प्रश्नोत्तर प्रणाली (Questioning Technique or Socratic Method)
प्रश्नोत्तर प्रणाली उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के लिये विशेष रूप से उपयोगी है। भारतीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षण का कार्य अधिकतर इसी विधि से कराया जाता है। भूगोल शिक्षण प्रश्नोत्तर प्रणाली द्वारा सुचारु एवं व्यवस्थित ढंग से कराया जा सकता है।
प्रश्नोत्तर प्रणाली का जन्मदाता ‘सुकरात’ (Socrates) था। इस विधि में अध्यापक छात्र के पूर्व ज्ञान के आधार पर प्रश्न करता है तथा धीरे-धीरे बालकों की जिज्ञासा को उभार देता है। इन प्रश्नों के माध्यम से ही वह अपनी पाठ्यवस्तु को उनके सामने रख देता है। आवश्यकता पड़ने पर अध्यापक छात्रों की शंकाओं का समाधान भी करता है, परन्तु अध्यापक का प्रयत्न यही रहता है कि छात्रों की शंकाओं का समाधान उन्हीं के द्वारा करा दिया जाय और उनकी रुचि तथा जिज्ञासा को बढ़ाकर उन्हें स्वयं ज्ञान ग्रहण करने के लिये प्रेरित कर दिया जाय। इस प्रकार अध्यापक छात्रों के अव्यवस्थित ज्ञान को व्यवस्थित कर उन्हें सच्चा ज्ञान देता है। इस विधि में प्रश्न और उत्तरों की प्रधानता होने के कारण ही इसे प्रश्नोत्तर विधि कहते हैं।
गुण
इस विधि में बालकों के पूर्व ज्ञान की उचित सहायता ली जाती है और उनके आधार पर नवीन ज्ञान दिया जाता है।
इस विधि से अध्यापक को यह पता चल जाता है कि छात्रों ने उसकी पढ़ाई हुई वस्तु को समझ लिया है अथवा नहीं।
इस विधि से छात्रों में चिन्तन और तर्क शक्तियों का विकास होता है।
यह विधि मनोवैज्ञानिक है। बालक जिज्ञासु होते हैं। अनेक प्रश्न भी पूछते हैं तथा दूसरे लोगों द्वारा पूछे हुए प्रश्नों का उत्तर भी देते हैं, इस प्रकार उनकी जिज्ञासा शान्त एवं सन्तुष्ट होती है।
इस विधि के माध्यम से निश्चित तथ्यों को समझने में कम समय लगता है।
प्रश्नों के माध्यम से छात्रों की रुचि एवं जिज्ञासा को जाग्रत किया जाता है।
इस विधि में प्रश्नों के माध्यम से बालकों का ध्यान पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित किया जा सकता है।
दोष
1. इस विधि से शिक्षण करने के लिये बहुत प्रश्न पूछने पड़ते हैं, इस प्रकार कक्षा में प्रश्नों का एक तांता-सा लग जाता है, जो ठीक नहीं है।
2. प्रारम्भिक कक्षाओं में यह विधि अधिक लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकती है। उपर्युक्त दोषों को दूर किया जा सकता है और इस विधि को अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है, क्योंकि आजकल लगभग सभी विषयों के शिक्षण में इस विधि का प्रयोग किया जाता है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षक एवं छात्राध्यापक अपने पाठ में प्रश्नों द्वारा बालकों की रुचि उत्पन्न करें और उसके पश्चात् प्रश्नों द्वारा पूर्व ज्ञान के आधार पर अपना पाठ आगे बढ़ायें।
3. यह विधि भौगोलिक तथ्यों को छात्रों से निकलवाने में अधिक सहायता नहीं करती है, क्योंकि जिन भौगोलिक तथ्यों को बालक नहीं जानता वे उनसे किस प्रकार निकलवाई जा सकती हैं।
4. बालक को भी बहुत-से प्रश्न पूछने की आदत पड़ जाती है और वे कभी-कभी व्यर्थ के प्रश्न पूछने भी शुरू कर देते हैं।
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