राजनीति विज्ञान / Political Science

प्रभुसत्ता किसे कहते हैं? प्रभुसत्ता की विशेषताएँ

प्रभुसत्ता किसे कहते हैं? प्रभुसत्ता की विशेषताएँ
प्रभुसत्ता किसे कहते हैं? प्रभुसत्ता की विशेषताएँ

प्रभुसत्ता किसे कहते हैं? इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।

प्रभुसत्ता का अर्थ – प्रभुसत्ता अंग्रेजी शब्द सावरन्टी का हिन्दी रूपान्तर है। Sovereignty शब्द अंग्रेजी के Sovereign से बना है। जो कि लैटिन भाषा के दो शब्दों Super तथा Anus से मिलकर बना है। Super का अर्थ-श्रेष्ठ और Anus का अर्थ शक्ति होता है। इस प्रकार किसी भी स्थान में उसकी सर्वोच्च सत्ता को प्रभुसत्ता कहते हैं।

इसके दो रूप हैं—

(अ) आन्तरिक सम्प्रभुता- जब राज्य आन्तरिक मामलों में स्वतन्त्र हो तो उसे आन्तरिक सम्प्रभुता कहते हैं। राज्य के अन्तर्गत सभी व्यक्ति एवं समुदाय उसके अधीन होते हैं।

(ब) बाह्य सम्प्रभुता – बाह्य सम्प्रभुता में राज्य विदेशी मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष – रूप से स्वतन्त्र होता है।

प्रभुसत्ता की परिभाषा – प्रभुसत्ता की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की है। कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ नीचे दी जा रही हैं।

1. बोदाँ — यह नागरिकों तथा प्रजा के ऊपर प्रयुक्त की जाने वाली सर्वोच्च शक्ति है जो  कानूनों से नियन्त्रित नहीं होती।

2. ग्रोशियस — यह सर्वोच्च राजनीतिक शक्ति है जो उस व्यक्ति में निहित होती है जिसके  कार्य किसी अन्य के अधीन नहीं होते तथा जिसकी इच्छा का विरोध नहीं हो सकता।

3. बर्गेस- वह राज्य की, राज्य के व्यक्तियों तथा समुदायों पर मौलिक, निरंकुश तथा असीमित शक्ति है। यह वह स्वतन्त्र शक्ति है जो लोगों को आज्ञापालन करने के लिए बाह्य कार सकती है।

4. जेलिनेक- यह राज्य का वह विशेष लक्षण है जिसके गुण से वह अपनी इच्छा अतिरिक्त किसी से नियन्त्रित नहीं हो सकता या अपने के अतिरिक्त अन्य किसी शक्ति से सीमित नहीं हो सकता।

5. ब्लेकस्टोन- राजसत्ता सर्वोच्च, अनियन्त्रित, परम तथा असीमित शक्ति है जिसमें विधि-निर्माण की सर्वोच्च सत्ता स्थित है।

6. सर फ्रेडरिक पोलक– सम्प्रभुता वह शक्ति है जो न तो अस्थायी होती है, न प्रदत्त, न किन्ही ऐसे विशिष्ट नियमों द्वारा बँधी होती है, जिन्हें वह स्वयं बदल न सके और जो न पृथ्वी पर अन्य किसी शक्ति के प्रति उत्तरदायी होती है।

7. क्रेनेकबर्ग – सम्प्रभुता राज्य का वह गुण है जिसके द्वारा वह बिना शर्त के अपनी इच्छा दूसरों पर लागू करता है।

8. जॉन ऑस्टिन- यदि कोई निश्चित मनुष्य जो श्रेष्ठतम् है तथा अन्य किसी श्रेष्ठतम मनुष्य से आदेश प्राप्त करने का अभ्यास न हो किसी निश्चित समाज के एक बड़े भाग से साधारणतः अपने आदेशों का पालन कराने का अभ्यासी हो, तो वह समाज का प्रभु है और उस सर्वोत्तम मनुष्य सहित यह समाज एक राजनीतिक तथा स्वतन्त्र समाज है।

सम्प्रभुता या प्रभुसत्ता की वास्तविक परिभाषा- उपर्युक्त परिभाषाओं यह स्पष्ट होता है कि सम्प्रभुता वह शक्ति है जिस पर किसी का नियन्त्रण नहीं होता। प्रभुसत्ता के दो पक्ष होते हैं— (1) आन्तरिक और बाह्य। आन्तरिक प्रभुसत्ता का तात्पर्य राज्य की उस शक्ति से है। जिसका सम्बन्ध राज्य के अन्दर रहने वाले व्यक्तियों के समूह से होता है। यह सत्ता राज्य के समस्त व्यक्तियों के ऊपर सर्वोच्च स्थान रखती है। बाह्य सम्प्रभुता का अर्थ राज्य की उस शक्ति से है जिसके द्वारा राज्य को युद्ध और शान्ति की नीति का निर्धारण करने का अधिकार प्राप्त होता है।

