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भारत में उपभोक्तावाद की वर्तमान स्थिति अथवा भारत में उपभोक्ता संरक्षण हेतु किये गये प्रयास

भारत में उपभोक्तावाद की वर्तमान स्थिति अथवा भारत में उपभोक्ता संरक्षण हेतु किये गये प्रयास
भारत में उपभोक्तावाद की वर्तमान स्थिति अथवा भारत में उपभोक्ता संरक्षण हेतु किये गये प्रयास

भारत में उपभोक्तावाद की वर्तमान स्थिति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए। अथवा भारत में उपभोक्ता संरक्षण हेतु किये गये प्रयास का वर्णन कीजिए।

भारत में उपभोक्तावाद की वर्तमान स्थिति अथवा भारत में उपभोक्ता संरक्षण हेतु किये गये प्रयास

भारत में उपभोक्तावाद / उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में किये जाने वाले मुख्य प्रयास निम्न प्रकार हैं-

1. सरकारी आन्दोलन का विकास व विस्तार- भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य काल में ही सहकारी आन्दोलन का श्रीगणेश कर दिया गया था। भारत में सहकारी आन्दोलन का विकास व विस्तार निम्न उद्देश्यों से किया गया-

  1. आवश्यक मात्रा में उचित लागत पर वस्तुओं का उत्पादन हो सकें,
  2. उपभोक्ताओं को वस्तुएँ उचित मूल्य पर उपलब्ध हो सकें,
  3. उपभोक्ताओं को सर्वोत्तम किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध करायी जा सकें,
  4. उपभोक्ताओं का व्यापारियों द्वारा शोषण रोका जा सके,
  5. उत्पादकों को वस्तुओं का उचित मूल्य दिलाकर छोटे उत्पादकों के शोषण को रोका जा सके,
  6. वस्तु को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचाने के मध्य अनावश्यक मध्यस्थों को समाप्त किया जा सके, तथा
  7. धन व सत्ता के केन्द्रीयकरण के दुष्प्रभावों से जनता के शोषण को रोका जा सके।

उपर्युक्त उद्देश्यों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि सहकारिता आन्दोलन के विकास का मुख्य उद्देश्य ही उपभोक्ता वर्ग को व्यापारियों के शोषण से मुक्त करके सही मूल्य पर सही माल उपलब्ध कराना तथा छोटे उत्पादकों को धन कुबेरों के शोषण से मुक्त कराना रहा है जो दीर्घकाल में उपभोक्ता के हित में ही है।

2. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास एवं विस्तार – स्वतन्त्रता से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र का भाग न के बराबर था। केवल रेल, डाक-तार, पोर्ट ट्रस्ट, शस्त्रास्त्र, नमक व कुनैन का निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र में होता था। स्वतन्त्रता के उपरान्त निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के विकास व विस्तार पर विशेष ध्यान दिया गया-

  1. मूलभूत व केन्द्रीय महत्व के उद्योगों व जनोपयोगी सेवाओं का सार्वजनिक क्षेत्र में विस्तार करके औद्योगिक व जनोपयोगी आधार को सुदृढ़ करना,
  2. शोषणरहित समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करना,
  3. आर्थिक शक्ति के संकेन्द्रण पर रोक लगाना,
  4. सन्तुलित औद्योगिक विकास का लाभ जन-सामान्य तक पहुँचाना,
  5. सार्वजनिक वितरण व्यवस्था को पुष्ट करके निर्धन वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाना, तथा
  6. सामाजिक विपणन की अवधारणा को क्रियान्वित करना।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा नियन्त्रित मूल्यों पर गेहूँ, चावल, चीनी, तेल, कोयला, कपड़ा आदि उपभोक्ता वस्तुएँ उपलब्ध कराकर निम्न वर्ग के उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष राहत पहुँचाने का प्रयास किया गया है।

3. ‘उपभोक्ता संरक्षण के लिए उपाय’ योजना – उपभोक्ताओं को संरक्षण देने हेतु केन्द्रीय सरकार के नागरिक आपूर्ति विभाग ने ‘उपभोक्ता संरक्षण के लिए उपाय’ नामक योजना प्रारम्भ की है। इस योजना के अन्तर्गत उपभोक्ता सुरक्षा क्षेत्र में कार्य कर रहे उपभोक्ता संगठनों को वित्तीय सहायता दी जाती है तथा उपभोक्ता सुरक्षा कानूनों से सम्बन्धित विभिन्न मन्त्रालयों में सम्पर्क बनाये रखा जाता है ताकि उपभोक्त की सुरक्षा के हित में इन विधानों की समीक्षा की जा सके। उपभोक्ता सरंक्षण आन्दोलन को दिशा-निर्देशन व उद्देश्यपरक बनाये रखने हेतु ‘उपभोक्ता सुरक्षा सलाहकार परिषद्’ का गठन भी किया गया है जो उपभोक्ता संरक्षण सम्बन्धी सभी विषयों पर सरकार को सलाह देती है।

4. वैधानिक नियमन – भारत में वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन, वितरण, आपूर्ति, मूल्य, गुणवत्ता आदि की सुचारु व्यवस्था हेतु अनेक कानून बनाये गये हैं। उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में किया गया यह प्रयास निम्न प्रकार है-(i) वस्तु विक्रय अधिनियम-1930; (ii) औषधि व प्रसधन अधिनियम, 1946; (iii) औषधि नियन्त्रण अधिनियम, 1950; (iv) औषधि व अभिचार उपचार अधिनियम, 1945; (v) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955; (vi) व्यापार व विक्रय योग्य प्रतिरूप अधिनियम, 1957; (vii) एकाधिकार एवं प्रतिबन्धित व्यापार व्यवहार अधिनियम, 1969; (viii) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1972; (ix) सिगरेट (उत्पादन, वितरण व पूर्ति नियमन) अधिनियम, 1975; (x) बाट व माप अधिनियम, 1976; (xi) खाद्य अपार्म ऋण निवारण अधिनियम, 1976; (xii) चोर बजारी निरोधक व आवश्यक वस्तु पूर्ति अधिनियम, 1980; (xiii) भारत प्रमाप ब्यूरो अधिनियम, 1986; तथा (xiv) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986

अभी भी भारत में उपभोक्तावाद/उपभोक्ता संरक्षण आन्दोलन शैशव अवस्था में ही है। वस्तुत: अभी तक भारतीय उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का पूर्ण ज्ञान नहीं है। जब तक शिक्षा में विस्तार का उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं किया जाता तब तक उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में किये अनेक प्रयास विफल होते चले जायेंगे। भ्रष्टाचार व काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था ने भी उपभोक्ता आन्दोलन को दिशाहीन किया है, अत: इस ओर भी सरकार द्वारा पूरा ध्यान दिया जाना आवश्यक हो जाता है।

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Anjali Yadav

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