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धारक तथा यथा विधिधारी किसे कहते है?

धारक तथा यथा विधिधारी किसे कहते है?
धारक तथा यथा विधिधारी किसे कहते है?
धारक तथा यथा विधिधारी किसे कहते है? यथाविधिधारी के विशेषाधिकारों का वर्णन कीजिए ।

धारक (holder) – “प्रतिज्ञापत्र, विनिमय बिल तथा चेक का धारक वह व्यक्ति है जो – ऐसे लेखपत्र को अपने पास रखने तथा जिसके ऊपर भुगतान का दायित्व है उससे उसके भुगतान पाने और वसूल करने का अधिकारी है।” अंग्रेजी विनिमय पत्र अधिनियम के अनुसार, “धारक से आशय एक बिल अथवा विपत्र के उस अदाता अथवा पृष्ठांकिती से है जिसके अधिकार में वह होता है अथवा उसके वाहक से।” यदि प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-बिल या चेक खो जाय या नष्ट हो जाय, तो उसका अधिकारी वही व्यक्ति होता है जिसे खोने या नष्ट होने के पहले उसके ऊपर वास्तविक अधिकार था।”

यथाविधिधारी (holder in due course) – “यथाविधिकारी वह व्यक्ति है जो कि प्रतिफल के बदले में विलेख में लिखित धन के देय (due) होने के पहले (overdue) तथा जिस व्यक्ति से उसने अधिकार प्राप्त किया है, उसके अधिकार में दोष विद्यमान होने का विश्वास न रखते हुए, ऐसे प्रतिज्ञापत्र विनिमय-बिल अथवा चेक का अधिकारी हो जाता है जो कि वाहक का . देय है अथवा आदेशानुसार देय होन पर वह ऐसे विलेख का लेनदार तथा पृष्ठांकिती हो जाता है। “

यथाविधिधारी के लिए निम्नलिखित बात सिद्ध करनी होती है-

1. लेखपत्र यदि वाहक का देय है, तो उसका अधिकारी, अथवा, यदि आज्ञा पर देय है तो उसका लेनदार या पृष्ठांकिती बनने के पहले प्रतिफल दे दिया गया है।

2. लेखपत्र देय होने के पहले प्राप्त किया गया है।

3. उसे इस बात का कुछ भी सन्देह न था कि उस व्यक्ति के अधिकार में जिसने कि उसने अपना अधिकार प्राप्त किया है, कोई दोष था।

4. वह लेखपत्र का धारक है अर्थात् लेखपत्र उसके अधिकार में है।

5. लेखपत्र पूर्ण एवं नियमित होना चाहिए। ऐसा मुख और पृष्ठ दोनों ओर होना चाहिए। यदि इसके प्रारूप में कोई महत्वपूर्ण दोष है तो धारक, यथाविधिधारी नहीं हो सकता।

यथाविधिधारी के विशेष अधिकार

1. जब कोई व्यक्ति हस्ताक्षरित तथा स्टाम्प लगा हुआ अपूर्ण लेखपत्र (inchoate instrument) किसी दूसरे व्यक्ति को देता है, तो पाविधिधारी के विरुद्ध यह नहीं कह सकता है कि उसके द्वारा दिये गये अधिकारों के अनुसार पूर्ण नहीं किया गया है यदि स्टाम्प लेखपत्र की रकम के लिए पर्याप्त मात्रा में है।

उदाहरण– X एक अपूर्ण लेखपर हस्ताक्षर कर देता है जिस पर लगे हुए स्टाम्प के अनुसार 2,000 रुपया तक भरे जा सकते हैं वह ) को केवल 1.200 रुपये भरने के लिए कहता है, लेकिन Y उस पर 2,000 रुपया भरकर 2 को दे देता है जो मूल्य के बदले सद्भावना से उसे लेता है। Z यथाविधिधारी है और वह X से 2,000/ रूपया वसूल कर सकता है।

2. विनिमयसाध्य लेखपत्र लेखपत्र का प्रत्येक पूर्व पक्षकार (लेखक, आहर्ता, स्वीकर्ता, पृष्ठांकक) यथाविधिधारी के प्रति उस समय तक दायी रहता है, जब तक कि लेखपत्र का यथोचित रूप से भुगतान न हो जाय।

3. जब कोई विनिमय बिल लेखक (drawer) के आदेशानुसार कल्पित (Fictitious) नाम से देय है और उसी व्यक्ति द्वारा लेखक के

 के रूप में पृष्ठांकित किया गया है तो स्वीकर्ता यथाविधिधारोके विरुद्ध यह नहीं कह सकता है कि वह नाम कल्पित था। अत: किसी कल्पित नाम के बिल लिखे जाने पर भी यथाविधिधारी को स्वीकर्ता से बिल का भुगतान कराने का अधिकार है।

4. जब कोई लेखपत्र किसी यथाविधिधारी को परक्रमित (negotiated) किया गया है, तो उससे सम्बद्ध दूसरे पक्षकार अपने दायित्व से यह कहकर मुक्त नहीं हो सकते कि लेखपत्र की सुपुर्दगी सप्रतिबन्ध अथवा किसी विशेष प्रयोजन के लिए की गयी थी।

5. यद्यपि लेखपत्र की सुपुर्दगी कपट के आधार पर हुई है, किन्तु जब यथाविधिधारी उसे प्राप्त करता है या अन्य व्यक्ति को देता है तो लेखपत्र सम्पूर्ण दोषों से रहित हो जाता है। यथाविधिधारी से ऐसे लेखपत्र को प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी उसे सम्पूर्ण दोषों से रहित हो जाता है। यथाविधिधारी से ऐसे लेखपत्र को प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी उसे सम्पूर्ण दोषों से रहित प्राप्त करता है।

6. किसी विनिमयसाध्य लेखपत्र पर दायी यथाविधिधारी के विरुद्ध यह नहीं कह सकता कि लेखपत्र खो गया था; कपट द्वारा, अपराध द्वारा अथवा अवैध प्रतिफल के बदले प्राप्त किया गया था।

7. विनिमयसाध्य लेखपत्र का प्रत्येक धारक विधान के अनुसार यथाविधिधारी ही माना जाता है, जब तक कि उक्त धारणा का खण्डन नहीं कर दिया जाता है इसका भार दूसरे पक्षकार पर होता है और जब तक ऐसा नहीं कर दिया जाता है। प्रत्येक धारक यथाविधिधारी माना जाता है।

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Anjali Yadav

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