निक्षेपग्रहीता के अधिकार एवं कर्तव्यों को समझाइए।
Contents
निक्षेपग्रहीता के अधिकार
(1) निक्षेपित माल के अप्रकट दोषों से हुई क्षति की पूर्ति कराने का अधिकार – निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी से ऐसी क्षति को प्राप्त करने का अधिकारी है जो निक्षेपी द्वारा निक्षेपित माल के दोषों को न बताने के कारण हुई है। (धारा 150)
(2) आवश्यक व्यय प्राप्त करने का अधिकार – जब निक्षेपग्रहीता को निक्षेपों के लिए वस्तु रखने ले जाने अथवा कोई अन्य कार्य करने के लिए पारिश्रमिक नहीं मिलता है तो वह निक्षेपी से ऐसे आवश्यक व्यय प्राप्त करने का अधिकारी है जो उसके द्वारा निक्षेपी के लिए किये गये हैं। (धारा 158)
(3) माल की सुपुर्दगी न देने पर अधिकार – यदि निक्षेपी के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति निक्षेपित माल का दावा करता है तो वह न्यायालय में प्रार्थना कर सकता है कि निक्षेपित माल की सुपुर्दगी रोक दी जाये और माल के स्वामित्व का निर्णय कर दिया जाये। ऐसी दशा में निक्षेपग्रहीता को अधिकार होता है कि वह माल की सुपुर्दगी निक्षेपी को न दें। (धारा 167)
(4) विशिष्ट ग्रहणाधिकार- यदि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेपित वस्तु के लिए कोई सेवा की है तो किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में उसे इस सेवा का पारिश्रमिक प्राप्त करने तथा वस्तु को रोके रखने का अधिकार होता है। (धारा 170)
(5) तीसरे पक्षकार के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने का अधिकार- यदि कोई तीसरा व्यक्ति दोषपूर्ण तरीके से निक्षेपग्रहीता को निक्षेपित माल के प्रयोग अथवा अधिकार से वंचित करता है अथवा कोई क्षति पहुँचाता है तो निक्षेपग्रहीता को ऐसे सभी उपचार प्रयोग में लगाने का अधिकार है जो कि माल को समान परिस्थितियों में उपलब्ध होते हैं, यदि माल का निक्षेप न हुआ होता। (धारा 180)
(6) असाधारण व्यय प्राप्त करने का अधिकार – यदि निक्षेपग्रहीता से माल के सम्बन्ध में कोई असाधारण व्यय किये हों तो वह निक्षेपी के लिए किये गये हैं। (धारा 158)
(7) निःशुल्क निक्षेप की स्थिति में अधिकार- निःशुल्क निक्षेप की दशा में यदि निक्षेप में निर्दिष्ट समय व्यतीत अथवा उद्देश्य के पूरा होने से पूर्व निक्षेपी, निक्षेप किये गये माल को वापस ले लेता है और यदि निक्षेपी के इस व्यवहार के कारण निक्षेपग्रहीता को उस माल में लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हुई है तो निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी से हानि और लाभ के अन्तर को प्राप्त करने का अधिकारी है। (धारा 159)
(8) निक्षेपी का माल पर दूषित स्वत्व होने पर क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार- निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी से ऐसी क्षति को प्राप्त करने का अधिकारी है जो निक्षेपग्रहीता को निक्षेपित वस्तु के सम्बन्ध में निक्षेपी के स्वत्व के दूषित होने के कारण उत्पन्न हुई है। (धारा 164)
(9) सह-स्वामियों में से किसी एक सह-स्वामी को माल वापस करने का अधिकार- यदि अनेक सह-स्वामियों द्वारा किसी वस्तु का निक्षेप किया गया है तो किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में निक्षेपग्रहीता किसी एक सह-स्वामी को माल वापस करने का अधिकारी है। (धारा 165)
(10) निक्षेपित माल में निक्षेपी का अधिकार न होने पर निक्षेपी को सद्भावना से माल लौटा देने का अधिकार- यदि निक्षेपित माल में निक्षेपी का अधिकार नहीं है और निक्षेपग्रहीता निक्षेपी के आदेशानुसार माल को सद्भावना से लौटा देता है तो निक्षेपग्रहीता ऐसी सुपुर्दगी के लिए माल के वास्तविक मालिक के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
