शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक के महत्त्व, अध्यापकों के व्यवसायिकरण हेतु अध्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता, अध्यापकों की जवाबदेहिता के क्षेत्र तथा मुदालियर आयोग द्वारा शिक्षकों की दशा सुधारने हेतु दिए गए सुझावों पर प्रकाश डालिए?
शिक्षण एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें ज्ञान का ज्ञान से संबंध कराया जाता है। जिसका माध्यम अध्यापक होता है। अध्यापक शिक्षण प्रक्रिया की धूरी है जिसके चारों ओर शिक्षण चक्र घूमता है। अध्यापक को राष्ट्र निर्माता भी कहा जाता है। यह माना जाता है कि बच्चों के चरित्र निर्माण व दृष्टिकोण निर्माण में अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु को देवता मानकर सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। विद्वान गुरुओं के कारण भारत को विश्व का गुरुदेश कहा जाता था व विदेशी छात्र यहाँ अध्ययन करने आते थें।
वर्तमान में भारत जनसंख्या विस्फोट से ग्रस्त है। दूसरी ओर सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ मान्यताओं में भी बदलाव आ रहा है। विशाल देश की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योग्य अध्यापकों का होना अत्यन्त आवश्यक है। अतः अध्यापक शिक्षा का विकास किया गया है। प्रशिक्षण से अध्यापक में अपने व्यवसाय के प्रति रुचि व जागृति व व्यावसायिक दक्षता उत्पन्न होती है। साथ ही शिक्षा का दृष्टिकोण व चरित्र विकसित होता है। आधुनिक समय में शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अध्यापक शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। आधुनिक विश्व व उसके क्रियाकलापों की जानकारी प्रजातंत्र के लिए सुयोग्य नागरिकों का निर्माण अध्यापक का कर्त्तव्य है। उसे शिक्षा क्षेत्र के नवीनतम प्रयोगों की जानकारी होनी चाहिए। इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति व शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने के लिए अध्यापक शिक्षा आवश्यक है।
Contents
अध्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता
- व्यावसायिक जागरूकता व दक्षता प्राप्ति हेतु।
- मनोविज्ञान के ज्ञान की प्राप्ति हेतु, जिससे वे छात्रों की रुचि, स्तर व योग्यतानुसार व्यवहार कर सकें।
- विभिन्न शिक्षण विधियों, युक्तियों व प्राविधियों की जानकारी द्वारा व्यावसायिक कुशलता बढ़ाने के लिए।
- अध्यापक पाठ को योजनाबद्ध ढंग से प्रस्तुत करने में सफल हो जाता है।
- अध्यापक में अनुशासन का गुण विकसित होता है।
- वह राष्ट्रीय आवश्यकताओं व आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य कर सकता है।
- उसमें नेतृत्व का गुण विकसित होता है।
- उसमें छात्रों की उपलब्धियों का निर्धारण व मूल्यांकन करने की योग्यता का विकास होता है।
- रचनात्मकता व सृजनात्मकता का गुण विकसित होता है।
- सैद्धान्तिक व प्रयोगात्मक तत्वों का गुण विकसित होता है।
अध्यापक की जवाबदेहिता का क्षेत्र
- बालक की शैक्षिक उपलब्धि
- बालक की शिक्षा सम्बन्धि बातें
- मूल्यांकन
- समय-समय पर प्रगति
- खेल-कूद सम्बन्धी बातें
- विद्यालयी समय की सम्पूर्ण गतिविधियाँ
समाज में शिक्षक का उच्च स्थान होने पर भी वर्तमान में अध्यापकों का स्थान व दशा संतोषजनक नहीं है। मुद्रालियर आयोग ने इस संबंध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि, ‘हमें इस बात ने बहुत दुःख के साथ प्रभावित किया है कि अध्यापकों का सामाजिक स्तर, वेतन व अन्य दशाएं असंतोषजनक हैं। हमारा विचार है कि उनकी दशा अतीत की अपेक्षा अधिक गिरती जा रही है।’
मुदालियर आयोग द्वारा शिक्षकों की दशा सुधारने के सुझाव
अध्यापकों के कार्य व सेवा दशाओं के सम्बन्ध में मुद्रालियर आयोग ने निम्न सुझाव दिए हैं-
- अध्यापकों के चुनाव व नियुक्ति की प्रणाली सम्पूर्ण देश में एक समान हों।
- व्यक्तिगत प्रबंध व स्थानीय संस्थाओं द्वारा संचालित विद्यालयों में चुनाव के लिए एक समिति हो जिसमें प्रधानाचार्य भी सदस्य हो ।
- परिवीक्षा काल की अवधि एक वर्ष हो।
- समान योग्यता व समाज कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था हो ।
- त्रिलाभ योजना (पेंशन, प्रोवीडेन्ट फन्ड व इन्श्योरेन्स) को लागू किया जाना सदस्य हो ।
- कठिनाइयों का निवारण पंच मण्डल द्वारा किया जाए, शिक्षा निदेशक इसका चाहिए।
- अध्यापक संतानों हेतु निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था की जाए।
- अध्यापकों को समाज में उचित स्थान प्राप्त हो ।
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