इस प्रकार हम एक विद्वान के शब्दों में सम्प्रभुता की वास्तविक परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत में कर सकते हैं— “सम्प्रभुता राज्य की उस सर्वोच्च असीमित, अदेश, अभेद्य मौलिक तथा स्थायी शक्ति को कहते हैं जिसकी आज्ञापालन करने के लिए राज्य के सभी व्यक्ति और समुदाय बाध्य है तथा जो बाह्य वैदेशिक नीति निर्धारण में पूर्ण स्वाधीन हो।”

प्रभुसत्ता की विशेषताएँ ( Characteristics of Sovereignty )

गार्नर ने प्रभुसत्ता की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है-

(i) परम पूर्णता – सम्प्रभुता राज्य के अन्तर्गत परम पूर्ण होती है। यह राज्य के आन्तरिक तथा बाह्य मामलों में सर्वोपरि होती है। राज्य के समस्त नागरिक समुदाय तथा संस्थाएँ सम्प्रभुता के अधीन हैं। राज्य के बाहरी मामलों में भी सम्प्रभुता होती है। इसके ऊपर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जा सकता है। इस प्रकार सम्प्रभुता राज्य के अन्दर तथा बाहर के नियन्त्रणों से मुक्त होता है।

(ii) सार्वभौमिकता- सम्प्रभुता में सार्वभौमिकता निहित है। राज्य के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था सम्प्रभुता से छुटकारा नहीं पा सकती। राज्य के भीतर सभी व्यक्तियों, व्यक्तियों एवं संस्थाओं पर सम्प्रभुता का अधिकार होता है।

(iii) अदेयता- सम्प्रभुता की अदेयता का अभिप्राय यह है कि सम्प्रभु इसे किसी दूसरे व्यक्ति अथवा संस्था को नहीं दे सकता। ऑस्टिन ने भी सम्प्रभुता को अदेय माना है। इसी प्रकार रूसों ने भी सम्प्रभुता की अदेयता का समर्थन किया है। सम्प्रभुता की अदेयता के बारे में अमरीकी लेखक लीवर ने यह उल्लेख किया है कि, “जिस प्रकार वृक्ष अपने पनपने के अधिकार को नहीं छोड़ सकता और जिस प्रकार एक व्यक्ति अपने जीवन का विनाश किए बिना अपने व्यकित्व को अलग नहीं कर सकता, ठीक उसी प्रकार राज्य को भी सम्प्रभुता से अलग नहीं किया जा सकता।”

(iv) स्थायित्व – जब तक राज्य बना रहता है तब तक सम्प्रभुता भी बनी रहती है। राजा की मृत्यु अथवा अपदस्थ होने से सम्प्रभुता का नाश नहीं होता, वह नये सम्प्रभु के हाथ में के चली जाती है। यह केवल शासन का परिवर्तन मात्र है। इससे राज्य के अटूट अस्तित्व में कोई बाधा नहीं आती। गार्नर के अनुसार- “सम्प्रभुता मृत्यु अथवा विशेष वाहक के अस्थायी रूप में अधिकार से वंचित होने अथवा राज्य के पुनर्निर्माण होने से समाप्त नहीं होती। शीघ्र नये वाहक के हाथ में उसी प्रकार बदल जाती है जिस प्रकार भौतिक शरीर के बाहरी परिवर्तन के समय आकर्षण का केन्द्र एक अंग से बदल जाता है।

(v) अविभाज्यता- एक ही राज्य में सम्प्रभुता को एक से अधिक व्यक्तियों में बाँटा नहीं जा सकता। सम्प्रभुता को बाँटने से राज्य की एकता समाप्त हो जाती है। काल्होने के अनुसार, “सम्प्रभुता सर्वोच्च शक्ति है। इसको विभक्त करना इसे नष्ट करना है। जिस प्रकार हम आधे वर्ग अथवा आधे त्रिभुज की कल्पना नहीं करते उसी प्रकार की आधी सर्वोच्च शक्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।” गेटेल ने भी इस मत का समर्थन किया है। उसके अनुसार “यदि सम्प्रभुता पूर्ण नहीं, तो किसी राज्य का अस्तित्व ही नहीं है। यदि सम्प्रभुता विभाजित है तो एक से अधिक राज्य का अस्तित्व हो जाता है।”

(vi) अनेक बहुलवादी- कुछ बहुलवादी विचारकों ने इस मत का विरोध किया है। सम्प्रभुता को राज्य के भीतर विभिन्न व्यक्तियों तथा व्यक्ति समूह में विभक्त मानते हैं। बहुलवादी विचारक विभिन्न सम्प्रभुता के सिद्धान्त का समर्थन करते हैं।

(vii) एकता– सम्प्रभुता में एकता होती है। जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों में एकता होती है उसी प्रकार सम्प्रभुता के कारण राज्य की एकता भी बनी रहती है।

(viii) अवधि- रहितता – इसका अभिप्राय यह है कि सम्प्रभुता निरन्तर कियाशी रहती है। इसकी क्रियाशीलता किसी भी समय समाप्त नहीं होती है। यदि सम्प्रभुता का उपयोग न करें तो सम्प्रभुता नष्ट हो सकती है।

(ix) मौलिकता – सम्प्रभुता मौलिक होती है। सम्प्रभुता के पास जो शक्ति होती है, उसे वह अर्जित नहीं कर सकता।

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Anjali Yadav

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