौपचारिक साधनों की समुचित व्यवस्था करना- इन साधनों के माध्यम से छात्र अपने व्यवहारिक जीवन में सफलतापूर्वक समायोजन कर सकते हैं और उनका बहुमुखी विकास होता है। इसके अतिरिक्त अनौपचारिक साधनों द्वारा यथार्थ जीवन की शिक्षा प्राप्त होती है। अतः राज्य को चाहिए कि वह अपने नागरिकों हेतु अनौपचारिक साधनो जैसे रेडियो, टी.वी. पत्र-पत्रिकाओं, सांस्कृतिक साधनों की समुचित व्यवस्था करें ।

( 2 ) प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था करना- राज्य का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य है- प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था करना। क्योंकि प्रजातन्त्र में सभी नागरिको का शिक्षित होना आवश्यक है, जिससे वे अपने अधिकारों एवं कत्तव्यों का निर्वाह करते हुए देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। अतः प्रौढ़ को साक्षर बनाने हेतु सायंकालीन एवं रात्रिकालीन शालाओं की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों को जगह-जगह पर खोलना चाहिए।

(3) नागरिकता के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना- देश के नागरिको पर उस देश की सफलता निर्भर करती है। आदर्श गुणों से युक्त नागरिको का देश सदैव विकास एवं प्रगति के पथ पर अग्रसरित होता है। अतः राज्य का कार्य है- अपने देश के नागरिकों हेतु नागरिकता के प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था करना। यह प्रशिक्षण सामाजिक क्षेत्र में, सांस्कृतिक क्षेत्र में, व्यावसायिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में प्रदान किया जाना चाहिए।

(4) विद्यालयी व्यवस्था में नियन्त्रण रखना और निर्देशन देना- विद्यालयी व्यवस्था पर नियन्त्रण रखना तथा आवश्यकतानुसार उन्हे निर्देशन प्रदान करना भी राज्य का अन्य महत्वपूर्ण कार्य है। अपने इस कार्य को सम्पन्न करने हेतु राज्य यथासम्भव विद्यालयों के निरीक्षण की व्यवस्था करता है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत राज्य को शिक्षालय पर ज्यादा कठोर नियन्त्रण नहीं रखना चाहिए।

(5) उत्तम पुस्तकों की व्यवस्था करना- छात्रों को उत्तम एवं सस्ती पुस्तकै सुभल कराना भी राज्य का कार्य है। पुस्तकें लिखाने हेतु लेखकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए तथा प्रकाशकों पर भी कठोर नियन्त्रण रखना चाहिए, जिससे छात्रों को उत्तम पुस्तकें प्राप्त हो सकें।

(6) शैक्षिक अनुसंधान को प्रोत्साहन देना- शैक्षिक क्षेत्र में मनोविज्ञान द्वारा किये गये क्रान्तिकारी परिवर्तनों के प्रभाव स्वरूप राज्य का कर्तव्य हो जाता है कि वह नवीन अनुसंधान हेतु यथासम्भव सहायता प्रदान करे और अनुसंधान के लिए धन की उचित व्यवस्था करे।

(7) साहित्यकारों वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करना – राज्य को साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों आदि को भी प्रोत्साहित करना चाहिए, क्योंकि प्रोत्साहन 58 के अभाव में अनेक प्रतिभाएं विकसित नहीं हो पाती हैं और कुछ विदेशों में चली जाती इसलिए राज्य का यह कर्तव्य है कि वह इन्हें सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान करें।

(8) आयोग एवं समितियों की नियुक्ति करना- शिक्षा में व्युत्पन्न दोषों को करने हेतु सुझाव देने के लिए शैक्षिक प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए राज्य को समय समय पर आयोगों एवं समितियों का गठन करना चाहिए। इन आयोगों एवं समितियों का कार्य होगा- शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर गहनता से विचार करके अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना।

( 9 ) सैन्य प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था करना- अपने देश को सैन्य दृष्टि से मजबूत बनाने हेतु राज्य सैन्य शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था करता है। पूर्ण सैनिक प्रशिक्षण हेतु सैनिक विद्यालयों की और सैनिक विद्यालयों में सामान्य प्रशिक्षण की व्यवस्था राज्य द्वारा की जाती है। एन.सी.सी. इत्यादि की व्यवस्था भी सामान्य विद्यालयों में राज्य करता है।

(10) राष्ट्रीय शिक्षा योजना का निर्माण एवं क्रियान्वयन करना – राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को दिशा प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा योजना का निर्माण करना नितान्त आवश्यक है। एक विद्वान के अनुसार-

“राज्य को अपनी आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और परिस्थितियों के अनुसार देश के शिक्षाविदों, समाजशस्त्रियों, दार्शनिकों तथा राजनीतिज्ञों के परामर्श एवं सहयोग से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना का निर्माण करना ही नहीं है, वरन् उसको ठीक प्रकार से कार्यान्वित करना भी है। राज्य द्वारा शिक्षा योजना का कार्यान्वयन इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिससे जाति, धर्म, सम्प्रदाय, रूप-रंग, धनी-निर्धन आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर देश के सभी नागरिकों के लिए शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में समान अवसर उपलब्ध हो सकें।”

(11) सेवापूर्ण तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था करना- विभिन्न देशों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने हेतु अध्यापक, पुलिस इत्यादि विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करना भी राज्य का अन्य महत्वपूर्ण कार्य है। सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु राज्य की गोष्ठियों, पुनश्चर्या, पाठ्यक्रमों इत्यादि की भी समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।

(12) अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करना- शिक्षित व्यक्ति ही अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहते हुए देश की प्रगति में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकते हैं। अतः राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को शिक्षित बनाने हेतु अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करे।

राज्य प्रमुखतः दो प्रकार होते हैं-

(1) सर्वाधिकारवादी राज्य, (2) प्रजातन्त्रवादी राज्य।

प्रथम प्रकार के राज्य में राज्य शिक्षा पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है और विद्यालय राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने में संलग्न रहते हैं, इसके विपरीत द्वितीय प्रकार के राज्य के अन्तर्गत शिक्षा की व्यवस्था इस तरह से की जाती है जिससे व्यक्ति को चहुंमुखी विकास के अवसर प्राप्त हो सकें। इसीलिए इस प्रश्न पर विद्वानों में मतैक्य का अभाव रहा है कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण हो तो किस सीमा तक हो ?

राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर उसकी राजनैतिक स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। राज्य की सभ्यता, संस्कृति, राजनीतिक व्यवस्था आदि के अनुरूप ही उस राज्य की शिक्षा होती है। राज्य की राजनीतिक व्यवस्था की उस राज्य की शिक्षा के पाठ्यक्रम, शिक्षण पठ्ठतियों, उद्देश्यों आदि पर गहन छाप होती है।

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Anjali Yadav

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