निक्षेपग्रहीता के कर्तव्य
(1) निक्षेपित माल की उचित देखभाल करना- निक्षेप के सभी मामलों में निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल की उतनी देखभाल करने के लिए बाध्य है जितनी कि साधारण बुद्धि का मनुष्य सामान्य परिस्थिति में उसी मात्रा के गुण और मूल्य के अपने निजी माल के सम्बन्ध में करता है। (धारा 151)
(2) निक्षेप की शर्तों के अनुसार कार्य करना- निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेप की शर्तों को पूरी तरह पालन करे अन्यथा निक्षेपी अनुबन्ध समाप्त कर सकता है और निक्षेपित माल को वापस ले सकता है। (धारा 152)
(3) निक्षेपित माल को वापस करना- निक्षेप की समयविधि बीत जाने अथवा उद्देश्य के पूरा हो जाने पर निक्षेपग्रहीता का कर्तव्य है कि वह निक्षेपी के निर्देशानुसार बिना मांगे उसे माल वापस कर दें। (धारा 160)
(4) माल के लौटाने पर क्षतिपूर्ति- यदि निक्षेपग्रहीता की त्रुटि के कारण उचित समय पर माल वापस नहीं किया जाता तो निक्षेपग्रहीता उस समय के बाद होने वाले किसी भी हानि विनाश या हानि के लिए उत्तरदायी होगा। (धारा 161)
(5) माल में वृद्धि अथवा लाभ सहित वापस करना- किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में निक्षेपग्रहीता निक्षेप किये गये माल से होने वाले लाभ अथवा वृद्धि को भी, निक्षेपी के निर्देशानुसार सुपुर्द करने को बाध्य है। (धारा 163)
(6) निक्षेपी के अधिकार में बाधा उपस्थित न करना- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 117 के अनुसार निक्षेपग्रहीता को कोई काम नहीं करना चाहिए जिसमें निक्षेपी के अधिकार में बाधा उत्पन्न हो।
(7) निक्षेपित माल का अनाधिकृत उपयोग न करना- यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेप किये गये माल का कोई ऐसा उपयोग करता है जो निक्षेप की शर्तों के अनुसार नहीं है तो वह ऐसे उपयोग से अथवा ऐसे उपयोग के समय माल में होने वाली हानि के लिए निक्षेपी के प्रति क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी हैं। (धारा 154)
(8) निक्षेपित माल को अपने निजी माल के साथ न मिलाना- निक्षेपग्रहीता का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह निक्षेपी के माल को अपने माल से अलग ररखे। यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल को अपने निजी माल में मिला लेता है तो इसके लिए निम्न प्रकार व्यवस्था है-
(i) यदि निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी की सहमति से उसके माल को अपने निजी माल के साथ मिला देता है तो इस मिलावट में निक्षेपी और निक्षेपग्रहीता का हित क्रमश: अपने-अपने अंशों के अनुसार होगा। (धारा 166)
(ii) यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपी की सहमति के बिना उसके माल को अपने निजी माल के साथ मिला देता है और निक्षेपी के केवल निजी माल को अलग किया जा सकता है लेकिन दोनों पक्षकार अपने-अपने माल के क्रमशः मालिक रहेंगे किन्तु माल को अलग-अलग करने अथवा वांटने के व्यय और मिलावट से होने वाली क्षति को निक्षेपग्रहीता को ही सहन करना होगा। (धारा 156)
(iii) यदि निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी की सहमति के बिना उसके माल को निजी माल के साथ इस तरह मिला देता है कि निक्षेप किये गये माल को दूसरे माल से अलग करना असम्भव है। तो निक्षेपी वस्तु की हानि के लिए निक्षेपग्रहीता से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। (धारा 157)
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