पाठ योजना से आप क्या समझते हैं ? पाठ-योजना के विभिन्न उपागमों का वर्णन कीजिए।
सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिये पाठ योजना का होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पाठ-योजना का जन्म शिक्षक के कक्षा में जाने से पहले ही हो जाता है जिससे अध्यापक कक्षा-कक्ष में अपने शिक्षण कार्य को आत्म-विश्वास के साथ शुरू करता है। इससे अध्यापक को अपने विषय से सम्बन्धित कक्षा में आने वाली कठिनाइयों का पहले ही पता चल जाता है और वह उन कठिनाइयों का सामना करने के लिये अपने आप को तैयार कर लेता है। इस प्रकार वह शिक्षण कार्य के दौरान विद्यार्थियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देकर उनकी जिज्ञासा पूर्ति कर सकता है। पाठ-योजना अध्यापक के लिये इतनी आवश्यक है तो हमारे लिये पाठ-योजना का अर्थ समझना अति आवश्यक हो जाता है।
Contents
पाठ-योजना का अर्थ (Meaning of Lesson Planning)
पाठ-योजना किसी विषय-वस्तु की उस छोटी इकाई को कहते हैं, जिसे अध्यापक किसी निश्चित कालांश में पढ़ाता है। अतः पाठ-योजना का तात्पर्य उन सभी बातों के विस्तारपूर्वक विवरण से है, जिन्हें अध्यापक एक निश्चित अवधि के अन्दर पूरी कर लेता है। यह अवधि भिन्न-भिन्न स्कूलों, महाविद्यालयों में कम या अधिक हो सकती है। इसलिए प्रत्येक अध्यापक को अपने स्कूल की अवधि के अनुसार अपनी पाठ-योजना का निर्माण करना चाहिये।
पाठ-योजना के विषय में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषायें प्रदान की हैं, परन्तु सभी परिभाषाओं में यह निश्चित है कि “पाठ-योजना” तैयार करने की अवस्था में अध्यापक को शिक्षण से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं का नियोजन करना होता है।
डेविस के अनुसार, “कक्षा में जाने से पहले शिक्षक को पूरी तैयारी कर लेनी चाहिये, क्योंकि शिक्षक की प्रगति के लिये कोई बात इतनी बाधक नहीं है, जितनी कि शिक्षण की अपूर्ण तैयारी।”
(Lesson must be prepared for there is nothing so fatal to a teacher’s progress as un preparedness.)
बिनिंग और बिनिंग के अनुसार, “दैनिक पाठ-योजना में उद्देश्यों को परिभाषित करना, पाठ्य-वस्तु का चयन, उसे क्रम में व्यवस्थित करना और विधियों तथा प्रक्रिया को निर्धारित करना शामिल है।”
(“Daily lesson planning involves defining the objective, selecting and arranging the subject matter and determining the method and procedure.”) -Bining and Bining
अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा शब्द-कोष के अनुसार, “पाठ-योजना किसी पाठ के वे आवश्यक बिन्दुओं की रूपरेखा है, जिन्हें इस क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, जिस क्रम में उन्हें अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत किया जाना होता है।”
(Lesson plan is the outline of the important points of a lesson arranged in the order in which they are to presented to students by the teacher.)
