भूगोल शिक्षण के सामान्य उद्देश्य लिखिये।
1. ज्ञानात्मक उद्देश्य- माध्यमिक स्तर पर भूगोल शिक्षण में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर पर प्राप्त ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ कुछ नवीन ज्ञान प्राप्त हो।
यह एक ऐसा महत्वपूर्ण उद्देश्य है जिसके अन्तर्गत भू-मण्डल तथा भौगोलिक वातावरण के विषय में विभिन्न घटनाएँ व तथ्य तथा असीमित रचनाओं की जानकारी छात्रों को दे सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान कराने में बालक अपने आस-पास के वातावरण के विषय में अच्छी तरह से समझ सकेंगे। इसके द्वारा ही उन्हें विभिन्न स्थानों के उत्पादन व खपत तथा किन स्थानों पर इस उत्पादित वस्तु या पैदावार की अधिक आवश्यकता है, इसका ज्ञान प्राप्त कराया जा सकता है जो उसके जीविकोपार्जन अथवा व्यवसाय का साधन बन सकता है। भूगोल के अध्ययन द्वारा ही छात्रों को प्रकृति या वातावरण का मानव के साथ संबंध का ज्ञान कराया जा सकता है जिससे व आस-पास या प्रतिदिन की घटनाओं को समझ कर उनकी व्याख्या कर सकता है।
‘स्पेन्स रिपोर्ट’ – भूगोल शिक्षण के उद्देश्यों के विषय में कहा है- “यह विषय संसार तथा उसमें व्याप्त विभिन्न वातावरणों और मनुष्य का ज्ञान कराता है जिससे बालक और बालिकाओं को सामाजिक और राजनैतिक प्रश्नों का यथार्थ ज्ञान होता है और देश में अन्य निवासियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। पाठ्यक्रम में विश्व भूगोल की विस्तृत योजना रखनी चाहिए, जो निर्दिष्ट सिद्धान्तों के आधार पर हो और जिसमें सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक जीवन के विभिन्न प्रश्नों पर विचार करने की क्षमता हो।”
श्री आत्मानन्द मिश्र – के अनुसार- “बालकों के लिए भूगोल सामग्री प्रस्तुत > करने का उद्देश्य-उन्हें मानव – पृथ्वी संबंध का एक उदार अवलोकन कराना है जिससे उनमें दूसरे मनुष्यों और महत्वपूर्ण सार्वजनिक घटनाओं के प्रति निष्पक्ष दृष्टिकोण उत्पन्न हो सकें और भौगोलिक ज्ञान द्वारा लोगों तथा घटनाओं की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त हो सकें।”
छात्रों को भौगोलिक तथ्यों, पारिभाषिक शब्दों, संकल्पनाओं, परिकल्पनाओं, सिद्धान्तों, समस्याओं आदि का ज्ञान कराना भूगोल शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। छात्रों को पृथ्वी के आकार, धरातल एवं खनिज सम्पत्ति आदि के विषय में परिचित कराना है। इसके साथ ही पृथ्वी पर होने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक क्रियाओं- वर्षा, भूस्खलन, भूमिक्षरण, भूकम्प एवं ज्वालामुखी विस्फोट तथा पृथ्वी पर आश्रित प्राणियों (मनुष्य एवं जीव जन्तु) आदि का भी ज्ञान कराना है। विश्व के विभिन्न देशों में निवास करने वाले लोगों के रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा एवं आवास आदि का ज्ञान कराना भी भूगोल शिक्षण का उद्देश्य है।
2. प्राकृतिक प्रेम और सौन्दर्य की भावना – भूगोल शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है कि बालक/ छात्र को प्रकृति का सही ज्ञान कराकर व उसके महत्व व सौन्दर्य से अवगत कराकर प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए बालकों को धरती पर होने वाली घटनाओं की इस प्रकार व्याख्या की जाए जिससे वे उन प्राकृतिक दृश्यों के द्वारा आनन्द का अनुभव करें, जिससे उनके मन में यह विचार अंकुरित होगा कि यह प्रकृति का वर्णन ही इतना मनोहर हैं तो प्रत्यक्ष अनुभव तो और भी अधिक सुन्दर होगा तथा उनमें प्रकृति के प्रति प्रेम का संचार होगा। जैसे- हिम से ढ़के हुए पर्वत, इठलाती-कूदती नदियाँ, झाग उगलते झरने, सांय-सांय करते रेगिस्तान आदि का वर्णन इस प्रकार से करना चाहिए कि छात्रों में सहज ढंग से प्रकृति के निकट आने की भावना उत्पन्न हो सकें। वर्तमान में हो रहे प्राकृतिक विनाश को इस महत्वपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति द्वारा ही रोका जा सकता है। बालकों में प्रकृति से प्रेम होने पर वे स्वयं तो इसका आदर करेंगे ही बल्कि अन्य लोगों को भी प्रकृति को नुकसान पहुँचाने से रोकने में सहायता दे सकते है।
