मैथिलीशरण गुप्त द्वारा नारी के प्रति व्यक्त किये गये दृष्टिकोण की विवेचना प्रस्तुत कीजिए।
मैथिलीशरण गुप्त जी के खण्ड काव्य यशोधरा में नारी के प्रति प्रबल संदेव स्वर स्पष्ट रुप से मुखरित हुआ है-
“नारी जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।”
उक्त पंक्तियों में कवि ने नारी जीवन की दशा-दिशा का चित्रण प्रस्तुत कर सामाजिक व्यवस्था में एक प्रश्न चिन्ह लगाते हुए समाज में श्रद्धा-सम्मान की अधिकारिणी नारी को उसके खोये अधिकारों को प्रदान किये जाने का आसान किया है। गुप्त जी की नारी त्रेता युग की नारी न होकर वर्तमान सदी की व आधुनिक गुणों से युक्त नारी हैं जो घर में ही नहीं बल्कि बाहर भी कार्य करने की क्षमता रखती है। वह आज की नारी की भाँति पुरुष के साथ कदम से कदम मिलकार ही चलना चाहती है। राम के वन गमन के समय सीता के साथ जाने का प्रस्ताव सुनकर राम उन्हें वहाँ की परेशानियों से डराना चाहते हैं। वे कहते हैं कि अल्प वर्षा, हिम, बाघ, भालुओं के बीच प्रवास, खाने-पीने का अभाव, रातों में सोना भी मुश्किल है। इन सभी बातों को सुनकर सीता जी प्रसन्ना हो जाती हैं और वे सर्वथा आधुनिक नारी की ही भाँति व्यवहार करती हैं तथा वह प्रसन्ना होते हुए कह उठती हैं कि यदि मानव के अन्दर आत्मिक बल है तो वह कहीं भी रह सकता है, जंगल में भी मंगल की सृष्टि कर सकता है और नारी वह है जो यम को भी जीत चुकी है।
“यदि अपना आत्मिक बल है,
से जंगल में भी मंगल है।
नाथ! नहीं भय दो हमको,
जीत चुकी हैं हम यम को ॥ “
उक्त पंक्तियों में उनका आत्मविश्वास इस आधुनिक युग की ही देन है। यह आत्मविश्वास उस युग का नहीं है कि जब नारी को पिता, पुत्र अथवा पति पर निर्भर रहना पड़ता था। सीता जी के इन वाक्यों में पूर्ण आत्म विश्वास है। आज की नारी अपने अधिकारों के प्रति सजग है वह आप चुप रहकर अत्याचार सहने के बजाय उनसे संघर्ष करना ज्यादा अच्छा समझती है तथा अत्याचार सहने की शिक्षा नहीं देती
“राघव शान्त रहोगे तुम?
क्या अन्याय सहोगे तुम?
मैं न सहूँगी लक्ष्मण तू?
नीरव क्यों है इस क्षण तू?”
इसी भाँति आज नारी युद्ध में भी सहायक है। कैकेयी जिस प्रकार अपने पति के साथ युद्ध में गई थी ठीक इसी प्रकार ही वे अपने पुत्र के संग भी वहाँ जाना चाहती हैं। वे पुरुष की ही भाँति युद्ध में भी उसका साथ देना चाहती है और यह प्रभाव हम केवल आधुनिक युग का मान सकते हैं। इसी प्रकार साकेत की नारी युद्ध में जाने के लिए तैयार रहती हैं
मैं निज पति के संग गई थी असुर समर में
जाऊँगी अब पुत्र संग भी अरि समर में।
पुरुष वेश में संग चलूँगी मैं भी प्यारे,
राम-जानकी संग गये हम क्यों हों न्यारे।”
युद्ध के समय प्रत्येक नारी वह कार्य करती है कि जो वह कर सकती है। उर्मिला भी युद्ध में जाना चाहती है। वहाँ घायलों का उपचार मरहम पट्टी व बीमारों की दवा-दारु पर अपना समय व्यतीत करना चाहती हैं तथा इस सेवा में दिन-रात जागने के लिए भी तैयार है। अपने लोगों की विजय पर वह गीत गाना चाहती है
“वीरों का योग भला क्यों खोऊँगी मैं?
अपने हाथों घाव तुम्हारे धोऊँगी
पानी दूँगी तुम्हें न मल भी सोऊँगी मैं?
गा अपनों की विजय, न घरों में रोऊँगी मैं ॥
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि साकेत में गुप्त जी ने समस्त नारी पात्रों को आधुनिक युग के प्रभाव से युक्त करके ही चित्रित किया है। उनकी नारी आधुनिक नारी की भाँति पुरुष की सहायक बनकर आगे चलना चाहती है और उसके कार्य में उसे सहायता प्रदान करना चाहती है।
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