राजनीति को परिभाषित करते हुये आवश्यक तत्वों का वर्णन कीजिये।
राजनीति की किसी सर्वमान्य परिभाषा का अभाव है परन्तु विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषा को दो वर्गों में रखा गया है, ये है—
(1) परम्परागत परिभाषाएँ (2) आधुनिक परिभाषाएँ
( 1 ) परम्परागत परिभाषाएँ (Traditional Definitions)- 17वीं सदी से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के काल तक ‘राजनीति’ की जो परिभाषाएँ विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गयी हैं, उन परिभाषाओं को ‘परम्परागत परिभाषाओं’ की श्रेणी में रखा जा सकता है। ‘परम्परागत परिभाषाओं’ की श्रेणी में निम्न विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गयी परिभाषाएँ प्रमुख हैं –
पोल जेनेट के मतानुसार, – “राजनीति समाज विज्ञान का एक भाग है। यह भाग राज्य के आधार तथा शासन के सिद्धान्तों का विवेचन करता है।”
प्रो. जैक्स के शब्दों में, “राजनीति अध्ययन का वह भाग है जो राज्य और सरकार का अध्ययन करती है।”
प्रो. फेयरली के कथनानुसार, “राजनीति में राज्य के संगठन और कार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ ही इसके अन्तर्गत हम उन सिद्धान्तों और कार्यों का अध्ययन भी करते हैं जो राज्य रूपी संगठन के आधार है।”
17 वीं सदी से लेकर 20वीं सदी के प्रारम्भ होने तक की अवधि के उपर्युक्त विद्वानों ने राजनीति को राज्य सरकार और कानून के अध्ययन तक ही सीमित माना है और इसी दृष्टिकोण से ‘राजनीति’ की परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं।
( 2 ) आधुनिक परिभाषाएँ ( Modern Definitions) – यद्यपि ‘राजनीति’ की ‘परम्परागत परिभाषाएँ’ आज भी अपना महत्व यथावत् बनाये हुए हैं किन्तु ‘राजनीति’ “जी से बदल रहे स्वरूप के कारण आज इसका क्षेत्र अत्यधिक दृढ़ हो गया है। आधुनिक राजनीति के साथ अनेक ऐसे असंस्थागत और अनौपचारिक कारक सम्बद्ध हो गये हैं जिनका अध्ययन किये बिना राजनीतिक गतिविधियों का विवेचन करना सम्भव नहीं है तो कठिन अवश्य हो गया है। अतः ‘राजनीति’ के आधुनिक विचारकों और विद्वानों ने राजनीति के अध्ययन में अनौपचारिक संस्थाओं के अध्यन पर अधिक बल दिया है और इसी आधार पर इसे परिभाषा देने का प्रयत्न किया है। राजनीति के कुछ प्रमुख आधुनिक विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गयी ‘राजनीति’ की परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
मैक्स वेबर के मतानुसार, “राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष या उन लोगों को प्रभावित करने की कला है जो सत्तासीन हैं। इस प्रकार राज्यों के बीच संघर्ष तथा राज्य के अन्तर्गत विभिन्न संगठित समुदायों के बीच संघर्ष दोनों ही राजनीति के अन्तर्गत जा जाते हैं।” रॉबर्ट के शब्दों में, “राजनीति को मानव समाज पर शासन करने की कला और व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।’
टी. बैनन के कथनानुसार, “राजनीति सभी रोगों की अचूक औषधि नहीं हो सकती। यह मात्र सम्भावनाओं की एक कला है। इसमें यह तथ्य निहित है कि कुछ सीमा तक समझौते की प्रवृत्ति को ग्रहण करना होगा।”
