शिक्षाशास्त्र / Education

वैदिक शिक्षा प्रणाली एवं बौद्ध शिक्षा प्रणाली की समानताएँ एवं असमानताएँ

वैदिक शिक्षा प्रणाली एवं बौद्ध शिक्षा प्रणाली की समानताएँ एवं असमानताएँ बताइए। 

वैदिक धर्म के प्रारम्भ में जो अच्छाइयाँ थी तथा समय के विकास के साथ अच्छाइयों में जो विकृतियाँ आ गयी थीं उन्हीं को सुधारने का कार्य बौद्ध धर्म ने किया। इसी कारण दोनों में अनेक समानताएँ पायी जाती हैं जबकि कुछ अन्तर भी स्वाभाविक रूप से मिलते हैं। इनका वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-

समानताएँ

डॉ॰ अल्तेकर का विचार है, “जहाँ तक सामान्य शैक्षिक सिद्धान्त अथवा प्रयोग की बात है, हिन्दुओं और बौद्धों में कोई मुख्य अन्तर नहीं था। दोनों प्रणालियों के समान आदर्श थे और समान विधियों का अनुशरण किया गया था।” वास्तव में वैदिक शिक्षा का अनुकरण करके बौद्ध शिक्षा का संगठन किया गया। इस स्थिति में दोनों प्रणालियों में समानताएँ होना स्वाभाविक था। दोनों प्रणालियों की मुख्य समानताओं का उल्लेख इस प्रकार है

  1. दोनों प्रणालियों में शिक्षा बाह्य नियन्त्रण से मुक्त थी।
  2. दोनों प्रणालियों के अन्तर्गत छात्रों की दिनचर्या में समानता थी।
  3. दोनों प्रणालियों में मुख्य रूप से मौखिक शिक्षण विधि का ही प्रयोग होता था।
  4. दोनों प्रणालियों में धार्मिक एवं नैतिक जीवन को महत्व दिया गया था।
  5. दोनों प्रणालियों में शिक्षा सम्बन्धी संस्कारों को महत्व दिया गया था।
  6. दोनों प्रणालियों के अन्तर्गत शिक्षा, भोजन एवं निवास की निःशुल्क सुविधा प्रदान की गयी थी।
  7. दोनों प्रणालियों में गुरु-शिष्य सम्बन्धों को विशेष महत्व दिया गया था।
  8. दोनों प्रणालियों में साधारणतया शारीरिक दण्ड वर्जित था।
  9. दोनों प्रणालियों के अन्तर्गत छात्रों को अपने भोजन हेतु भिक्षा मांगने जाना होता था।
  10. दोनों प्रणालियों के अन्तर्गत सदाचार, सरल जीवन एवं उच्च विचारों पर विशेष बल दिया गया था।
  11. दोनों प्रणालियों में शिक्षण संस्थाएं नगरों के कोलाहल से दूर प्रकृति के शान्त वातावरण स्थित होती थीं।

असमानताएँ

वैदिक कालीन शिक्षा  बौद्ध कालीन शिक्षा
1. शिक्षा एक तन्त्रीय थी। 1.  शिक्षा जनतन्त्रीय थी।
2. ब्रह्मचारी का जीवन अधिक कठोर था। उसे किसी भौतिक सुख की प्राप्ति नहीं थी। 2.  श्रमणों को उतना कठोर जीवन नहीं बिताना पड़ता था। मठों में भोजन तथा सुविधा सामग्री प्रचुर मात्रा में रहती थी।
3. शिक्षा पारिवारिक प्रणाली का अंग थी। 3. शिक्षा परिवार से अलग मठों तथा बिहारों में दी जाती थी।
4. शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी। 4. शिक्षा का माध्यम पाली भाषा थी।
5. शूद्रों की शिक्षा गुरुकुलों में नहीं होती थी। 5. शूद्रों की शिक्षा मठों तथा बिहारों में हो सकती थी।
6. शिक्षा व्यक्तिगत थी। 6. शिक्षा सामूहिक थी ।

7. समावर्तन संस्कार के बाद ब्रह्मचारी को सांसारिक जीवन में प्रवेश लेना होता था और वह गृहस्थ बनता था।

7. उपसम्पदा संस्कार के बाद श्रमण भिक्षु बन जाता था तथा सांसारिकता का त्याग करके पूर्ण संन्यासी जीवन व्यतीत करता था ।

8. ब्रह्मचारी भिक्षाटन बोल कर करते थे। वे “मां भिच्छाम् देहि’ की आवाज लगाते थे। 8. श्रमण भिक्षाटन के समय बिना बोले मौन रहकर भिक्षा माँगा करते थे।
9. गुरुकुल में शिक्षा ही दी जाती थी उन्हें धर्म प्रचार का केन्द्र नहीं बनाया गया था।

9. बौद्धकाल में मठ तथा विहार बौद्ध धर्म के प्रचार केन्द्र भी थे तथा शिक्षा के साथ-साथ धर्म प्रचार का कार्य करते थे।

10. वैदिक शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा का अधिक महत्व था। 10. बौद्ध शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा को उतना अधिक महत्व नहीं दिया गया।
11. वैदिक शिक्षा केन्द्र पूर्ण स्वतन्त्र तथा अपने आप में एक इकाई थे। 11. बौद्ध केन्द्र आन्तरिक रूप से स्वतन्त्र थे  परन्तु बाह्य रूप में संघों द्वारा अनुशासित ।

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Anjali Yadav

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