विक्रेता के ग्रहणाधिकार तथा मार्ग में माल रोकने के अधिकार में अन्तर स्पष्ट कीजिए। किन परिस्थितियों में ग्रहणाधिकार सम्भव है? ग्रहणधिकार का अन्त किस प्रकार हो जाता है?
विक्रेता के ग्रहणाधिकार एवं मार्ग में रोकने के अधिकार में अन्तर – ग्रहणाधिकार अथवा विशेषधिकार एवं माल को मार्ग में रोकने के अधिकारों की उत्पत्ति तभी होती है जबकि माल का स्वामित्व क्रेता के पास चला गया है। किन्तु विक्रेता को माल के मूल्य का भुगतान नहीं हुआ है। विक्रेता के ग्रहणाधिकार व माल को मार्ग में रोकने के अधिकार में निम्न अन्तर है-
अन्तर | गृहणाधिकार | मार्ग में रोकने का अधिकार |
अधिकार की प्राप्ति |
विक्रेता को गृहणाधिकार उस समय प्राप्त होती है जब क्रेता दिवालिया हो जाता है तथा क्रेता मूल्य चुकाने की स्थिति में नहीं होता है।
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मार्ग में माल रोकने का अधिकार अदत्त विक्रेता को उस समय प्राप्त होता है जब क्रेता दिवालिया हो जाता है। |
माल पर अधिकार | गृहणाधिकार का प्रयोग केवल उसी स्थिति में किया जा सकता है जबकि माल अदत्त विक्रेता के वास्तविक अथवा रचनात्मक अधिकार में हो। | मार्ग में माल रोकने का अधिकार उस समय मिलता है जब माल विक्रेता के अधिकार में नहीं होता तथा क्रेता के पास नहीं पहुँचता है। अर्थात् माल मार्ग में नहीं है। |
उद्देश्य | गृहणाधिकार का उद्देश्य माल को तब तक रोके रखना है जब तक कि विक्रेता को उसका भुगतान प्राप्त न हो जाय। | माल को मार्ग में रोकने का उद्देश्य माल को पुनः अधिकार में लेना होता है। |
अधिकार का प्रारम्भ व अन्त | जब माल पर गृहणाधिकार का अन्त हो जाता है उसके पश्चात् ही माल को मार्ग में रोकने का अधिकार उत्पन्न हो जाता है। | जब माल को मार्ग में रोकने का अधिकार प्रारम्भ होता है तो माल पर गृहणाधिकार समाप्त हो जाता है। |
समाप्ति पर अधिकार | गृहणाधिकार समाप्त होने की दशा में अदत्त विक्रेता को माल के विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। | गृहणाधिकार समाप्त होने की दशा अदत्त विक्रेता को माल के विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। |
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परिस्थितियाँ जिनमें ग्रहणाधिकार सम्भव है-
अदत्त विक्रेता जिसके अधिकार में माल है, माल को अपने अधिकार में उस समय तक रोके रख सकता है जब तक उसे माल के मूल्य का भुगतान न किया जाय अथवा मूल्य प्रस्तुत न किया जाय। अत: अदत्त विक्रेता निम्न परिस्थितियों में ग्रहणाधिकार रख सकता है-
1. माल उधार न बेचा गया हो – जब माल बिना किसी उधार की शर्त के बेचा गया हो अर्थात् माल के मूल्य का नकद भुगतान होना तय हुआ हो तो ऐसी दशा में विक्रेता माल को उस समय तक रोक कर रख सकता है जब तक उसका मूल्य न चुका दिया जाय।
2. माल उधार बेचा गया हो – यदि माल उधार बेचा गया हो और उधार की अवधि समाप्त हो चुकी हो। जब तक कि अवधि समाप्त नहीं होती, विक्रेता माल पर ग्रहणाधिकार नहीं रख सकता।
3. क्रेता का दिवालिया होना- यदि माल उधार पर बेचा गया हो और क्रेता दिवालिया हो जाय तो अदत्त विक्रेता माल पर ग्रहणाधिकार उधार की अवधि में भी रख सकता है।
ग्रहणाधिकार का अन्त किस प्रकार हो जाता है ?
ग्रहणाधिकार का अन्त- अदत्त विक्रेता माल पर अपना ग्रहणाधिकार निम्नलिखित दशाओं में खो देता है-
1. माल वाहक को माल सौंपना- जब कोई अदत्त विक्रेता माल पर अपने अधिकार को सुरक्षित रखे बिना किसी माल वाहक को माल क्रेता के पास भेजने के लिए दे देता है तो ग्रहणाधिकार का अन्त या समाप्ति हो जाती है।
2. क्रेता को माल मिल जाने पर- जब माल क्रेता अथवा उसके एजेन्ट के पास वैधानिक रूप से पहुँच जाता है तो अदत्त विक्रेता का पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।
3. विक्रेता द्वारा ग्रहणाधिकार का परित्याग-जब माल का अदत्त विक्रेता स्पष्ट या गर्भित रूप से माल पर से ग्रहणाधिकार का परित्याग कर देता है तथा माल सौंप देता है तो ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।
4. आंशिक सुपुर्दगी- यदि क्रेता विक्रेता को माल की आंशिक सुपुर्दगी देता है और उससे यह प्रकट होता है कि उसने अपने ग्रहणाधिकार का परित्याग कर दिया है तो भी ग्रहणाधिकार समाप्त हुआ माना जायेगा।
5. मूल्य का भुगतान प्राप्त होने पर- यदि अदत्त विक्रेता को माल के मूल्य का भुगतान मिल जाता है, तो मूल्य के प्राप्त होते ही ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।
6. भुगतान अस्वीकार करने पर- यदि क्रेता प्रदत्त विक्रेता को उचित रूप में उचित समय पर मूल्य का भुगतान करता है अथवा भुगतान करने का प्रस्ताव करता है और विक्रेता उसको स्वीकार नहीं करता है तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।
7. अवरोध या प्रदर्शन की दशाएँ- अदत्त विक्रेता स्वयं अपने आचरण द्वारा यदि यह विश्वास दिलाये कि उसका ग्रहणाधिकार समाप्त हो गया है तो यह प्रदर्शन द्वारा ग्रहणाधिकार की समाप्ति कही जाती है।
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