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लागत लेखांकन के उद्देश्य | Objectives of Cost Accounting in Hindi

लागत लेखांकन के उद्देश्य | Objectives of Cost Accounting in Hindi
लागत लेखांकन के उद्देश्य | Objectives of Cost Accounting in Hindi
लागत लेखांकन के उद्देश्य का वर्णन कीजिए।

लागत लेखांकन के उद्देश्य अथवा कार्य (Objects or Functions of Cost Accounting)- लागत लेखांकन के उद्देश्य अथवा कार्य निम्नलिखित हैं-

1. लागत निर्धारण करना (To ascertain the Cost)- लागत लेखांकन का मुख्य उद्देश्य निर्मित वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत निर्धारित करना है। इसमें लागत के विभिन्न तत्वों, प्रक्रिया एवं गतिविधियों के आधार पर लागत की सही समीक्षा की जाती है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित दो उप-उद्देश्यों को प्राप्त करना आवश्यक है:

  1. लागत का संग्रहरण, विभाजन एवं विश्लेषण तथा
  2. वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल लागत एवं प्रति इकाई लागत ज्ञात करना।

2. विक्रय मूल्य का निर्धारण करना (To determine the selling price) – लागत लेखांकन का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य विक्रय मूल्य का निर्धारण करना है किसी भी वस्तु का विक्रय मूल्य तब तक ठीक प्रकार से ज्ञात नहीं किया जा सकता जब तक उसके लागत मूल्य की जानकारी न हो क्योंकि एक उत्पाद का विक्रय मूल्य उस वस्तु की लागत में लाभ जोड़कर ही तय किया जा सकता है विक्रय मूल्य के निर्धारण में कई अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना होता है जैसे- एकाधिकार की स्थिति, प्रतियोगिता, मांग व पूर्ति, वस्तु को प्रकृति, उसके स्थानापत्र उत्पाद (Substitute Product) आदि। लागत लेखांकन यह निर्णय लेने में सहायता प्रदान करता है कि प्रतियोगिता की स्थिति में तथा मंदी के समय मूल्य को किस सीमा तक कम किया जा सकता है।

3. लाभकारिता का निर्धारण करना (To determine profitability) – लागत लेखांकन का तीसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य सभी वर्तमान क्रियाओं तथा नियोजित (Planned) क्रियाओं की लाभकारिता को जानना है। जो लाभ वर्तमान में अर्जित किया जा रहा है उसकी तुलना लाभकारिता से करना। इसी प्रकार जहाँ एक उत्पाद को निर्माण करने का विचार किया जाता है वहाँ यह जानना आवश्यक है कि उस उत्पाद के निर्माण में कितने लाभ प्राप्त होंगे।

4. लागत पर नियन्त्रण (To control Cost)- लागत लेखांकन का उद्देश्य केवल लागतों के जानने तक ही सीमित नहीं अपितु उन्हें नियन्त्रण में रखना भी आवश्यक है। उदाहरण के लिए वस्तु की लागत बढ़ जाने के लिए उसकी मांग कम हो जाती है और उपभोक्ता स्थानापत्र (Substitute) वस्तुओं का प्रयोग प्रारम्भ कर देते हैं। अतः प्रयत्न करना चाहिए कि लागतें न बढ़े लागत नियन्त्रण करने के दो तरीके हैं—(i) बजट बनाकर नियन्त्रण करना; (ii) मानक स्थापित कर वास्तविक व्ययों से तुलना करना, अर्थात् प्रमापित लागत पद्धति द्वारा।

5. लागत में कमी करना (To reduce Cost)— लागत नियन्त्रण के साथ-साथ लागत लेखांकन लागत में कमी करने के उद्देश्य से अपव्ययों को रोकने का प्रयास भी करता है।

6. प्रबन्धकों का मार्गदर्शन करना (To guide the management) – लागत लेखों द्वारा प्रदान की जाने वाली सूचनाएँ प्रबन्धकों द्वारा अनेक प्रकार के निर्णय लेने में मार्गदर्शन करती है। उदाहरण के लिए निर्माण करना या खरीदना, हानि पर विक्रय कम करें या उत्पादन बंद कर दे, विदेशी बाजारों में कम मूल्य पर उत्पादन बेचना, नया प्लाण्ट लगाना अथवा पुराने प्लाण्ट पर मरम्मत का भारी व्यय करके उसे ही चलाना, विभिन्न वैकल्पिक उत्पादों में से कौन सी वस्तुओं का उत्पादन किया जाए।

7. वैधानिक अनिवार्यता की पूर्ति (Compliance of Statutory requirement)– कम्पनी अधिनियम की धारा 209 (1) (d) के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा कुछ उद्योगों के लिए लागत लेखे रखना अनिवार्य कर दिया गया है। इसलिए लागत लेखों को रखने का एक उद्देश्य वैधानिक दायित्व को पूरा करना भी है।

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Anjali Yadav

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