बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं?
बिहारी के दोहों की गति तो बहुत ही मस्तानी है। इसका कारण यही है कि बिहारी समास पद्धति की सारी कला भाँति-भांति जानते थे। थोड़े में बहुत कहने की शक्ति इनकी भाषा में थी। उनमें वह शक्ति थीं कि वे किसी भाव को व्यक्त करने के लिए समुचित उपकरणों को जुटा सकते थे। बिहारी के काव्य शिल्प की सबसे बड़ी विशेषता समास पद्धति है। सतसई के दोहों में वह उक्ति प्रसिद्ध है-
सतसैया के दोहरे, ज्यों नाविक के तीर,
देखन में छोटे लगैं, घाव करें गम्भीर ॥
बिहारी ने अपने दोहे जैसे छन्द में प्रचुर मात्रा में सामग्री भर दी है। बिहारी ने इसी समास पद्धति की सफलता के लिए दोहा जैसे छोटे-छोटे छन्दों को ग्रहण किया था। दोहा छन्द में स्वयं ही एक कौशल विशेष भरा है। दोहा सबसे संक्षिप्त छन्द है और संक्षिप्तता को प्रतिभा प्राण कहा गया है।
नेत्रों की भाव भंगिमा को जिस गंभीर प्रभाव की अभिव्यंजना सुन्दरदास ने कई पंक्तियों में पद के माध्यम से की है, उसी भाव व्यंजना को उससे भी अधिक मार्मिकता एवं प्रभावपूर्ण शैली में बिहारी ने केवल दो पंक्तियों के दोहे में व्यक्त की है-
“कहा लड़ैते द्रुग करें, परै लाल बेहाल
कहुँ मुरली कहुँ पीत पटु, कहूँ मुकुट बनमाल।
यह बिहारी की कुशलता है कि अन्य कवि जिस बात को आठ पंक्तियों तथा 120 शब्दों में कह पाता है, उसी बात को और अधिक श्रेष्ठता से बिहारी केवल दो पंक्तियों तथा पन्द्रह शब्दों में कह देते हैं। बिहारी की समास शैली की यह विशेषता है कि इसमें कही पर भी शिथिलता के दर्शन नहीं होते हैं, उनके काव्य में एक कसावट है, चुस्ती है, सजगता है, जो प्रत्येक भाव को चमका देता है। अन्य कवि जिस बात को बहुत अधिक कहकर भी नहीं कह पाता है, उसी को बिहारी अपनी सामसिक शैली में बड़ी समरसता से कहने में सफल होते हैं।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बिहारी की समान शैली की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समास शक्ति जितनी अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक रचना में सफल होगा। यह क्षमता बिहारी में पूर्णरूप से विद्यमान थी। इसी से वे ऐसे दोहे छन्द में इतना रस भर चुके हैं। इनके दोहे क्या हैं? रस के छोटे छींटे हैं उदाहरण के लिए जैसे-
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ ।
सहि करै, भहिनि हँसे, दैन कहै नटि जाइ ॥
नाक चढ़ सीबी करै जितै छबीली छैल।
फिर-फिर भलि वहै गहै पिय कँकरीली गैला ॥
सभी आलोचकों ने बिहारी की इस समास शैली के लिए प्रशंसा की है।
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद ने लिखा है कि “किसी कवि की समास पद्धति की विशेषता देखने के लिए यह देखना आवश्यक है कि उसने साँगरूपकों का निर्वाह एक छोटे ढाँचे में किस प्रकार किया है और पर्याप्त व्यापारों को किस ढंग से रखा है कि वह जो कुछ व्यक्त करना चाहता है, भली भाँति व्यक्त हो जाता है या नहीं। साथ ही उनके अनेक भावों और चेष्टाओं को किस ढंग से बैठाया है। यदि बिहारी के दोहे को देखा जाय, तो पता चलेगा कि उन्होंने बड़ी सफलता के साथ सभी बातों का निर्वाह किया है। अतः इसमें सन्देह नहीं है कि बिहारी में अद्भुत समाहार शक्ति थी। वास्तव में उन्होंने गागर में सागर भरा है।
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