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माल की सुपुर्दगी से आप क्या समझते हैं? सुपुर्दगी के विभिन्न ढंग क्या हैं? सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियम

माल की सुपुर्दगी से आप क्या समझते हैं? सुपुर्दगी के विभिन्न ढंग क्या हैं? सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियम
माल की सुपुर्दगी से आप क्या समझते हैं? सुपुर्दगी के विभिन्न ढंग क्या हैं? सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियम

माल की सुपुर्दगी से आप क्या समझते हैं? सुपुर्दगी के विभिन्न ढंग क्या हैं? माल की गलत सुपुर्दगी की दशा में उत्पन्न होने वाले वैधानिक परिणामों की विवेचना कीजिए।

माल के सुपुर्दगी से आशय- वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार, “सुपुर्दगी से तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किसी वस्तु का ऐच्छिक रूप से अधिकार देने से है।”

सुपुर्दगी के प्रकार या ढंग- सुपुर्दगी निम्न तीन प्रकार की हो सकता है-

(1) वास्तविक सुपुर्दगी- माल का भौतिक रूप से क्रेता अथवा उसके प्रतिनिधि के हाथ में चला जाना वास्तविक सुपुर्दगी कहलाता है।

(2) रचनात्मक सुपुर्दगी- जब माल किसी तीसरे व्यक्ति के हाथ में हो और यदि वह क्रेता की तरफ से उसे अपने अधिकार में रखने को स्वीकृति दे दे अथवा जब माल क्रेता के अधिकार में हो और विक्रेता उसे माल के स्वामी की भाँति रखने की स्वीकृति प्रदान करे, तो उसे माल की रचनात्मक सुपुर्दगी कहते हैं।

(3) सांकेतिक सुपुर्दगी- यदि वस्तु तौल अथवा आकार में इतनी अधिक है कि विक्रेता क्रेता को उसका अधिकार भौतिक रूप में प्रदान न कर सके, केवल संकेत रूप में माल का हस्तान्तरण कर दे तो इसे सांकेतिक सुपुर्दगी कहते हैं। उदाहरण के लिए, गोदाम में रखे हुए माल की सुपुर्दगी गोदाम की चाबी देकर अथवा वाहन में लदे माल के अधिकार पत्र सौंपकर माल की सांकेतिक सुपुर्दगी दी जा सकती है।

उदाहरण- X की साईकिल Y के कब्जे में है। X यह साइकिल Z को बेच देता है। X Y को आदेश देता है कि साईकिल 7 को सुपुर्द कर दी जाये। Y और Z. मित्र हैं। Z. Y से साइकिल अपने पास ही रखने के लिए कहता है। विक्रेता X की ओर से यह रचनात्मक सुपुर्दगी मानी जायेगी, यद्यपि साईकिल अभी भी Y के कब्जे में है।

4. किश्तों में सुपुर्दगी- विपरीत अनुबन्ध के अभाव में क्रेता किश्तों में सुपुर्दगी लेने के लिए बाध्य नहीं है। जब अनुबन्ध के अनुसार, किसी माल की सुपुर्दगी निश्चित किश्तों में दी जानी है और उसका मूल्य अलग-अलग चुकाया जाना है तो ऐसी दशा में यदि विक्रेता एक या एक से अधिक किश्त की सुपुर्दगी नहीं करता या गलत सुपुर्दगी करता है अथवा क्रेता किसी किश्त की सुपुर्दगी लेने से इन्कार कर देता है या किसी किश्त का भुगतान करने से माना कर देता है, तो यह निश्चय करना कि पूर्ण अनुबन्ध भंग हुआ है या अनुबन्ध के किसी एक भाग को भंग मानकर उसके लिए हर्जाना वसूल किया जाये, यह अनुबन्ध की शर्तों तथा वाद की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियम-

इन्हें हम क्रेता, विक्रेता के अधिकार व कर्तव्य भी मान सकते हैं। सुपुर्दगी से सम्बन्धित महत्वपूर्ण नियम निम्नलिखित हैं-

