व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं? व्यवहारवाद के उदय के कारण व मूल मान्यताओं का आलोचनात्मक वर्णन करो।
Positivism आधुनिक राजनीति विज्ञान को नवीन और वैज्ञानिक बनाने का श्रेय ‘व्यवहारवाद’ को है, जिसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी राजवैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया। इसकी जड़ें प्रथम विश्व युद्ध के भी पूर्व 1880 में ग्राह्य वाल्स की पुस्तक ‘Human Nature in Politics’ और ए. एफ बैण्टले की पुस्तक ‘The Process of Government’ आदि रचनाओं में देखी जा सकती हैं। बाद में 1925 में चार्ल्स मेरियम की रचना ‘New Aspect of Politics’ को व्यवहारवादी आन्दोलन की दिशा में एक नया कदम कहा जा सकता में है। मेरियम की प्रेरणा से अमेरिका में यथार्थवादी एवं परिमाणात्मक अध्ययन किये गये और सुप्रसिद्ध शिकागो सम्प्रदाय व्यवहारवाद का गढ़ बन गया। ‘पॉलिटिकल साइन्स एसोसियेशन’ ‘सोशल साइन्स रिसर्च कौसिल’ तथा ‘फोर्ड’, कारनेगी और रॉकफेलर जैसे निजी संस्थाओं में यह पूर्णरूपेण फलित हुआ। यह उपागम राजनीति विज्ञान के संदर्भ में मुख्यतया अपना ध्यान व्यक्ति अथवा समूहों के राजनीतिक व्यवहार केन्द्रित करता है तथा राजनीतिक गतिविधियों का वैज्ञानिक प्रणाली के द्वारा अध्ययन पर बल देता है। व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यक्तिनिष्ठ मूल्यों और कल्पनाओं आदि को कोई स्थान नहीं देते, न ही वह राजनीति विज्ञान को राज्य की कानूनी एवं दार्शनिक सीमाओं में बाँधने के लिए तैयार हैं। इस उपागम के अनुसार राज्य के बाहर भी सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र का जो संस्थाएँ और सत्ताएँ और इसको प्रेरित करने वाला जो मानसिक व्यवहार है, उसका अध्ययन अधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
व्यवहारवादी विद्वानों में डेविड ईस्टन, आमण्ड, पावेल, कोलमैन, डॉयस, लासवैल, एडवर्ड शिल्स आदि का नाम प्रमुख रूप से आता है।
व्यवहारवाद की परिभाषाएँ- हीज चुलाउ के अनुसार, “व्यवहारवाद राजनीतिक व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन का दूसरा नाम है।”
डेविड ईस्टन के अनुसार, “व्यवहारवाद वैज्ञानिक मनोदशा का प्रतिबिम्ब तथा तथात्मक शैक्षणिक आन्दोलन है।”
डेविड टू मैन के अनुसार, “व्यवहारवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य शासन के समस्त तथ्यों को मनुष्य के प्रेक्षित एवं प्रेक्षणीय व्यवहार की शब्दावली में वर्णन करना है।”
राबर्ट ए. डहल के अनुसार, “व्यवहारवादी क्रांति परम्परागत राजनीति विज्ञान की उपलब्धियों के प्रति असन्तोष का परिणाम है, जिसका उद्देश्य राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिक बनाना है।”
फर्क पैट्रिक के अनुसार, “व्यवहारवाद का प्रयोग निम्न अर्थों में किया जाता है”-
1. व्यक्तियों के व्यवहार पर बल- व्यवहारवाद इस बात पर बल देता है कि राजनीतिक अध्ययन और शोधकर्त्ता में विश्लेषण की मौलिक इकाई संस्था न होकर व्यक्ति होना चाहिए।
2. अन्य समाज विज्ञानों के साथ एकता पर बल- यह सामाजिक विज्ञानों को व्यवहारवादी विज्ञानों के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ एकता पर बल देता है।
3. शुद्ध प्रविधियों के विकास पर बल- व्यवहारवाद तथ्यों के पर्यवेक्षण, वर्गीकरण और माप के लिए अधिक परिशुद्ध प्रविधियों के विकास व उपयोग पर बल देता है एवं इस बात का प्रतिपादन करता है कि जहाँ तक सम्भव हो, सांख्यिकी परिमाणात्मक सूत्रीकरणों का उपयोग किया जाना चाहिए।
4. आनुभाविक सिद्धान्त पर बल- यह राजनीति विज्ञान के लक्ष्य को एक व्यस्थित आनुभाविक सिद्धान्त के रूप में परिभाषित करता है।
संक्षेप में, व्यवहारवाद एक ऐसा दृष्टिकोण है, जिसका लक्ष्य विश्लेषण की नई इकाइयों, नई पद्धतियों, नई तकनीकों, नये तथ्यों और एक व्यवस्थित सिद्धान्त के विकास को प्राप्त करना है। व्यवहारवाद की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों और समाज विज्ञानों के बीच एक गुणात्मक निरन्तरता है।
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