शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

वंशानुक्रम के नियम (सिद्धान्त) | Laws (Principles) of Heredity in Hindi

वंशानुक्रम के नियम (सिद्धान्त) |  Laws (Principles) of Heredity in Hindi
वंशानुक्रम के नियम (सिद्धान्त) | Laws (Principles) of Heredity in Hindi

वंशानुक्रम के विभिन्न नियमों का उल्लेख कीजिए।

वंशानुक्रम के नियम (सिद्धान्त) Laws (Principles) of Heredity

वंशक्रम (Heredity) मनोवैज्ञानिकों तथा जीववैज्ञानिकों (Biologists) के लिए अत्यन्त रोचक तथा रहस्यमय विषय है। वंशक्रम किन नियमों तथा सिद्धान्तों पर आधारित है, यह विषय भी अध्ययन के लिए नए आयाम प्रस्तुत करता है। वंशक्रम के ये नियम सर्वाधिक प्रचलित हैं-

  1. समानता का नियम (Law of Resemblance),
  2. प्रत्यागमन का नियम (Law of Regression),
  3. बीजकोष की निरन्तरता का नियम (Law of Continuity of Germ Plasm),
  4. विभिन्नता का नियम (Law of Variation),
  5. मैंडल का नियम (Mendel’s Law),
  6. अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम (Law of Transmission of Acquired Traits)

1. समानता का नियम (Law of Resemblance)- इस नियम के अनुसार, जैसे माता-पिता होते हैं, वैसी ही उनकी सन्तान होती है (Like tends of beget like)। सोरेनसन (Sorenson) के अनुसार- “बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान, साधारण माता-पिता के बच्चे साधारण और मन्द-बुद्धि माता-पिता के बच्चे मन्द-बुद्धि होते हैं। इसी प्रकार, शारीरिक रचना की दृष्टि से भी बच्चे माता-पिता के समान होते हैं। “

यह नियम भी अपूर्ण है, क्योंकि प्रायः देखा जाता है कि काले माता-पिता की सन्तान गोरी, मन्द-बुद्धि माता-पिता की सन्तान बुद्धिमान होती है। इस नियम के अनुसार माता-पिता की विशेषताएँ बालक में मूल रूप में आनी चाहिएँ।

2. प्रत्यागमन का नियम (Law of Regression) – इस नियम के अनुसार, बालक में अपने माता-पिता के विपरीत गुण पाए जाते हैं। सोरेनसन (Sorenson) के अनुसार- “बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चों में कम प्रतिभा होने की प्रवृत्ति और बहुत निम्नकोटि के माता-पिता के बच्चों में कम निम्नकोटि होने की प्रवृत्ति ही प्रत्यागमन है।”

प्रकृति का नियम यह है कि वह विशिष्ट गुणों के बजाय सामान्य गुणों का अधिक वितरण करके एक जाति के प्राणियों को एक ही स्तर पर रखने का प्रयास करती है। इस नियम के अनुसार, बालक अपने माता-पिता के विशिष्ट गुणों का त्याग करके सामान्य गुणों को ग्रहण करते हैं। यही कारण है कि महान् व्यक्तियों के पुत्र साधारणतः उनके समान महान् नहीं होते हैं, उदाहरणार्थ–बाबर, अकबर और महात्मा गाँधी के पुत्र उनसे बहुत अधिक निम्न कोटि के थे। इसके दो मुख्य कारण हैं–(1) माता-पिता के पित्र्यैकों में से एक कम और एक अधिक शक्तिशाली होता है। (2) माता-पिता में उनके पूर्वजों में से किसी का पित्र्यैक अधिक शक्तिशाली होता है।

3. बीजकोष की निरन्तरता का नियम (Law of Continuity of Germ Plasm)- इस नियम के अनुसार, बालक को जन्म देने वाला बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता। इस नियम के प्रतिपादक वीजमैन (Weismann) के अनुसार- “बीजकोष का कार्य केवल उत्पादक कोषों (Germ Cells) का निर्माण करना है, जो बीजकोष बालक को अपने माता-पिता से मिलता है उसे वह अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित कर देता है। इस प्रकार, बीजकोष पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।”

वीजमैन के ‘बीजकोष की निरन्तरता’ के नियम को स्वीकार नहीं किया जाता है। बी० एन० झा (B. N. Jha) के अनुसार- “इस सिद्धान्त के अनुसार माता-पिता, बालक के जन्मदाता न होकर केवल बीजकोष के संरक्षक हैं, जिसे वे अपनी सन्तान को देते हैं। बीजकोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को इस प्रकार हस्तान्तरित किया जाता है, मानो एक बैंक से निकलकर दूसरे में रख दिया जाता हो। यीजमैन का सिद्धान्त न तो वंशानुक्रम की सम्पूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या करता है और न सन्तोषजनक ही है।”