1. सुपुर्दगी का ढंग- माल विक्रेता के द्वारा क्रेता को भेजा जाना है अथवा क्रेता को स्वयं जाकर सुपुर्दगी प्राप्त करनी है, यह बात पक्षकारों के अनुबन्ध पर निर्भर करती है जो स्पष्ट अथवा गर्भित हो सकती है।

2. सुपुर्दगी का स्थान- यदि अनुबन्ध में सुपुर्दगी का स्थान दिया हुआ है तो विक्रेता का यह कर्तव्य है कि वह निश्चित स्थान पर ही माल की सुपुर्दगी दे। यदि अनुबन्ध में सुपुर्दगी का स्थान नहीं दिया हुआ है तो विक्री के समय जिस स्थान पर माल होता है, सुपुर्दगी उसी स्थान पर मानी जाती है।

3. सुपुर्दगी का समय- क्रेता द्वारा सुपुर्दगी की प्रार्थना साधारण व्यापारिक घण्टों में ही की जानी चाहिए। यदि अनुबन्ध के अन्तर्गत सुपुर्दगी देने का दायित्व स्वयं विक्रेता का है, तो विक्रेता को माल की सुपुर्दगी का प्रस्ताव उचित समय पर भेजना चाहिए। उचित समय क्या होगा, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

4. माल का तीसरे व्यक्ति के अधिकार में होना- यदि माल किसी तीसरे पक्ष के नियन्त्रण में है, तो माल की सुपुर्दगी उस समय तक नहीं मानी जाती, जब तक वह तीसरा व्यक्ति क्रेता के सम्मुख यह स्वीकार न करे कि वह माल को क्रेता की ओर से रखता है

5. सुपुर्दगी सम्बन्धी व्यय- विपरीत अनुबन्ध के अभाव में माल को सुपुर्दगी योग्य स्थिति तक लाने के समस्त व्यय विक्रेता को करने होंगे।

6. गलत मात्रा में माल की सुपुर्दगी- इस सम्बन्ध में निम्न व्यवस्था है-

(i) जब विक्रेता क्रेता के यहाँ अनुबन्धित माल से कम भेजता है, तो क्रेता उसे लेने से इन्कार कर सकता है। परन्तु यदि क्रेता उसे स्वीकार करता है, तो उसे अनुबन्ध की दर के अनुसार मूल्य का भुगतान करना होगा।

(ii) जब विक्रेता क्रेता के यहाँ अनुबन्धित माल से अधिक माल भेजता है, तो क्रेता अनुबन्धित माल को स्वीकार करके शेष माल लेने से इंकार कर सकता है अथवा वह सम्पूर्ण माल की सुपुर्दगी लेने से इन्कार कर सकता है।

(iii) यदि विक्रेता क्रेता को अनुबन्धित माल के साथ भिन्न माल अथवा मिश्रित माल की सुपुर्दगी देता है, तो क्रेता अनुबन्धित माल को स्वीकार करके अन्य माल को लेने से इन्कार कर सकता है अथवा सम्पूर्ण माल को लेने से इन्कार कर सकता है।

7. वाहक को सुपुर्दगी- इस सम्बन्ध में निम्न व्यवस्था है-

(i) जब विक्रय अनुबन्ध के अनुसार विक्रेता को माल क्रेता के पास भेजना है, तो विक्रेता के द्वारा माल वाहक (रेलवे कम्पनी, जहाजी कम्पनी अथवा ट्रक) को सौंप देने पर माल की क्रेता को सुपुर्दगी मानी जायेगी और माल की समस्त जोखिम क्रेता की होगी।

(ii) यदि विक्रेता वाहक को माल देकर माल पर अपना अधिकार बनाये रखना चाहता है, तो क्रेता को माल की सुपुर्दगी उस समय मानी जायेगी, जब क्रेता को वास्तविक रूप से अधिकार पत्र प्राप्त हो जाये। ऐसी दशा में मार्ग की समस्त जोखिम विक्रेता की होगी।

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Anjali Yadav

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