राजनीति शास्त्र का इतिहास विषय के साथ सम्बन्ध लिखिए।
आरम्भ से ही एक लम्बे समय तक राजनीति विज्ञान का अध्ययन अध्यापन इतिहास के एक अभिन्न अंग के रूप में होता रहा है। पहले शासन प्रबन्ध एवं नागरिक शास्त्र के अध्ययन द्वारा विद्यार्थियों को राजनीतिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए इतिहास का सहारा लिया जाता है। वस्तुतः इतिहास से ही राजनीति शास्त्र की उत्पत्ति हुई है।
राजनीति विज्ञान मानव के कार्यों को एक नागरिक के रूप में अध्ययन करता है जबकि इतिहास मानव के कार्यों के सामाजिक विकास का विवरण प्रस्तुत करता है, इस प्रकार राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों का ऐतिहासिक विकास क्रम के आधार पर निर्माण होता है। इस सम्बन्ध में कोचर ने लिखा है कि ‘शासन तथा इतिहास का सम्बन्ध कुछ ऐसा है जैसाकि वनस्पति शास्त्र का वनस्पति से तथा जीवशास्त्र का प्राणियों से फ्रीमैन ने भी इतिहास को भूतकाल की राजनीति की संज्ञा प्रदान की है। राजनीति विज्ञान का यह अध्ययन हमें बतलाता है कि इतिहास में पूर्व में किस प्रकार शासन जनता की भलाई के लिए किस प्रकार के कार्यों और दायित्वों को पूर्ण करते थे तथा हमें अपनी सरकार के चयन लिए किस प्रकार की आवश्यकता होती है।
विभिन्न प्रकार की शासन प्रणालियों संविधाओं, राजनीतिक संस्थाओं तथा सिद्धान्तों का विकास क्रम इतिहास के द्वारा स्पष्ट होता है। तथा राजनीति एवं नागरिक सिद्धान्तों का इतिहास के घटनाक्रम पर भी प्रभाव पड़ता है। इतिहास एवं राजनीति शास्त्र परस्पर एक-दूसरे के साथ अति निकटता से जुड़े हुए है अत: इनका समवाय किया जाना अति आवश्यक है।
राजनीति विज्ञान से समवाय के उचित अवसर:- इतिहास के ऐसे प्रकरण जिनमें तत्कालीन शासन प्रबन्ध तथा उसके अंग विधायिका कार्यपालिका न्यायपालिका संविधान, नागरिक अधिकार एवं कर्त्तव्य स्वायत्त शासन संस्थाओं आदि की व्याख्या करनी हो नागरिक शास्त्र से समवाय के उपयुक्त अवसर प्रस्तुत करते हैं। ऐसे प्रकरणों में सम्बद्ध तथ्यों का विगत तथा आगामी काल से समवाय किया जाना उपयोगी रहता है। शेरशाह के शासन प्रबन्ध के अन्तर्गत भूमि व्यवस्था तथा सैनिक प्रशासन सम्बन्धी सुधारों की पूर्ववर्ती शासक अलाउद्दीन खिलजी तथा आगामी शासक अकबर तथा वर्तमान शासन से समानताएँ तथा विभिन्नताएं प्रकट करते हुए उनका तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए जिससे कि छात्रों को कार्यकरण सम्बन्ध समझ में आ सके।
इस अध्ययन के आधार पर यह तथ्य स्पष्ट हो सकेगा कि शेरशाह प्रशासनिक सुधारों में अकबर का अग्रगामी क्यों कहा जाता है। इसी प्रकार ब्रिटिशकाल के इतिहास का अध्ययन भारत के संवैधानिक विकास को स्पष्ट करने में सहायक होता है। स्वायत्त शासन की परम्परा ग्राम पंचायत व्यवस्था के रूप में भारत में प्राचीन काल से रही है। यह तथ्य इतिहास का राजनीति शास्त्र से समवाय करने से स्पष्ट हो जाता है। नागरिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का विभिन्न कालों में जो रूप रहा है उस पर तत्कालीन शासन प्रणाली का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। वर्तमान जनतांत्रिक व्यवस्था से तत्कालीन व्यवस्था का समवाय इस तथ्य से प्रकट होता है। इस प्रकार इतिहास तथा नागरिक शास्त्र के स्वाभाविक एवं प्रभावी समवाय के उपयुक्त अवसरों का इतिहास शिक्षक द्वारा लाभ उठाया जाना अपेक्षित है।
राजनीति शास्त्र से समवाय करते समय यह सावधानी रखने की आवश्यकता है। कि समवाय उतनी ही सीमा तक किया जाना वांछनीय है जितना ऐतिहासिक तथ्यों के स्पष्टीकरण में सहायक हो। सीमा से कम या अधिक समवाय विषय की अस्पष्टता अथवा पाठ्यवस्तु की अपेक्षा नागरिक शास्त्र की प्रमुखता उत्पन्न कर सकता है। अतः उपयुक्त अवसर पर उपयुक्त मात्रा में ही समवाय स्वाभाविक उपयोगी एवं प्रभावी बन सकता है।
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