शिक्षण विधियाँ / METHODS OF TEACHING TOPICS

गणित शिक्षण विधि आगमन विधि के गुण एंव दोष

गणित शिक्षण विधि आगमन विधि के गुण एंव दोष
गणित शिक्षण विधि आगमन विधि के गुण एंव दोष

गणित शिक्षण विधि आगमन विधि

आगमन विधि में विशेष तथ्यों या उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियमों का निष्कासन विद्यार्थियों से करवाया जाता है। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि इसमें ‘विशेष से सामान्य की ओर’ सूत्र का पालन किया जाता है। लॅडल ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है-“जब कभी हम बालकों के समक्ष बहुत से तथ्य, उदाहरण या वस्तुयें प्रस्तुत करते हैं और फिर उनसे अपने स्वयं के निष्कर्ष निकलवाने का प्रयास करते हैं, तब हम शिक्षण की आगमन विधि का प्रयोग करते हैं।”

इस विधि में अध्यापक एक गणितीय समस्या को एक विशेष ढंग से हल कर लेता है। दूसरी समस्या भी उसी ढंग से हल हो जाती है। इसी प्रकार तीसरी भी। अब ढंग विशेष को ही नियम या सूत्र का रूप दे दिया जाता है। यही आगमन है। यह आवश्यक नहीं कि प्रश्न का हल करने का ढंग अध्यापक द्वारा ही बनाया जाये, छात्र स्वयं भी अभ्यास और त्रुटि द्वारा ऐसा नियम निकाल सकते हैं। यह विधि नितान्त मनोवैज्ञानिक है और विद्यार्थी के मस्तिष्क को अच्छा व्यायाम करा देती है।

आगमन विधि का महत्त्व निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट हो जायेगा-

उदाहरण के लिये यदि हमें अंकगणित में समानुपात के सामान्य नियमों को विद्यार्थियों को सिखाना है, तो हम पहले नियम नहीं बतायेंगे, बल्कि उनके सम्मुख समानुपात के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, जैसे—

3 : 9 : : 4 : 12, 2 : 3 : : 4 : 6

इन उदाहरणों की सहायता से शिक्षक बाह्य और मध्य राशियों को छात्रों को देखने का अवसर प्रदान करेगा-

1. पहले समानुपात में बाह्य राशियाँ कौन-कौन सी हैं ?

  • पहले समानुपात में बाह्य राशियाँ 3 और 12 हैं।

2. बाह्य राशियों का गुणनफल कितना है ?

  • बाह्य राशियों का गुणनफल = 3 x 12 = 36

3. पहले समानुपात में मध्य की राशियाँ कौन-कौन सी हैं ?

  • पहले समानुपात में मध्य की राशियाँ 9 और 4 हैं।

4. मध्य की राशियों का गुणनफल कितना है ?

  • मध्य की राशियों का गुणनफल = 9 × 4 = 36

5. दूसरे समानुपात में बाह्य राशियाँ कौन-कौन सी हैं ?

  • दूसरे समानुपात में बाह्य राशियाँ 2 और 6 हैं।

6. बाह्य राशियों का गुणनफल कितना है ?

  • बाह्य राशियों का गुणनफल = 2 x 6 = 12

7. दूसरे समानुपात में मध्य की राशियाँ कौन-कौन सी हैं ?

  • दूसरे समानुपात में मध्य की राशियाँ 3 और 4 हैं।

8. मध्य की राशियों का गुणनफल कितना है ?

  • मध्य की राशियों का गुणनफल = 3 x 4 = 12

9. आप समानुपात में बाह्य राशियों और मध्य राशियों के गुणनफल में क्या समबन्ध देखते हैं ?

  • समानुपात में बाह्य राशियों और मध्य राशियों का गुणनफल बराबर है।

10. इस प्रकार समानुपात की राशियों में क्या सम्बन्ध रहता है ?

  • समानुपात की राशियों में समानता का सम्बन्ध रहता है।

इस प्रकार समानुपात का नियम ज्ञात हुआ अर्थात् समानुपात में बाह्य राशियों का गुणनफल मध्य राशियों के गुणनफल के बराबर होता है। इस प्रकार अध्यापक, विद्यार्थियों से स्वयं सामान्य नियम ज्ञात करा लेगा।

इसी प्रकार रेखागणित शिक्षण में यदि अध्यापक ने छात्रों को यह सिखाया है कि त्रिभुज के तीनों अन्तकोणों का योग दो समकोण के बराबर होता है तो अध्यापक छात्रों से विभिन्न आकृतियों के कई त्रिभुज बनाने के लिये कहेगा तथा सभी त्रिभुजों के अन्तः कोणों को नपवायेगा। छात्र यह देखेंगे कि प्रत्येक त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग 180 अंश है एवं इस प्रकार वे स्वयं यह नियम जान लेंगे कि त्रिभुज के तीनों अन्तः कोणों का योग 180 अंश या दो समकोण के बराबर होगा।

इसके पश्चात् अध्यापक छात्रों से कोणों के साथ-साथ भुजायें भी नापने को कहेगा। निश्चय ही छात्र स्वयं निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल लेंगे-

1. किसी त्रिभुज के दो कोण समान हों तो दोनों संगत भुजायें भी समान होंगी अर्थात् त्रिभुज समद्विबाहु होगा।

2. किसी त्रिभुज के बड़े कोण के सामने की भुजा भी बड़ी होती है तथा छोटे कोण के सामने की भुजा भी छोटी होती है।

3. यदि त्रिभुज की तीनों भुजायें समान हों तो उसके तीनों कोण भी समान होंगे अर्थात् त्रिभुज समबाहु होगा।

आगमन विधि के गुण-

1. गणित शिक्षण की आगमन प्रणाली छात्रों को अभ्यास एवं स्वयं प्रयास करने का अवसर प्रदान करती है एवं यह उनके मस्तिष्क के विकास में सहायक सिद्ध होती है।

2. यह विधि प्रत्यक्ष तथ्यों पर आधारित है। इस कारण पूर्णतया वैज्ञानिक है।

3. आगमन विधि के द्वारा प्राप्त किया गया गणित का ज्ञान बालकों के मस्तिष्क में सदैव के लिये बैठ जाता है।

4. इस प्रणाली से प्रदान किया गया गणित शिक्षण छात्रों में आत्म-विश्वास की भावना उत्पन्न करता है।

आगमन विधि के दोष –

1. यह प्रणाली अत्यन्त धीमी है और यदि इस प्रणाली को अपनाकर गणित का शिक्षण प्रदान किया जाये तो कभी पाठ्यक्रम समाप्त नहीं होगा।

2. इस विधि के फलस्वरूप कभी-कभी छात्र गलत निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं और उनके मस्तिष्क पर विषय की गलत छाप अंकित हो जाती है।

3. यह विधि सभी बालकों के लिये उपयोगी नहीं है। सब बालकों में योग्यता नहीं होती कि वे गणित के सामान्य नियम निकाल सकें। कुछ विशिष्ट बालक ही ऐसे होते हैं, जो अध्यापक की सहायता से नियम निकालने में समर्थ हो पाते हैं।

4. गणित विज्ञान में इस विधि का कक्षा में सदैव प्रयोग नहीं किया जा सकता।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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