“भूगोल में छात्रों को हिमाच्छादित, गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाओं, पर्वतों के मध्य सुरम्य घाटियों, झरनों, मनोहारी हरित वनों एवं अथाह सागरों से परिचित कराया जा सकता है। भौगोलिक पर्यटनों में उन्हें प्रत्यक्ष निरीक्षण कराकर उनके मन को आकर्षित किया जा सकता है।
3. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव सम्बन्धी उद्देश्य – भूगोल शिक्षण द्वारा छात्रों में देश विदेश के निवासियों के प्रति सच्ची सहानुभूति पैदा कर इस उद्देश्य की पूर्ति की जा सकती है। विश्व के विभिन्न भागों का वर्णन, वहां के निवासियों के रहन-सहन पर भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव जानकर छात्र उनके जीवन से अच्छी त रह से परिचित हो सकते हैं और यह ज्ञात होगा कि संसार के भिन्न-भिन्न देश किस प्रकार कच्चा माल तथा बनी हुई वस्तुएँ भेजकर एक-दूसरे की सहायता करते हैं। संकट के समय विश्व के अन्य देश गेहूँ व अन्य खाद्य सामग्री भेजकर संकटग्रस्त निवासियों की जीवन रक्षा करते है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया ने संकट के समय भारत में गेहूँ भेजकर देशवासियों की जीवन रक्षा की। आज के युग में कोई भी राष्ट्र अकेला विलगित रूप से अपने अस्तित्व का विकास नहीं कर पाते। इसलिए आज सम्पूर्ण विश्व को वैश्वीकरण/भूमण्डलीकरण/ ग्लोबल विलेय आदि नामों से जाना जा रहा है। भूगोल का शिक्षक व छात्र समस्त विश्व को एक परिवार के रूप में पढ़ता है जिससे उनके मन में मानवता के प्रति प्रेम व सहानुभूति का विकास होता है। इस प्रकार विश्व बन्धुत्व की भावना बढ़ती है। अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव उत्पन्न करना भूगोल शिक्षण के महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं।
वैज्ञानिक आविष्कारों के परिणामस्वरूप विशाल विश्व सिमट कर छोटा रह गया है। सुदूरस्थ देश सन्निकट आ गये है। किसी एक देश में घटित होने वाली घटना दूसरे देश को भी प्रभावित करती है। विश्व में कोई भी देश आत्म-निर्भर नहीं है। सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसका ज्ञान भूगोल के द्वारा ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में परमाणु आयुधों के संग्रह की होड़ से तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता है।
4. देश-प्रेम की भावना भूगोल के अध्ययन द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के – विकास के साथ-साथ बालक से स्वयं के राष्ट्र के प्रति अनुराग एवं समर्पण की भावना विकसित करना भी एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। छात्र अपने देश के भूगोल का अध्ययन करते समय प्रकृति द्वारा दिये गये गगन चुम्बी विशाल पर्वत, वन, नदियाँ तथा खनिज पदार्थ, अति सुन्दर प्रकृति आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त करते हैं जो कि देश की उन्नति के कारक हैं। इस प्रकार के अध्ययन से बालकों के हृदय में देश-प्रेम के अर्थ को संकुचित अर्थ में नहीं समझना चाहिए, परन्तु शिक्षकों को “मानव पृथ्वी संबंध का उदार अवलोकन” करना है। देश-प्रेम की भावना जाग्रत करने के साथ शिक्षक को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के उच्च आदर्शों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
5. भौगोलिक परिस्थितियों का ज्ञान कराना- भौगोलिक परिस्थितियों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का ज्ञान करना भी भूगोल शिक्षण के उद्देश्य है। भौगोलिक परिस्थितियाँ मानव जीवन को प्रभावित करती है। पर्वतीय प्रदेश, मरुस्थलीय प्रदेश एवं टुण्ड्रा प्रदेश में आज भी मानव भौगोलिक परिस्थितियों का दास । इसके साथ ही मनुष्य इन भौगोलिक परिस्थितियों से संघर्ष कर रहा है। उसने टुण्ड्रा प्रदेश में गेहूँ की कृषि एवं उद्योगों की स्थापना का प्रयास किया है एवं दूरी पर विजय पा ली है। समुद्र एवं पर्वत अब प्राकृतिक बाधाएँ नहीं रह गये हैं। इस प्रकार मनुष्य ने कहीं-कहीं प्रकृति पर नियन्त्रण पाने का प्रयास किया है, तो कहीं पर प्रकृति के साथ समायोजन किया है, जिसका समुचित ज्ञान कराना भूगोल शिक्षण का उद्देश्य है।