पाठ-योजना के विभिन्न उपागम (Various Approaches to Lesson Planning)
पाठ-योजना का निर्माण करने के लिये शिक्षाविदों ने अपनी-अपनी मौलिक धारणाओं तथा सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुये भिन्न-भिन्न समयों में भिन्न-भिन्न उपागमों पर जोर दिया, लेकिन पाठ-योजना के निर्माण के लिये कौन-सा उपागम उचित है, इसके विषय में कुछ भी निर्धारित नहीं किया जा सका। पाठ-योजना को तैयार करने के लिये कुछ उपागम निम्नलिखित हैं-
- हरबार्ट का पंच-पदीय उपागम (Herbartian Five Steps Approach),
- मौरीसन या इकाई उपागम (Morrison’s or Unit Approach),
- ब्लूम या मूल्यांकन उपागम (Bloom’s or Evaluation Approach),
- आर० सी० ई० एम० उपागम (R. C. E. M. Approach)
हरबार्ट का पंच-पदीय उपागम (Herbartian Five Steps Approach)
जर्मनी का प्रसिद्ध दार्शनिक एवं शिक्षाशास्त्री हरबार्ट ने शिक्षण की पाठ-योजना को पाँच पदों में बाँटा है। इन्हीं पाँच पदों को आधार बनाकर ही पाठ-योजना का निर्माण किया जाता है। यह उपागम हरबार्ट द्वारा सुझाया गया सबसे पुराना उपागम है। इसलिये इस उपागम का प्रयोग अधिकतर शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में पाठ-योजना के लिये किया जाता है।
हरबार्ट का यह उपागम इस सिद्धान्त पर आधारित है कि ज्ञान व्यक्ति को बाहर से दिया जाता है और वह ज्ञान व्यक्ति में इकट्ठा होता रहता है। इसे ‘संचित ज्ञान सिद्धान्त’ कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार नये ज्ञान को पुराने ज्ञान से सम्बन्धित करके दिया जाना चाहिये ताकि यह ज्ञान अधिक स्थायी हो सके।
शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली पाठ-योजना के हरबार्ट महोदय ने निम्नलिखित पाँच पद निर्धारित किये-
- उद्देश्य कथन (Statement of Aim)
- प्रस्तुतीकरण (Presentation)
- स्पष्टीकरण (Explanation)
- सामान्यीकरण (Generalisation)
- प्रयोग (Application)
1. उद्देश्य कथन (Statement of Aim)- हरबार्ट के द्वारा निर्धारित किये गये इस पद को प्रस्तावना या तैयारी भी कहा जाता है। इस पद में उद्देश्य कथन पाठ की प्रस्तावना से आरम्भ किया जाता है। इस पद में विद्यार्थियों में पूर्व ज्ञान को जाँचने के लिये कुछ प्रश्न किये जाते हैं, जिससे उनमें नये ज्ञान को सीखने के लिये उत्सुकता पैदा हो, या फिर हम यह कह सकते हैं कि इस पद के अन्तर्गत विद्यार्थियों के पूर्व अनुभवों की जाँच करते हुये उन्हें नये ज्ञान को ग्रहण करने के लिये तैयार (Ready) किया जाता है। इस प्रकार प्रस्तावना के बाद उद्देश्य कथन में उस दिन पढ़ाये जाने वाले पाठ की घोषणा अध्यापक द्वारा की जाती है। इस प्रकार पाठ के अगले पद आरम्भ होते हैं तथा इस तरह से विद्यार्थियों को नया अध्याय या पाठ पढ़ने के लिये मानसिक रूप से तैयार किया जाता है।
2. प्रस्तुतीकरण (Presentation)- हरबार्ट उपागम में हरबार्ट द्वारा निर्धारित किये गये पाठ-योजना के इस दूसरे पद में शिक्षक द्वारा नई विषय-सामग्री को विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत करके विद्यार्थियों के सहयोग से मूल पाठ का विकास किया जाता है। इस पद के अन्तर्गत अध्यापक अपनी सुविधानुसार पाठ को दो या तीन इकाइयों (Units) में बाँट सकता है तथा फिर एक इकाई के बाद दूसरी इकाई को रुचिकर तथा स्पष्ट बनाने का प्रयास अध्यापक के द्वारा किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वह अपने शिक्षण कार्य को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सके। इस पद में अध्यापक अधिकतर बातें विद्यार्थियों से प्रश्नों के द्वारा निकलवाने का प्रयास करता है, जिससे नये ज्ञान का पूर्व ज्ञान से सम्बन्ध स्थापित हो जाये।
