माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण पर एक निबंध लिखिए।
शिक्षा के व्यवसायीकरण शे आशय शिक्षा शिक्षा को व्यवसायोन्मुखी और रोजगार परक बनाने से है। सर्वपथम 1853 में वुड डिस्पैच ने व्यावसायिक शिक्षा की सिफारिश की थी। पुनः हंटर कमीशन 1882, हार्टाग कमेटी 1909, वुड-एब्ट रिपोर्ट 1937 तथा सार्जेन्ट योजना 1944 मे भी शिक्षा के व्यवसायीकरण की सिफारिशें की गयी थी। स्वतंत्रता के बाद 1952 में मुदालियर आयोग ने इसे आगे बढ़ाया, जिसमे कृषि, शिक्षण, चिकित्सा इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा के विस्तारीकरण पर जोर दिया गया। कोठारी आयोग 1964-66 ने इस पर सबसे अधिक जोर दिया। इस आयोग के अनुसार भारतीय शिक्षा राष्ट्रीय उत्पादन के लिए अनुपयुक्त हैं, वह व्यक्ति को जीवन के लिए तैयार नहीं करती है। इसलिए माध्यमिक स्तर पर व्यवसायीकरण की आवश्यकता है।
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व्यवसायीकरण का प्रयास
कोठारी कमीशन द्वारा माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण का बहुत प्रयास हुआ, जिसमें 10 + 2 + 3 की शिक्षा की संरचना का प्रस्ताव है। इनमें +2 के स्तर पर शिक्षा के व्यवसायीकरण की संकल्पना हुई। प्रो. आदिशेषैया के अधीन गठित समिति 1979 ने जोर देकर कहा है कि कक्षा 10 तक की सामान्य शिक्षा के उपरानत शिक्षा की दो धारायें हो जायें सामान्य शिक्षा एवं व्यवसायीकृत शिक्षा व्यवसायीकृत शिक्षा में छात्रों को तकनीकी, सम्बन्धित विज्ञानों, कृषि या अन्य प्रयोगात्मक कार्य का अध्ययन करके एक कौशल या अनेक कौशलों को सीखना होगा। इसके लिए आई.टी.आई. तकनीकी हाईस्कूल, कृषि व औद्योगिक पालिटेक्निक संस्थाओं में शिक्षा दी जायेगी।
व्यावसायीकृत शिक्षा से लाभ
- शिक्षा और काम तथा जीवन में एकीकरण बढ़ेगा। इन लाभों को देखते हुए यही निष्कर्ष निकालना पड़ेगा कि शिक्षा का व्यवसायीकरण भारत के लिए आवश्यक है और शीघ्र इसको उचित ढंग से चलाया जाय।
- व्यवसायिक शिक्षा से राष्ट्रीय आय को बढ़ाने में सहायता करेगी।
- इससे लोगों में उत्पादनशीलता का गुण आयेगा और वे उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग करेंगे तथा राष्ट्रीय उत्पादन की वृद्धि में योगदान करेंगे।
- इससे बेरोजगारी दूर होगी, शिक्षा प्राप्त लोग आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनेंगे।
- इससे घरेलू उद्योग धन्धों का विकास होगा।
- व्यवसायिक शिक्षा से व्यक्ति में श्रम के प्रति सम्मान की भावना बढ़ेगी।
- व्यवसायीकृत शिक्षा व्यक्ति को अपने आप रोजगार करने की क्षमता देगी।
व्यवसायीकरण से उत्पन्न समस्या
शिक्षा का व्यवसायीकरण माध्यमिक स्तर पर ही क्यों? यह समस्या सर्वप्रथम आती है। वस्तुत प्रारंभ से ही छात्रों की व्यवसायिक अभिरुचि को जानकर उन्हें उसी ओर ले जाना चाहिये। सामान्य शिक्षा के साथ-साथ इसे रखा जाय।