6. मानसिक शक्ति के विकास का उद्देश्य – भूगोल के अध्यापन द्वारा शिक्षक को छात्रों की मानसिक शक्तियों का विकास करना चाहिए। दूसरे देशों के निवासियों के जीवन के विषय में पढ़ते समय हमको बहुधा कल्पना करनी पड़ती है। पिंगमीज लोग अपने मकान पेड़ पर कैसे बनाते होंगे, ऐस्किमो ईग्लू (बर्फ के बने हुए मकानों) में कैसे रहते होंगे? आदि विभिन्न देशों के विषय में पढ़ते समय हमें कल्पना करनी होती है। भूगोल-शिक्षक का यह दायित्व है कि यह तर्क द्वारा बालकों की कल्पना शक्ति का विकास करें। इसी प्रकार भौगोलिक सिद्धान्तों के अध्ययन में तर्क, निर्णय और निरीक्षण शक्ति का विकास करें। मुम्बई से कपास का व रंगून से चावल का निर्यात क्यों होता है? गंगा का मैदानी भाग क्यों घनी आबादी वाला हैं, जबकि राजस्थान की आबादी कम हैं? इन सभी प्रश्नों का निर्णय क्या, क्यों और कैसे के आधार पर करवाकर बालकों में तर्क, कल्पना आदि शक्तियों का स्वतः ही विकास होता है। ‘करम और फल’ में संबंध स्थापित करना भूगोल-शिक्षक का उद्देश्य होना चाहिए तभी बालकों में तर्क-शक्ति, रचनात्मकता एवं निर्णय शक्ति का विकास कर सकता है। भौगोलिक पर्यटन के समय छात्रों को भौगोलिक तथा सांस्कृतिक वातावरण की सभी वस्तुओं का निरीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस प्रकार शिक्षक को भूगोल द्वारा अन्य वैज्ञानिक विषयों की तरह छात्रों की निरीक्षण शक्ति, कल्पना शक्ति, तर्क क्षमता, तथा स्मरण शक्ति आदि मानसिक शक्तियों को विकास करना चाहिए भौगोलिक खोज कार्यो द्वारा भी इन मानसिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है तथा छात्रों में स्वतन्त्र रूप से सोचने की शक्ति भी विकसित होती है।
7. भूगोल अध्ययन में रुचि एवं रचनात्मक प्रवृत्ति के विकास का उद्देश्य – भूगोल विषय के अध्ययन-अध्यापन में भौगोलिक यात्राएँ, मॉडल बनाना, मानचित्र बनाना व पढ़ना, भौगोलिक महत्व की वस्तुओं का संकलन व वर्गीकरण आदि प्रवृत्तियों को सम्मिलित कर भूगोल विषय के शिक्षण को रूचिकर बनाया जा सकता है। जिससे बालक अध्ययन में तो रुचि लेंगे हीं, अपितु इन रचनात्मक प्रवृत्तियों द्वारा उनमें रचनात्मकता का विकास होगा। इन सभी कार्यों को छात्र अपने अवकाश के समय में उपयोग करने में भी रुचि के द्वारा इस्तेमाल कर सकते हैं।
8. जीविकोपार्जन सम्बन्धी उद्देश्य भूगोल- शिक्षण का उद्देश्य है कि छात्रों को – इस प्रकार का ज्ञान दिया जायें जिससे जीविका कमाने तथा जीवन यापन में सहायता मिल सकें तथा छात्र इस ज्ञान को दैनिक जीवन में विद्योपार्जन काल तथा उसके पश्चात् भी प्रयोग में ला सकें। छात्र को उद्योग-धन्धों के विषय में ज्ञान हो सकें तथा इस भौगोलिक ज्ञान को वे वाणिज्यिक व्यवसायों, कृषि तथा उद्योग धन्धों के विषय में ज्ञात हो सकें। आज युग में बहुत से व्यावसायिक क्षेत्र इस प्रकार के हैं जिनमें भूगोल के ज्ञान के अभाव में सफलता नहीं मिल सकती। एक सफल भूगोल अध्यापक छात्रों को इस प्रकार का भौगोलिक ज्ञान प्रदान कर इस उद्देश्य की पूर्ति करता है।
भूगोल का ज्ञान प्राप्त करके छात्र जीवन के विविध क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य करके जीवकोपार्जन कर सकते हैं क्योंकि भूगोल कृषि, व्यापार, नौकाचालन, उद्योग एवं जल, थल एवं वायुसेना आदि में विशेष सहायता करता है।
9. विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास – भूगोल शिक्षण का एक और उद्देश्य छात्रों में विश्व-बन्धुत्व की भावना विकसित करना भी है। भूगोल में छात्र विश्व के विभिन्न देशों तथा वहाँ के निवासियों का अध्ययन करते है जिससे वे वहाँ के निवासियों के रहन-सहन, खान-पान एवं वैशभूषा आदि का अध्ययन करके तुलना द्वारा अन्य लोगों के स्थान एवं महत्व को समझ सकते है। इससे उन्हें विदित होता है कि वन, मरुस्थल एवं टुण्ड्रा प्रदेश आदि स्थानों पर निवास करने वाले लोगों की स्थिति कितनी दयनीय है, तो उनका हृदय मानवता के प्रति प्रेम एवं सहानुभूति से भर जाता है। प्राकृतिक प्रकोप जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट एवं बाढ़ आदि से हजारों लोगों के मरने की सूचना से उनका हृदय रो उठता है। वे उनकी सहायता के लिए तत्पर हो जाते है। इस प्रकार भूगोल शिक्षण द्वारा छात्रों में विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास किया जा सकता है।
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