मौलिक कर्त्तव्य का सम्प्रत्यय विकसित करने के लिए कौनसी शिक्षण सामग्री का प्रयोग की जानी चाहिए?
मौलिक कर्त्तव्य :- मनुष्य समाज के बिना नहीं रह सकता। अपने विकास के लिए मनुष्य समाज से हमेशा ऐसी स्थितियों की मांग करता है जो उसके विकास में सहायक हों। इन स्थितियों या सुविधाओं को ‘अधिकार’ कहते हैं। इन नियमों का पालन करना कर्त्तव्य कहलाता है। अतः कर्त्तव्य को अंग्रेजी में (डयूटी) कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति डेब्ट से हुई है, जिसका अर्थ है ‘कर्जा’ तात्पर्य यह है कि समाज से सुविधाएं प्राप्त करने के लिए मनुष्य को ‘कर्जा’ चुकाना पड़ता है। यही ‘कर्जा’ कर्त्तव्य कहलाता है।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन ने कर्त्तव्य की परिभाषा देते हुए कहा है, ‘आज्ञा का गूंगा’ पालन कर्त्तव्य नहीं, यह आभारों एवं दायित्वों को पूरा करने की सक्रिय इच्छा है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को जो दायित्व सौंपा जाता है, उस पर कृतज्ञता की आशा की जाती है। उसकी सक्रिय इच्छा के साथ पालन करना ‘कर्त्तव्य’ कहलाता है। प्रजातन्त्र के वर्तमान युग में हमेशा यह प्रवृति रही है कि सारा जोर अधिकारों पर ही दिया जाएं, कर्त्तव्यों का निर्वहन बिल्कुल भुला दिया जाएं। लेकिन अधिकार और कर्त्तव्य साथ साथ चलते हैं।
वास्तव में ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रत्येक अधिकार अपने साथ एक कर्त्तव्य निहित रखता है। यदि एक व्यक्ति को अपना स्वयं का धर्म पालन करने का अधिकार है तो दूसरे व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि उसे उसका स्वयं का धर्म पालन करने दे। अधिकार और कर्त्तव्य समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। यही कारण है कि हमारे संविधान ने अधिकारों के साथ-साथ कर्त्तव्य भी निश्चित किए गए हैं:-
हमारे संविधान ने तय किया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को निम्नलिखित कर्तव्य पालन करने होंगे :
- संविधान का पालन करना और इसके आदर्शों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का आदर करना।
- स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखना, उनका पालन करना।
- भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और अक्षुष्ण रखना।
- देश की रक्षा करना और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
- भारत के सभी नागरिकों में समरसता और समान भ्रातृत्व की ऐसी भावना का निर्माण करना जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और : ऐसी प्रथाओं का त्याग करना जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध हों।
- हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझना और उसका परीक्षण करना।
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झीलें, नदियाँ और वन्य जीव भी हैं, रक्षा करना और उनका संवर्धन करना तथा प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखना।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखना और हिंसा से दूर रहना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करना जिससे राष्ट्र निरन्तर आगे बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू सके।
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