हर्बर्ट जे. स्पीरो का मत है कि “राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य समाज अपनी समस्याओं के समाधान का प्रयास करता है।” उपर्युक्त विद्वानों द्वारा दी गयी ‘राजनीति’ की परिभाषाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि ‘राजनीति’ का क्षेत्र आज अत्यधिक व्यापक हो गया है।
Contents
राजनीति के आवश्यक तत्व
(ESSENTIAL ELEMENTS OF POLITICS
अथवा
राजनीति की विशेषताएँ-
(CHARACTERISTICS OF POLITICS)
राजनीति के आवश्यक तत्व या विशेषतायें निम्न हैं –
( 1 ) राजनीति मनुष्य की स्वाभाविक गतिविधि (Politics is the natural activity of man ) – अरस्तू ने कहा था कि “मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है।” इस तरह अरस्तू ने मनुष्य में निहित ऐसी स्वाभाविक क्षमता को मान्यता दी थी जो अन्य प्राणियों में नहीं ने पायी जाती। अरस्तू के उपर्युक्त कथन का अर्थ यह था कि मनुष्य किसी-न-किसी ‘राज्य’ के के अन्तर्गत निवास करता है अर्थात् एक सामूहिक सत्ता के माध्यम से अपने जीवन को व्यवस्थित करता है, ताकि एक नैतिक प्राणी के नाते वह उत्तम जीवन और आत्म-सिद्धि प्राप्त कर सके। अतः अरस्तू की दृष्टि में ‘राजनीति’ मनुष्य के सम्पूर्ण अस्तित्व को अपने में समेट लेती है, यद्यपि शासन के स्तर पर जिस सत्ता का प्रयोग होता है, वह परिवार या सम्पत्ति से जुड़ी हुई सत्ता से भिन्न है।
आधुनिक विद्वान राजनीति को मनुष्य की एक विशेष गतिविधि मानते हैं। मनुष्यों की यह गतिविधि समाज के विभिन्न समूहों के माध्यम से व्यक्त होती रहती है, जैसे कि हित समूहों या राजनीतिक दलों के माध्यम से राष्ट्रों में यह गतिविधि शान्ति के समय कूटनीति के रूप में व्यक्त होती है और अशान्ति के समय युद्ध के रूप में परन्तु यह तथ्य स्मरण रखने योग्य है कि युद्ध राजनीति का उपयुक्त तरीका नहीं है; युद्ध का आश्रय तब लिया जाता है जब राजनीत विफल हो जाती है। हाँ, युद्ध के नियमों का पालन राजनीति का विषय अवश्य है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजनीतिक गतिविधि ‘शक्ति संघर्ष’ के रूप में व्यक्त होती है; यह संघर्ष अनेक राष्ट्रों के बीच भी चल सकता है और एक ही राष्ट्र के भीतर विभिन्न समूहों के बीच भी चल सकता है। संक्षेप में, दूसरों के साथ प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति में, समाज के दुर्लभ संसाधनों पर अपना प्रभुत्व और नियन्त्रण स्थापित करने के प्रयास को राजनीति की संज्ञा दी जाती है। इस ध्येय की पूर्ति के लिए विशिष्ट युक्ति और कौशल आवश्यकता होती है। इसमें नैतिक सिद्धान्तों को दूर रखने की स्थिति भी आ सकती है किन्तु चूँकि यह संघर्ष सभ्य समाज के स्तर पर होता है, वन्य पशुओं के स्तर पर नहीं, इसलिए इसमें नैतिक आदर्शों का उल्लेख अवश्य किया जाता है।
( 2 ) राजनीति में विशेष प्रकार की सत्ता का प्रयोग होता है (Politics uses the special type of power) — राजनीति के अन्तर्गत जो निर्णय लिये जाते हैं, उन्हें लागू करने के लिए सत्ता का प्रयोग आवश्यक होता है परन्तु यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि राजनीति में जिस सत्ता, प्रभुत्व या नियन्त्रण का प्रयोग किया जाता है, वह अन्य सामाजिक संगठनों की सत्ता से भिन्न होता है। उदाहरणार्थ, परिवार या मजदूर संघ या व्यापारिक संगठन में जिस सत्ता का प्रयोग किया जाता है, वह राजनीति की श्रेणी में नहीं आती। राजनीति