नैतिक शिक्षा की शिक्षण विधियों का वर्णन कीजिए।
आज ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है, जो कि पूरे समाज और देश में नैतिकता उत्पन्न कर सके। यह नैतिकता नैतिक शिक्षा के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है। चूँकि संस्कृति में ‘नय्’ धातु का अर्थ है-जाना, ले जाना तथा रक्षा करना। इसी से शब्द ‘नीति’ बना है। इसका अर्थ होता है-ऐसा व्यवहार, जिसके अनुसार अथवा जिसका अनुकरण करने से सबकी रक्षा हो सके। अतः हम कह सकते हैं कि नैतिकता वह गुण है, और नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है, जो कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति सम्पूर्ण समाज तथा देश का हित करती है।
इसलिए बालकों में नैतिक हास को रोकने के लिए अध्यापक द्वारा नैतिक शिक्षा की व्यवस्था करना और उचित सम्प्रेषण हेतु विधियों का व्यवहृत प्रयोग करना परमावश्यक है।
विद्यालयों में नैतिक शिक्षा की शिक्षण विधियों का स्वरूप
विद्यालयों में नैतिक शिक्षा सम्बन्धी अधिगम बिन्दुओं के प्रभावी सम्प्रेषण की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित रूप में की जानी आवश्यक हैं-
1. महापुरुषों के आदर्शों से अवगत कराना- अध्यापक द्वारा महापुरुषों के आदर्शों को चलचित्र पुस्तकों, नाटकों और अध्यापन के द्वारा प्रस्तुत करना चाहिए। व्यक्तियों अथवा महापुरुषों की जीवनियों से भी अवगत कराना चाहिए। जिन्होंने निःस्वार्थ भावना से ही अपना जीवन अन्य लोगों, समाज एवं देश के ऊपर न्यौछावर कर दिया अर्थात् जिन महापुरुषों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्य अधिक रहे हों, उन्हें ही नैतिक शिक्षा के अध्ययन हेतु अध्यापन में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
2. अध्यापक छात्र का सम्बन्ध घनिष्ठ होना- आजकल हम देखते हैं कि अध्यापक और छात्र का सम्बन्ध करीब-करीब समाप्त होता जा रहा है। आज छात्र केवल विद्यालय एक बहाने मात्र को ही जाते हैं। अध्यापकों समीप जाकर उनके गुणों को नहीं परख पाते हैं। इस प्रकार के छात्र अध्यापकों के नैतिक मूल्यों से कोई लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। अतः छात्र तथा अध्यापक के सम्बन्धों में घनिष्ठता बनाने के लिए ध्यान देना भी आवश्यक है।
3. कर्त्तव्य परायणता तथा अनुशासन- विद्यालय का वातावरण ऐसा हो कि छात्र और अध्यापक अनुशासन तथा कर्त्तव्यता की ओर विशेष ध्यान दे सकें। अध्यापक अपने काम को लगन तथा निश्चित कार्यक्रम के अनुसार करें। इसी प्रकार छात्रों में भी अनुशासन होना चाहिए ताकि वे समय पर अपने विद्यालय पहुँच कर शिक्षा ग्रहण कर सकें।
4. बालचर शिविरों से अवगत कराना- विद्यालयों में बालचर शिविरों का आयोजन करके नैतिक गुणों का विकास किया जा सकता है। जैसे—समूह में उठना, बैठना, एक साथ मिलकर भोजन बनाना, शिविर लगाना, प्रकृति का अवलोकन करते हुए रूट मार्च करना, सामूहिक गान इत्यादि ।
5. नैतिक शिक्षा को अनिवार्य घोषित किया जाए- नैतिक मूल्यों के विकास के लिए आवश्यक है कि नैतिक शिक्षा को अनिवार्य घोषित किया जाना चाहिए। एक क्रमिक पाठ्यक्रम के अन्तर्गत नैतिक शिक्षा को शिशु कक्षा से स्नातक स्तर तक अध्ययन कराया जाए। अतः इसका अध्ययन तथा अध्यापन दोनों ही अनिवार्य घोषित होने पर जीवन की प्रारम्भिक अवस्था से ही नैतिकता जीवन का एक प्रमुख अंग बन जाएगी। इस प्रकार नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता से नैतिक मूल्यों का विकास होगा।
6. प्रधानाचार्य तथा अध्यापक गणों का निष्पक्ष होना- प्रधानाचार्य और अध्यापक के ऊपर विद्यालय का पूरा-पूरा दायित्व होता है। उनके व्यवहार आदि का छात्रों के ऊपर पूरा असर पड़ता है। यदि विद्यालय के प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों का व्यवहार निष्पक्ष नहीं है, तो छात्रों पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतः विद्यालय में परस्पर प्रेम एवं सौहार्दपूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिए। उसका छात्र समुदाय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
7. सम्बन्धित धार्मिक उपदेशों से अवगत कराना- नैतिक शिक्षा द्वारा इस बात की आवश्यकता है कि किसी विशेष धर्म के विषय में न बताकर सभी धर्मों में दिए गए उपदेशों से छात्रों को अवगत कराया जाए। आज एक धर्म तथा मत का अनुयायी दूसरे धर्म के व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखता है। ऐसा क्यों है ? ऐसा इसलिए है कि उसे धर्म की सही शिक्षा ही नहीं मिली है। व्यक्ति मात्र अपने धर्म के प्रति ज्ञान अर्जित कर पाया है, दूसरे मत के प्रति नहीं। यदि हम उसे सब धर्मों के बारे में थोड़ा-थोड़ा ज्ञान दिलाते रहें तो वह अन्य धर्मों के साथ अपनी नैतिकता बनाए रखेगा। इसलिए आज ऐसे साहित्य की आवश्यकता है, जिसमें मिले-जुले सभी धर्मों के उपदेश निहित हों। ऐसी पुस्तकों का अध्ययन करना प्रत्येक छात्र के लिए अनिवार्य होना चाहिए, जिससे नैतिकता की भावना बढ़ेगी। व्यक्ति सभी धर्मों के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास बढ़ाएगा। इससे नैतिक मूल्यों का विकास तो होगा ही साथ ही साथ राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिलेगा।
8. नैतिक मूल्यों का मूल्यांकन करके पुरस्कार एवं दण्ड का प्रावधान – जो छात्र विद्यालय में अनैतिक कार्य करते हैं, उन्हें सुधारा जाना चाहिए। यदि उनके सुधारने में दण्ड की आवश्यकता को अनुभव किया जाए तो दण्ड भी छात्रों को दिया जाना चाहिए। इसके विपरीत जो छात्र सही अनुशासित, उत्तम नैतिक व्यक्तित्व वाले हों, उन्हें समय-समय पर पुरस्कार देते रहना चाहिए। उनके नैतिक मूल्यों का मूल्यांकन हम व्यक्तित्व मापन की ‘परिस्थिति परीक्षण’ विधि द्वारा कर सकते हैं। उपर्युक्त नैतिक शिक्षा शिक्षण के विभिन्न उपागम विद्यालय द्वारा व्यवहार में प्रयोग किए जा सकते हैं और छात्रों में नैतिक विकास हेतु परिवर्तन किया जा सकता है।
IMPORTANT LINK
- गणित शिक्षण विधि आगमन विधि
- गणित शिक्षण की निगमन विधि
- विश्लेषण विधि (Analytic Method)
- संश्लेषण विधि (Synthetic Method)
- प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)
- व्याख्यान विधि (Lecture Method)
- योजना विधि (Project Method)
- अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि (Heuristic Method)