शिक्षा के व्यवसायीकरण की दूसरी समस्या आर्थिक है क्योंकि इसके लिए विभिन्न प्रकार के व्यवसायों की शिक्षा के लिए तत्सम्बन्धी ज्ञान वाले अध्यापक, यंत्र, सामग्री आदि की जरूरत होगी जिसको राज्य व समाज नहीं सम्हाल पायेगा ऐसा लगता है क्योंकि हमारा ध्यान शासन पर अधिक व्यय करने में हैं न कि शिक्षा पर ।
शिक्षा का व्यवसायीकरण की तीसरी समस्या है श्रम के प्रति सम्मान, झुकाव और कमाने की आदत के विकास की। जिन लोगों में ये सभी गुण हैं उन्हें व्यवसायिक शिक्षा की जरूरत नहीं क्योंकि वे घरेलू उद्योग-कार्य में लग ही जाते हैं। अन्य के लिये सम्भव नहीं। इसका मुख्य कारण है कि राजनीति अपने देश में एक व्यवसाय है जिसके लिये व्यवसायिक शिक्षा की कोई जरूरत नहीं पार्टी के सदस्य, नेता हो जाइये, रोजी-रोटी स्वयं भगवान भेजता है। बड़े-बड़े पद की प्राप्ति हो जाती है। ऐसी मनोवृत्ति कैसे बदले, जो लोग डिग्री डिप्लोमा ले लेते हैं वे नौकरी तलाशते हैं जो मिल ही नहीं रही है तो फिर ऐसी शिक्षा व्यवस्था से क्या होगा ?
इसी प्रकार अन्य समस्याएँ हैं जैसे जीवन दर्शन एवं जीवन के प्रति दृष्टिकोण की। आज भारत में बिना श्रम के आराम के साथ जीवन निर्वाह का दृष्टिकोण व दर्शन पाया जाता है। भाग्यवादी प्रवृत्ति से ऐसा हो गया है और राजनेताओं के भोगपूर्ण जीवन ने देश के नवयुवकों का मन फेर दिया है। ऐसी स्थिति में व्यवसायी या व्यवसायीकृत शिक्षा की क्या उपयोगिता और आवश्यकता? केवल गरीबों, ग्रामीणों, निम्नवर्गीय लोगों के लिये यह व्यवसायीकृत शिक्षा योजना लागू हो? ऐसी धारा आज बह रही है इसलिए यह एक महान समस्या है।
समाधान- शिक्षा का व्यवसायीकरण की समस्या के समाधान पर भी दृष्टि डालना आवश्यक है। व्यवसायीकृत शिक्षा तभी सम्भव होगी जब लोगों की मनोवृत्ति भी व्यवसायिक हो जाये, श्रम के लिए सम्मान दिया जाना जरूरी है। यदि लोग एक काम छोड़कर नेता शासक बनेंगे तो दूसरे क्यों व्यवसायिक वृत्ति धारण करें। तीसरी बात यह है कि शिक्षा योजना में जो कुछ निर्धारित हो उसे सभी लोग मानें, यह नहीं कि शिक्षा योजना में कुछ लोग कान्वेन्ट के स्कूलों में पढ़ने जायें तो कुछ विदेश के स्कूलों में और निम्न साधारण श्रेणी के लोग व्यवसायीकृत शिक्षा के लिए दौड़ें। एक समान शिक्षा प्रणाली हो। हमारे देश में माध्यमिक स्तर पर कितने तरह के स्कूल हैं सैनिक स्कूल, पब्लिक हैं स्कूल, केन्द्रीय स्कूल, कान्वेन्ट स्कूल, म्यूनिसिपल स्कूल, जिला परिषद् स्कूल, व्यक्तिगत प्रबन्ध वाले स्कूल। किसके लिए कौन अच्छा है यह उसकी आर्थिक स्थिति व पहुँच पर निर्भर करता है। जिस राष्ट्र में एक निश्चित समान शिक्षा प्रणाली न होगी वह राष्ट्र जनतन्त्र में विशेष कर कभी आगे नहीं बढ़ सकता है।
अतः स्पष्ट है कि लोगों की मनोवृत्ति बदले और सभी एक समान शिक्षा प्रणाली से शिक्षित किये जायँ।
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