3. स्पष्टीकरण (Explanation)- हरबार्ट उपागम के इस पद को ‘तुलना और सम्बन्ध’ (Comparison and Association) का पद भी कहते हैं। इस पद में पढ़ाये गये तथ्यों, घटनाओं, प्रयोगों आदि की तुलना के द्वारा आपस में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है, जिससे पढ़ाई गई विषय-वस्तु विद्यार्थियों की समझ में स्पष्ट रूप से आ जायें। इसलिये अध्यापक एक विषय का सम्बन्ध दूसरे विषय से तथा एक ही विषय में एक घटना अथवा तथ्य का सम्बन्ध उसी विषय के दूसरे तथ्य अथवा घटना से स्थापित करता है एवं उसकी तुलना करता है ताकि वह नया ज्ञान विद्यार्थियों के मस्तिष्क पटल पर स्पष्ट हो जाये।
4. सामान्यीकरण (Generalisation) – हरबार्ट उपागम में पाठ-योजना का यह चौथा पद है। इस पद को समझाने के बाद कुछ न कुछ निष्कर्ष अवश्य निकाला जाता है। इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर ही कुछ सामान्य नियम बनाये जाते हैं। इसी प्रक्रिया को सामान्यीकरण कहते हैं। सामान्यीकरण का कार्य अध्यापक स्वयं न करके विद्यार्थियों से ही करवाये ताकि अधिगम अधिक प्रभावशाली हो सके। सामान्यीकरण की क्रिया में अध्यापक केवल विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करे।
5. प्रयोग (Application)- हरबार्ट उपागम में पाठ-योजना का यह अन्तिम पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस पद में विद्यार्थियों को प्रदान किये ज्ञान को स्थायी बनाने के लिये अवसर प्रदान किये जाते हैं। सीखे हुए ज्ञान को नवीन परिस्थितियों में प्रयोग करने से ही ज्ञान स्थायी हो सकता है। इसलिए ज्ञान को स्पष्ट करने के लिए तथा नियमों की सत्यता को सिद्ध करने के लिये विद्यार्थियों को अर्जित ज्ञान के प्रयोग की सुविधायें प्रदान करनी अत्यन्त आवश्यक है। इस पद का प्रयोग प्राय: विज्ञान, गणित आदि विषयों में आसानी से हो सकता है।
हरबार्ट उपागम में पाठ-योजना की रूपरेखा (Outline of Lesson Plan in Herbart’s Approach)
हरबार्ट उपागम के ऊपर लिखित पाँच पदों को आधार मानकर पाठ-योजना की निम्नलिखित रूपरेखा का निर्धारण किया जाता है। इसी रूपरेखा का प्रयोग करके छात्र-अध्यापक पाठ-योजना तैयार करता है।
1. कक्षा विषय तथा उप-विषय (Class, Subject and Topic) – हरबार्ट उपागम में पाठ-योजना की रूपरेखा के पहले बिन्दु में विषय का उप-विषय निर्धारित किया जाता है। इसके बाद शिक्षण का स्तर, कक्षा, दिनांक आदि को निर्धारित किया जाता है।
2. सामान्य उद्देश्य (General Objectives) – प्रत्येक विषय के शिक्षण के पीछे कोई न कोई सामान्य उद्देश्य अवश्य होता है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति ही शिक्षण की सफलता होती है। इन सामान्य उद्देश्यों का निर्धारण विषय तथा उप-विषय को ध्यान में रखकर किया जाता है। भाषा, विज्ञान तथा सामाजिक शिक्षण के सामान्य उद्देश्य अलग होते हैं। सामान्य उद्देश्य कक्षा स्तर तथा आयु वर्ग के अनुसार होने आवश्यक हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति में पाठ-योजना का विशेष योगदान है।
3. विशिष्ट उद्देश्य (Specific Objectives) – विशिष्ट उद्देश्यों सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से पढ़ाये जाने वाले पाठ से होता है। इनका निर्धारण पाठ्य-वस्तु को ध्यान में रखकर किया जाता है। विशिष्ट उद्देश्य प्रत्येक उप-विषय के साथ बदलते रहते हैं। इनके निर्धारण के लिये अध्यापक को विषय-वस्तु का व्यापक ज्ञान होना चाहिये।