यह मत वंशाक्रम की सम्पूर्ण प्रक्रिया की व्याख्या न कर पाने के कारण अमान्य है।

4. विभिन्नता का नियम (Law of Variation)- इंस नियम के अनुसार, बालक अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ भिन्न होते हैं। इसी प्रकार, एक ही माता-पिता के बालक एक-दूसरे के समान होते हुए भी बुद्धि, रंग और स्वभाव में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कभी-कभी उनमें पर्याप्त शारीरिक और मानसिक विभिन्नता पाई जाती है। सोरेनसन (Sorenson) के अनुसार- “इस विभिन्नता के कारण माता-पिता के उत्पादक-कोयों की विशेषताएँ हैं। उत्पादक कोषों में अनेक पित्र्यैक होते हैं जो विभिन्न प्रकार से संयुक्त होकर एक-दूसरे से भिन्न बच्चों का निर्माण करते हैं।”

भिन्नता का नियम प्रतिपादित करने वालों में डार्विन (Darwin) तथा लेमार्क (Lemark) ने अनेक प्रयोगों तथा विचारों द्वारा यह मत प्रकट किया है कि उपयोग न करने वाले अवयव तथा विशेषताओं का लोप आगामी पीढ़ियों में हो जाता है। नवोत्पत्ति (Mutation) तथा प्राकृतिक चयन (Natural Selection) द्वारा वंशक्रमीय विशेषताओं का उन्नयन होता है।

5. मैंडल का नियम (Mende’s Law)- इस नियम के अनुसार, वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती हैं। इस नियम को चेकोस्लोवाकिया के मैंडल (Mendel) नामक पादरी ने प्रतिपादित किया था। उसने अपने गिरजे के बगीचे में बड़ी और छोटी मटरें बराबर संख्या में मिलाकर बोयीं। उगने वाली मटरों में सब वर्णसंकर जाति की थीं। मैंडल ने इन वर्णसंकर मटरों को फिर बोया और इस प्रकार उसने उगने वाली मटरों को कई बार बोया । अन्त में, उसे ऐसी मटरें मिलीं, जो वर्णसंकर होने के बजाय शुद्ध थीं।

मटरों के समान मैंडल ने एक प्रयोग चूहों पर भी किया। उसने सफेद और काले चूहों को साथ-साथ रखा। इनसे जो चूहे उत्पन्न हुए, वे काले थे। फिर उसने इन वर्णसंकर काले चूहों को एक साथ रखा। इनसे उत्पन्न होने वाले चूहे, काले और सफेद दोनों रंगों के थे।

अपने प्रयासों के आधार पर मैंडल ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती हैं। यही सिद्धान्त “मैडलवाद” (Mendelism) के नाम से प्रसिद्ध है। बी० एन० झा के अनुसार- “जब वर्णसंकर अपने स्वयं के पितृ या मातृ-उत्पादक कोषों का निर्माण करते हैं, तब वे प्रमुख गुणों से युक्त माता-पिता के समान शुद्ध प्रकारों को जन्म देते हैं।”

“When the hybrids come to form their own sperms (male) or egg. cells (female), they produce pure parental types with the dominant characters.” – B. N. Jha

6. अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम (Law of Transmission of Acquired Traits) – इस नियम के अनुसार, माता-पिता द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित किए जाने वाले गुण उनकी सन्तान को प्राप्त नहीं होते हैं। इस नियम को अस्वीकार करते हुए विकासवादी लेमार्क (Lemark) ने लिखा है-“व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया जाता है, वह उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले व्यक्तियों को संक्रमित किया जाता है। इसका उदाहरण देते हुए लेमार्क ने कहा है कि जिराफ पशु की गर्दन पहले बहुत कुछ घोड़े के समान थी, पर कुंछ विशेष परिस्थितियों के कारण वह लम्बी हो गई और कालान्तर में उसकी लम्बी गर्दन का गुण अगली पीढ़ी में संक्रमित होने लगा। लेमार्क ने इस कथन की पुष्टि मैक्डूगल (McDougall) और पवलव (Pavlov) ने चूहों पर, एवं हैरीसन (Harrison) ने पतंगों पर परीक्षण करके की है।

आधुनिक युग में विकासवाद या अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धान्त, स्वीकार नहीं किया जाता है। इस सम्बन्ध में वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार- “वंशानुक्रम की प्रक्रिया के अपने आधुनिक ज्ञान से सम्पन्न होने पर यह बात प्रायः असम्भव जान पड़ती है कि अर्जित गुणों को संक्रमित किया जा सके। यदि आप कोई भाषा बोलना सीख लें, तो क्या आप पित्र्यैकों द्वारा इस ज्ञान को अपने बच्चे को संक्रमित कर सकते हैं ? इस प्रकार के किसी प्रमाण की पुष्टि नहीं हुई। है। क्षय या सूजाक ऐसा रोग, जो बहुधा परिवारों में पाया जाता है, संक्रमित नहीं होता है। बालक को यह रोग परिवार के पर्यावरण में छूत से होता है।”

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Anjali Yadav

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