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पाठ्यचर्या की नवीनतम अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
पाठ्यचर्या की नवीनतम अवधारणा को अग्रांकित कुछ परिभाषाएं स्पष्ट करती हैं-
माध्यमिक शिक्षा आयोग – ने अपने प्रतिवेदन में पाठ्यचर्या के सम्बन्ध में बड़े ही महत्त्वपूर्ण, स्पष्ट तथा उपयोगी विचार रखें हैं। प्रतिवेदन में पाठ्यचर्या के सम्बन्ध में कहा गया है कि इसमें बालक के अनुभवों की पूर्णता निहित है। इन अनुभवों को वह विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण में औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से प्राप्त करता है। प्रतिवेदन में लिखा है। “पाठ्यचर्या से तात्पर्य परम्परागत ढंग से विभिन्न विषयों का ज्ञान कराना ही नहीं वरन् यह तो अनुभवों की समग्रता अथवा योग्यता है, इस योग्यता या समग्रता को छात्र विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, क्रीडांगन आदि में चलने वाली क्रियाओं के माध्यम से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण वातावरण ही पाठ्यचर्या बन जाता है जो छात्र के जीवन के प्रत्येक पहलू को स्पर्श करता है और उनके व्यक्तित्व को सन्तुलित बनाता है।”
हार्न- “पाठ्यचर्या वह है जिसे छात्रों को पढ़ाया जाता है। यह अधिगम तथा निष्क्रिय अध्ययन से व्यापक है, इसमें व्यवसाय, उत्पादन, उपलब्धि, अभ्यास तथा विविध क्रियाओं का समावेश होता है। इसमें शासक क्रियाओं के साथ-साथ स्नायुमण्डल से सम्बन्धित क्रियाएं भी सम्मिलित होती हैं। सामाजिक दृष्टि से किसी प्रजाति ने विश्व के सम्पर्क में आकर जो कुछ किया है, पाठ्यचर्या उसका प्रतिनिधित्व करता है। “
क्रो तथा क्रो- “पाठ्यचर्या में छात्र के वें सभी अनुभव सम्मिलित रहते हैं जिन्हें वह विद्यालय में या विद्यालय से बाहर प्राप्त करता है। इन अनुभवों को इस प्रकार एक कार्यक्रम के रूप में व्यवस्थित तथा नियोजित किया जाता है जिससे वह छात्रों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, भावात्मक, आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास को अग्रेसित कर सकें।”
फ्राबेल- “पाठ्यचर्या को मानव जाति के समूचे ज्ञान एवं अनुभव का केन्द्र बिन्दु समझना चाहिये।”
केसवैल- “पाठ्यचर्या वह सब कुछ है जो छात्र, माता-पिता तथा शिक्षकों के जीवन में प्रवाहित होता है। पाठ्यचर्या का निर्माण उन सभी तत्वों से होता है। जो कार्य करते समय अधिगमकर्ता के चारों ओर फैले रहते हैं। वास्तव में पाठ्यचर्या को गतिमय वातावरण कहा गया है। “
मुनरो- “पाठ्यचर्या में वे सभी अनुभव शामिल होते हैं जो विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग में लायें जाते हैं।”
रेडीयार्ड एवं क्रोनबर्ग हेनरी- “अपने व्यापक अर्थ में पाठ्यचर्या में विद्यालय का सम्पूर्ण वातावरण आता है जिसमें सभी प्रकार की पाठ्य सामग्री क्रियाएं, पाठन तथा संगठन सम्मिलित होते हैं जो एक विद्यालय छात्रों को उपलब्ध करता है।”
पाठ्यचर्या की विशेषताएं
पाठ्यचर्या के स्वरूप तथा स्वभाव का अध्ययन कर लेने के उपरान्त यह आवश्यक प्रतीत होता है कि उसकी विशेषताओं का अध्ययन किया जायें। सामन्यतः पाठ्यचर्या में नीचे लिखी विशेषताएं देखने को मिलती है-
1. पाठ्यचर्या समाज की संस्कृति का आधार एवं प्रतिबिम्ब होता है तथा यह समाज की संस्कृति का अनवरत हस्तान्तरण करता रहता है।
2. पाठ्यचर्या समाज की संस्कृति के केवल उन्हीं अंगों का हस्तान्तरण नई पीढ़ी को करता है जिन्हें समाज अति आवश्यक समझता है।
3. “पाठ्यचर्या कोई अन्तिम वस्तु नहीं है यह तो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन मात्र है। इसे आवश्यकता पड़ने पर अनेक बार निर्मित तथा पुनर्निमित किया जा सकता है।”
4. पाठ्यचर्या निर्माण के निम्नांकित तीन आधार होते हैं-
- (अ) समाज की संस्कृति के महत्त्वपूर्ण
- (ब) छात्रों की आवश्यकताएँ तथ्य,
- (स) समाज की वास्तविकताएँ।
5. सामाजिक परिवर्तनों के साथ ही साथ पाठ्यचर्या में परिवर्तन अनिवार्य हों जाते हैं।
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