के क्षेत्र में वही सत्ता आती है जिसका प्रयोग या तो सरकार स्वयं करती है या जिसका प्रयोग सरकार को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। अरस्तू ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पॉलिटिक्स’ (जो 335-332ई. पू. में लिखी गयी थी) में इस तर्क का खण्डन किया था कि सभी प्रकार की सत्ता एक जैसी होती है। उसने यह संकेत दिया था कि राजनीतिक संगठन के अन्तर्गत राजनीतिक नेता की सत्ता दूसरी तरह की सत्ता से जैसे कि दास के सन्दर्भ में स्वामी की सत्ता से, पत्नी के सन्दर्भ में पति की सत्ता से और सन्तान के सन्दर्भ में माता-पिता की सत्ता से भिन्न होती है। इस तरह अरस्तू ने राजनीतिक सत्ता या शासन को राजनीतिक संगठन का एक आवश्यक अंग माना है।
यह धारणा अरस्तू के काल से ही व्यापक रूप से स्वीकार की जाती है कि राजनीतिक सम्बन्ध सूत्र किसी-न-किसी रूप में सत्ता, शासन या शक्ति से सम्बद्ध रहता है। यह मान्यता आज भी प्रचलित है। उदाहरणार्थ, आधुनिक युग के प्रख्यात जर्मन समाज-वैज्ञानिक मैक्स वेबर (1864-1920) ने यह मत प्रकट किया है कि किसी संगठन को राजनीतिक संगठन तभी और वही तक माना जाना चाहिए जब तक और जहां तक किसी निश्चित भू-भाग के अन्तर्गत उसके आदेशों का निरन्तर पालन होता हो और उनका पालन कराने के लिए प्रशासनिक अधिकारीतन्त्र ठोस शक्ति का प्रयोग करता हो या ऐसे करने का भय दिखाता हो।
आधुनिक युग के विख्यात अमेरिकी राजनीति- वैज्ञानिक हेरल्ड लासवैल के मतानुसार राजनीति विज्ञान में यह अध्यन किया जाता है कि शक्ति या सत्ता का स्वरूप कैसे निर्धारित होता है और उसका प्रयोग कौन किसके साथ मिलकर करता है? लासवैल का मत है कि “राजनीतिक कार्य शक्ति के प्रयोग से ही सार्थक होता है।”
(3) राजनीति का सरोकार संघर्ष और उसके समाधान से है ( The relation of Politics is with struggle and its solution )- राजनीति एक विशेष मानवीय क्रिया है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परन्तु उसकी प्रत्येक गतिविधि ‘राजनीति’ के सीमा क्षेत्र में नहीं आती। हम यह कह सकते हैं कि एक विशेष स्थिति में मनुष्य जो क्रियाएँ करते हैं, वे ही राजनीति की परिभाषा के अन्तर्गत आती है। इस स्थिति को हम ‘राजनीतिक स्थिति’ कहते हैं। एलेन बाल ने अपनी पुस्तक ‘मॉर्डन पॉलिटिक्स एण्ड गवर्नमेण्ट’ (आधुनिक राजनीति और शासन) में लिखा है कि “राजनीतिक क्रिया में मतभेद और उन मतभेदों का समाधान निहित होता है। राजनीतिक स्थिति का सार-तत्व संघर्ष और उस संघर्ष का समाधान है।” इसी प्रकार स्टीफेन एल. वास्वी ने अफनी पुस्तक ‘पॉलिटिकल साइन्स- द डिसिप्लिन एण्ड इट्स डायमेंशन्स-एन इंट्रोडक्शन (राजनीति विज्ञान की भूमिका-विषय और उसके आयाम) के अन्तर्गत लिखा है कि “जहाँ राजनीति है, वहाँ कोई-न-कोई विवाद अवश्य रहता है; जहाँ कोई-न-कोई समस्याएँ होती हैं, वहाँ राजनीति अवश्य होती है। जहाँ कोई विवाद नहीं होता, जहाँ किन्हीं समस्याओं पर वाद विवाद नहीं चल रहा होता, वहाँ राजनीति भी नहीं होती।” जे. डी. वी. मिलर ने अपनी पुस्तक ‘द नेचर ऑफ पॉलिटिक्स’ (राजनीति का स्वरूप) के अन्तर्गत यह संकेत दिया है कि राजनीतिक स्थिति में संघर्ष के समाधान के लिए शासन या सरकार का प्रयोग किया जाता है।