4. सहायक सामग्री (Material Aids)- सहायक सामग्री का प्रयोग शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये किया जाता है। सहायक सामग्री जैसे- चार्ट, मॉडल, रेडियो, दूरदर्शन, टेपरिकार्डर, प्रोजैक्टर आदि का प्रयोग तीन चरणों में किया जाता है
- (अ) प्रस्तावना के समय
- (ब) पाठ के मध्य में।
- (स) पुनरावृत्ति के दौरान।
सहायक सामग्री का चयन कक्षा के स्तर के अनुसार होना चाहिये तथा सहायता सामग्री पाठ्य-वस्तु से सम्बन्धित भी होनी चाहिये।
5. पूर्व ज्ञान (Previous Knowledge)- हरबार्ट के अनुसार नवीन ज्ञान पूर्व ज्ञान पर आधारित होता है। इसलिये नवीन और पूर्व ज्ञान में सम्बन्ध स्थापित किया जाना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप पाठ सरल, स्पष्ट तथा रुचिकर होगा तथा ज्ञान क्रमबद्ध तथा सुव्यवस्थित होगा।
6. प्रस्तावना (Introduction)- पाठ की प्रस्तावना विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान पर आधारित होती है। प्रस्तावना के से नये पाठ तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। प्रस्तावना के लिए उपविषय से सम्बन्धित पूर्व ज्ञान के बारे में माध्यम 3 या 4 प्रश्न पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों को तैयार करने में अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। प्रस्तावना के लिए प्रश्नों को क्रमबद्ध तरीके से पूछा जाना चाहिये, क्योंकि यह एक प्रकार से नये पाठ की भूमिका बाँधने का कार्य करती है।
7. उद्देश्य कथन (Statement of Aim)- प्रस्तावना के समाप्त होते ही अध्यापक को शिक्षण के उद्देश्य का कथन स्पष्ट रूप में कर देना चाहिये तथा उसको श्यामपट पर लिख देना चाहिये। उद्देश्य कथन में सरल तथा स्पष्ट भाषा का प्रयोग होना चाहिये।
8. प्रस्तुतीकरण (Presentation)- उद्देश्य कथन के बाद अध्यापक विषय-वस्तु को विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करता है। पाठ-योजना के समय अध्यापक अपनी सुविधानुसार विषय-वस्तु को इकाइयों (Units) में विभाजित कर लेता है। इन भागों द्वारा ज्ञान को कक्षा-कक्ष में विद्यार्थियों को क्रमबद्ध ढंग से प्रदान किया जाता है। प्रस्तुतीकरण के दौरान अध्यापक विद्यार्थियों से विकासात्मक प्रश्न पूछकर पाठ को आगे बढ़ाता है। जब विद्यार्थी विकासात्मक प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं दे पाता तो उस समय अध्यापक को उनके स्पष्टीकरण के लिए अपने कथनों की पुनरावृत्ति करनी चाहिये। प्रस्तुतीकरण के दौरान अध्यापक को विद्यार्थियों की मानसिक क्रिया को प्रेरित करते रहना चाहिये। इसी पद के दौरान तुलना तथा सहसम्बन्ध पर भी ध्यान दिया जाता है।
9. श्यामपट सार (Black-Board Summary) – श्यामपट के बिना शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया में अर्थहीन है। वह शिक्षक के मित्र के रूप में कार्य करता है। अध्यापक अपने शिक्षण बिन्दुओं को श्यामपट पर लिखता है। श्यामपट सार को लिखने में विद्यार्थियों की सहायता ली जानी चाहिये। श्यामपट सार की भाषा कक्षा के स्तरानुसार संक्षिप्त तथा स्पष्ट होनी चाहिये। श्यामपट पर लिखाई आकर्षक होनी चाहिये।
10. पुनरावृत्ति ( Recapitulation)- पढ़ाये गये पाठ को दोहराना ही पुनरावृत्ति कहलाता है। इस पद में पाठ के प्रत्येक पद का प्रस्तुतीकरण करने के बाद अध्यापक को कुछ पुनरावृत्ति प्रश्नों का उल्लेख करना चाहिये। इससे तीन लाभ होंगे-
- (अ) पाठ की आवृत्ति हो जायेगी।
- (ब) विद्यार्थियों द्वारा अर्जित किये हुए ज्ञान का पता चल जायेगा ।
