शिक्षाशास्त्र / Education

राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं

राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं
राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं
राज्य का शिक्षा से क्या सम्बन्ध है? राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर होना चाहिए या नहीं? 

राज्य का शिक्षा से सम्बन्ध- राज्य शिक्षा का सबल औपचारिक साधन है। आज के युग में राज्य का संरक्षण और सहयोग न मिलने पर किसी भी संस्था का स्वस्थ विकास सम्भव नहीं है। वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप का इतिहास अत्यन्त पुराना है। पहले शिक्षा का संचालन अन्य संस्थाओं के द्वारा होता था लेकिन आगे चलकर शिक्षा के क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप प्रारम्भ हो गया। इस बात का स्पष्टीकरण निम्नलिखित तथ्यों से होगा-

(क) पहले लोग अपनी इच्छा ने अपने लाभ के लिए शिक्षा प्रबन्ध किया करते थे।

(ख) इसके बाद दान तथा धार्मिक संस्थाओं के द्वारा शिक्षा संचालन होता था। ये सभी संस्थाएँ शिक्षा के क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप का विरोध करती थीं।

शिक्षा के क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप 16 वीं शताब्दी से आरम्भ हुआ। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक शिक्षा का कार्य एक प्रकार से राज्य के ही हाथ में आ गया लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि शिक्षा के साधनों में केवल राज्य का ही महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा के अन्य साधनों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस सन्दर्भ में रेमण्ट महोदय का कथन विशेष उल्लेखनीय है। उन्होंने लिखा है कि “हम यह अनुभव करते हैं कि सभ्य समाज में अन्य उपयोगी कार्यों के समान शिक्षा भी तीनों में से एक साधन के द्वारा संचालित की जा सकती है। पहला ऐच्छिक प्रयास लाभ के लिए, दूसरा ऐच्छिक प्रयास दान या धार्मिक भावना द्वारा, तीसरा राज्य के द्वारा होता है। “

शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिए अथवा नहीं इस विषय पर विद्धानों के दो मत हैं। पहले मतवादी यह कहते हैं कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण उचित है। दूसरे मतवादी कहते हैं कि शिक्षा राज्य का नियन्त्रण नहीं होना चाहिए। यदि राज्य शिक्षा पर नियन्त्रण करता है तो देश में शिक्षा का स्वतन्त्र विकास नहीं हो सकता। नीचे हम पहले इस मत पर विचार करेंगे कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण एक बुराई है तथा इसके बाद यह विचार करेंगे कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण अवश्य होना चाहिए।

(1) शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण उचित नहीं है- व्यक्तिवादी विचारधारा मानने वाले लोगों का कहना है शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण ठीक नहीं है। लाक, मिल तथा बेन्थम ने भी इसी बात का समर्थन किया है कि राज्य को शिक्षा के कार्यों में कोई दखल नहीं देना चाहिए कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिस पर कि राज्य का नियन्त्रण उचित होता है तथा यह नियन्त्रण लाभदायक होता है, पर कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन पर कि राज्य का नियन्त्रण उचित नहीं कहा जा सकता। इन कार्यों के लिए व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। शिक्षा भी उन्हीं कार्यों में से एक है। अतएव शिक्षा के कार्य में राज्य का नियन्त्रण बिल्कुल नहीं होना चाहिए।

( 2 ) शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण उचित ही है- कुछ विद्वान ऐसे है जिनका यह कहना है कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण उचित है और यह नियन्त्रण होना ही चाहिए। ऐसे विद्वानों में मैथ्यू आर्नल्ड, रस्किन, कारलायल का नाम उल्लेखनीय है। इन विद्वानों का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में राज्य का कार्य केवल नागरिकों की सुरक्षा करना, उनकी देख रेख करना तथा उनके ऊपर नियन्त्रण करना ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिनसे कि जन-सामान्य का बड़ा लाभ होता है। जैसे कि शिक्षा से जन-सामान्य को जीवन की गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है, उन्हें एक प्रकाश प्राप्त होता है, जन-सामान्य को मानवोचित कार्य करने की शिक्षा प्राप्त होती है, उनकी आदतों का निर्माण होता है। अतएव शिक्षा एक ऐसा कार्य है, जिसमें कि राज्य का हस्तक्षेप होना अति आवश्यक है। शिक्षा के प्रबन्ध तथा अन्य कार्यों को राज्य अपने हाथ में रखे तो बड़ा अच्छा होगा क्योंकि राज्य की आवश्यकताएँ या इच्छा व्यक्ति की इच्छा या आवश्यकता से महान होती है। शिक्षा के प्रति किसी राज्य के अनेक कार्य होते हैं जिसका उल्लेख हम आगे करेंगे। अतएव शिक्षा को देख-रेख का भार राज्य पर ही होना चाहिए। साम्यवादी विचारधारा के पोषक पिकरोइच ने भी इस बात का समर्थन किया है। उन्होंने यह लिखा है, “सार्वजनिक शिक्षा जिसका उद्देश्य भावी नागरिकों का सुधार करना है, एक ऐसा शक्तिशाली यन्त्र है जो राज्य दूसरों को हस्तान्तरित नहीं कर सकता।”

मध्यम मार्ग का अनुसरण ही लाभदायक आधुनिक काल के शिक्षा शास्त्री उक्त दोनों ही पदों में से एक नहीं मानते हैं। ये दोनों को महत्व प्रदान करते हैं अतएव दोनों को ही महत्व देकर बीच के रास्त को अपनाना ठीक समझते हैं। इन विद्वानों का यह कहना है कि शिक्षा न तो राज्य के पूर्ण नियन्त्रण में होनी चाहिए और न ही राज्य के नियन्त्रण से मुक्त होनी चाहिए। यह बात तो सत्य ही है कि शिक्षा मानव जीवन के लिए अति आवश्यक है। इसकी व्यवस्था न राज्य अकेले कर सकता है और न ही अकेली जनता कर सकती है परिवार तथा धार्मिक संस्थाएँ भी शिक्षा के कार्य में अपना योग प्रयोग करें तो अच्छा हो। अतएव हम इस निष्कर्ष कर पहुँचते हैं कि शिक्षा पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिए लेकिन पूर्ण रूप से नहीं।

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Anjali Yadav

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