( 4 ) राजनीति का सम्बन्ध ‘मूल्यों’ के आधिकारिक आवण्टन से है ( The relationof polities is with values and autho-rative allotment ) – संघर्ष का राजनीतिक समाधान सम्बद्ध पक्षों को इसलिए स्वीकार करना होता है क्योंकि यह समाधान आधिकारिक होता है। डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिकल सिस्टम एन इंक्वायरी इंटू द स्टेट ऑफ पॉलिटिकल साइन्स’ (राजनीतिक प्रणाली राजनीति विज्ञान की वर्तमान दशा का अन्वेषण) के अन्तर्गत लिखा है कि राजनीति का सम्बन्ध समाज में ‘मूल्यों’ के आधिकारिक आवण्टन से है। इस संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित परिभाषा में तीन महत्वपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका स्पष्ट विवेचन आवश्यक है। ये शब्द है—’मूल्य’, ‘आवण्टन’ और ‘आधिकारिक मूल्य’ । इनसे ईस्टन का आशय है, समाज में मिलने वाली ये वस्तुएँ (लाभ या सेवाएँ, सुख-सुविधाएँ इत्यादि) जो दुर्लभ है और जिन्हें मूल्यवान समझा जाता है या जिनकी प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कामना की जाती है, चाहे वे भौतिक हो या आध्यात्मिक। जैसे कि हम सब रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, परिवहन सेवा, शिक्षा और मनोरंजन के अवसरों, मान-प्रतिष्ठा इत्यादि की कामना करते हैं, इसीलिए ये सब मूल्यों के उदाहरण हैं। दूसरे शब्दों में, मूल्य ऐसी इष्ट वस्तुएँ, लाभ या सेवाएँ है जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति प्राप्त करना चाहता है परन्तु उनकी इतनी कमी है कि उन्हें कुछ लोग ही प्राप्त कर सकते हैं। अतः इन वस्तुओं के मामले में समाज में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
(5) राजनीति सम्भावना की कला है (Politics is an Art of Possibles ) – सुप्रसिद्ध विचारक रॉबर्ट ने ‘राजनीति’ को ‘सम्भावना की कला’ कहकर सम्बोधित किया है। बिस्मार्क ने भी इसे ‘सम्भावना की कला’ ही कहा था। इसके अन्तर्गत संघर्ष में लगे विभिन्न लोगों, समूह और समुदायों के बीच चल रहे संघर्ष के समाधान की सम्भावनाओं की खोज की जाती है। संघर्ष के समाधान को खोजने की यह प्रक्रिया उसी स्थिति में सम्भव है जब संघर्षरत विभिन्न पक्ष किसी समझौते पर पहुँचने के लिए तैयार हों। समझौते की इस प्रक्रिया में सभी पक्षों की स्वीकृति व सहमति का होना भी आवश्यक है और यह तभी सम्भव है जब सभी पक्ष थोड़ा बहुत झुकने के लिए तत्पर हों। संघर्ष समाधान की इस प्रक्रिया में शक्तिशाली पक्ष के लिए भी यह आवश्यक है कि वह भी अपनी सद्भावना और सदाशयता का परिचय देते हुए कमजोर पक्ष को अधिकतम लाभ देने का प्रयत्न करे। इस प्रकार समझौते की इस कला में जो पक्ष जितना अधिक कुशल और पारंगत होता है, उसके सफल होने की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक प्रबल होती है।
उपर्युक्त तत्वों या विवेषताओं का विश्लेषण करने पर यह कहना युक्तिसंगत होगा कि राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके संचालन में मानव समूहों की भूमिका प्रमुख और महत्वपूर्ण है। इस प्रक्रिया की सतह में संघर्ष का तत्व विद्यमान रहता है जिसे संघर्ष के समाधान हेतु मानव प्रयास के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
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