- (स) अध्यापक को यह भी पता चल जायेगा कि वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में कहाँ तक सफल रहा।
इसलिये पाठ की समाप्ति पर पूरे पाठ की पुनरावृत्ति की जानी चाहिये।
11. गृह कार्य (Home Work) – शिक्षण प्रक्रिया में गृह कार्य से विद्यार्थियों में अभ्यास तथा दोहराने की प्रवृत्ति बढ़ती है। इससे विद्यार्थियों के ज्ञान में स्थायीपन आता है।
हरबार्ट उपागम के गुण (Merits of Herbartian Approach)
- इस उपागम में शिक्षक की सक्रियता अधिक होती है।
- इसका प्रयोग सभी विषयों में हो सकता है।
- अर्जित ज्ञान का नई परिस्थितियों में प्रयोग सिखाया जाता है।
- यह मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।
- इस उपागम में समस्त ज्ञान में समन्वय सम्भव है।
- यह शिक्षक-प्रधान उपागम है।
- इसका स्वरूप व्यवस्थित और नियन्त्रित है।
- यह पूर्व-अर्जित ज्ञान के सिद्धान्त पर आधारित है।
हरबार्ट उपागम के दोष (Demerits of Herbartian Approach)
- इस उपागम में लचीलापन कम होता है।
- इस उपागम में केवल प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया जाता है।
- इस उपागम द्वारा स्मृति स्तर का शिक्षण ही सम्भव है।
- इसमें ज्ञानात्मक पक्ष का शिक्षण ही सम्भव होता है।
- इसमें शिक्षक की स्वतन्त्रता भी सीमित होती है।
- इसमें शिक्षण उद्देश्यों और अधिगम परिस्थितियों की ओर ध्यान नहीं होता।
- इस उपागम में छात्रों की रुचियों और अभिरुचियों की ओर ध्यान नहीं होता।
- इसमें शिक्षण अधिगम उद्देश्यों का विशिष्टीकरण नहीं होता।
पाठ-योजना की आवश्यकता तथा महत्त्व (Need and Importance of Lesson Planning)
पाठ-योजना की आवश्यकता और महत्व निम्नलिखित हैं-
- इससे अध्यापक आत्मविश्वास अर्जित करता है।
- अध्यापक में क्रमबद्ध कार्य करने की आदत का विकास होता है।
- अध्यापक में शिक्षण-कौशलों का विकास होता है।
- पाठ-योजना द्वारा कक्षा में अनुशासन रहता है।
- पाठ-योजनाएँ पूर्व-ज्ञान पर आधारित हैं, जिससे विद्यार्थी ज्ञान को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।
- किसी भी विषय के शिक्षण के लिये व्यापक उद्देश्यों को परिभाषित करने में पाठ-योजना सहायक सिद्ध होती है।
- पाठ-योजना द्वारा पुनर्बलन प्रविधि का प्रयोग किया जा सकता है।
- पाठ-योजना द्वारा व्यवस्थित ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
- पाठ-योजना द्वारा शिक्षण-अधिगम में सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता
- पाठ-योजना द्वारा कक्षा की समस्याओं का ज्ञान हो सकता है।
- रुविकर शिक्षण के लिये पाठ-योजनाएँ सहायक सिद्ध होती हैं।
- पाठ-योजनाओं द्वारा अध्यापकों में विस्मृति (Forgetting) कम होती है।
- शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान कक्षा-क्रियाओं के लिये रूप-रेखा बनाने में पाठ-योजना आवश्यक है।
- पाठ-योजना द्वारा शिक्षण-उद्देश्यों में स्पष्टता आती है।
- पाठ-योजना में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का प्रयोग सम्भव है।
- पाठ-योजना से मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
IMPORTANT LINK
- डाल्टन पद्धति का क्या तात्पर्य है ? डाल्टन-पद्धति का उद्देश्य, कार्य प्रणाली एंव गुण-दोष
- बेसिक शिक्षा पद्धति | Basic Education System In Hindi
- मेरिया मॉन्टेसरी द्वारा मॉण्टेसरी पद्धति का निर्माण | History of the Montessori Education in Hindi
- खेल द्वारा शिक्षा पद्धति का क्या तात्पर्य है ?
- प्रोजेक्ट पद्धति क्या है ? What is project method? in Hindi
- किण्डरगार्टन पद्धति का क्या अर्थ है ? What is meant by Kindergarten Method?