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संस्मरण की अवधारणा स्पष्ट करते हुए संस्मरण और रेखाचित्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
संस्मरण- लेखक अपने पूर्व-अनुभव और स्मृति के आधार पर किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा घटना का आत्मीयता के साथ जब विवरण प्रस्तुत करता तो उसे संस्मरण कहा जाता है। संस्मरण से आशय है, पूर्व-घटनाओं का पूरी तरह संस्मरण लिपिबद्ध करना। मानव जीवन की कटु, तीखी एवं मधुर स्मृतियाँ अनुभूति और संवेदना का संसर्ग प्राप्त करके जब हृदय से निकलती है, तब वे संस्मरण का रूप धारण कर लेती हैं। संस्मरण आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य की एक उत्कृष्ट एवं ललित विधा है। संस्मरण प्राय: महापुरुषों से सम्बन्धित होते हैं। इसमें लेखक अपनी अपेक्षा उस व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना को अधिक महत्व देता है, जिसका वह संस्मरण लिखना चाहता है।
परिभाषा – डॉ गोविन्द त्रिगुणायत के अनुसार, “भावुक कलाकार जब अतीत की अनन्त स्मृतियों में कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल से अनुरंजित कर व्यंजनामूलक संकेत शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से रंगकर रोचक ढंग से यथार्थ में व्यक्त कर देता है, तब उसे संस्मरण कह सकते हैं।”
डॉ कृष्णदेव शर्मा के अनुसार “संस्मरण लिखने वाला शब्दों द्वारा जीवन की विविध घटनाओं, व्यक्तियों और दृश्यों का ऐसा सजीव चित्र उपस्थित करता है कि पाठक के सम्मुख वह व्यक्ति, वातावरण या प्रसंग साकार हो उठता है। गद्य में लिखे गये इसी चित्र को संस्मरण कहते है। “
संस्मरण विधा का विकास
इस विधा का प्रारम्भ सर्वप्रथम बाबू बालमुकुन्द गुप्त – ने 1907 में पं. प्रताप नारायण मिश्र के संस्मरण लिखकर किया, परन्तु इसका व्यवस्थित रूप सन् 1920 के पश्चात् माना जाता है। ‘माधुरी’ तथा ‘विशाल भारत’ पत्रिकाओं का संस्मरण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। डॉ. त्रिगुणायत के अनुसार इसके प्रथम लेखक सत्यदेव परिव्राजक हैं। सन् 1905 के आसपास इन्होंने अमेरिका की यात्रा की और यात्रा से सम्बन्धित संस्मरणों का सजीव वर्णन प्रारम्भ किया जो भाव तथा प्रभाव दोनों से परिपूर्ण हैं।
इस कालाकधि में कई विख्यात संस्मरण लेखक हुए। पं. सुन्दरलाल (बालकृष्ण भट्ट से सम्बन्धित संस्मरण ‘विशाल भारत’ में), श्रीनिवास शास्त्री (मेरी जीवन-स्मृतियाँ), पं. बनारसीदास चतुर्वेदी (श्रीधर पाठक विषयक संस्मरण), श्री अमृतलाल चतुर्वेदी ( मेरे प्रारम्भिक जीवन की स्मृतियाँ), पं. रामनारायण मिश्र (अनागरिक धर्मपाल), रूपनारायण पाण्डेय (द्विवेदी जी), गोपालराम गहमरी (साहित्यिक संस्मरण), राजा राधिकारमण सिंह (‘वे और हम’, ‘तब और अब’, ‘टूटा तारा’ आदि), बाबू श्यामसुन्दर दास (लाला भगवानदीन पर) आदि ने सुन्दर संस्मरण लिखे हैं।
पद्मसिंह, महादेवी वर्मा, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि ने भी उल्लेखनीय संस्मरण लिखे हैं। महादेवी वर्मा ने ‘पथ के साथी’ नामक संकलन में प्रसाद, पन्त, निराला, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान, सियारामशरण गुप्त आदि पर संस्मरण लिखे हैं।
आधुनिक काल में संस्मरण का विकास-क्रम और अधिक निखरा महादेवी जी के संस्मरण इस विधा की पर्याप्त निखार चुके थे। इसी क्रम में आचार्य चतुरसेन शास्त्री के संस्मरणों में भी पर्याप्त निखार आया। उन्होंने लोकमान्य तिलक से लेकर जवाहरलाल नेहरू, सरदार भगतसिंह, वैज्ञानिक डा. शान्तिस्वरूप भटनागर और साहित्यकार जैनेन्द्र पर भी संस्मरण लिखे। ये संस्मरण इतने सुन्दर और मार्मिक हैं कि इनके मध्य से शास्त्री जी अपने युगीन-जीवन का एक व्यापक एवं यथार्थ रूप प्रस्तुत करने में पूर्ण समर्थ हैं।
इसी क्रम में अन्य संस्मरण लेखक, जैसे- श्रीनारायण चतुर्वेदी (गुप्त का हास्य-व्यंग्य), कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (दीप जले शंख बजे), आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी (मृत्युञ्जय रवीन्द्रनाथ), रघुवीर सिंह (शेष स्मृतियाँ), शंकर व्यास (प्रसाद और उनके समकालीन), काका साहब कालेलकर (स्मरण यात्रा), माखनलाल चतुर्वेदी (समय के घाव), राहुल सांकृत्यायन (बचपन की स्मृतियाँ), जैनेन्द्र (वे और वे), पं. किशोरीदास बाजपेयी (बालकृष्ण भट्ट), देवेन्द्र सत्यार्थी (रेखाएँ बोल उठीं), भगवतशरण उपाध्याय (मैंने देखा), अज्ञेय (अरे यायावर रहेगा याद), उपेन्द्रनाथ अश्क (ज्यादा अपनी कम पराई) आदि भी उल्लेखनीय हैं।
संस्मरण एवं रेखाचित्र में अन्तर
संस्मरण और रेखाचित्र में अतीत की घटनाओं, स्मृतियों तथा भावानुभूतियों का ऐसा चित्रण रहता है कि उनमें वर्णित वस्तु, घटना एवं स्मृति के यथार्थ चित्र सामने उभर आयें और भावनामूलक तथा कल्पनामूलक रोचकता यथार्थता के साथ मिली-जुली रहे। दोनों में ही लेखक की व्यक्तिगत रुचियों की महत्ता होती है। फिर भी दोनों में अन्तर है, जैसें-
1. संस्मरण का सम्बन्ध देश, काल व पात्र तीनों में से है, जबकि रेखाचित्र का सम्बन्ध प्राय: देश व काल से अधिक रहता है।
2. संस्मरण की अपेक्षा रेखाचित्र सत्य के अधिक निकट होता है।
3. संस्मरण में रेखाचित्र की अपेक्षा आत्मनिष्ठा अधिक होती है। लेखक संस्मरण में अपने विषय में कुछ लिख सकता है, जबकि रेखा चित्रकार अपने विषय में मौन रहता है।
4. संस्मरण विवरणात्मक अधिक होते हैं, जबकि रेखाचित्र वर्णनात्मक अधिक होते हैं।
5. रेखाचित्र में व्यक्ति की प्रवृत्तिगत विशेषताएँ जितनी अधिक मात्रा में स्पष्ट होती हैं, उतनी संस्मरण में नहीं।
6. संस्मरण अधिकतर प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा प्रसिद्ध व्यक्तियों के सम्बन्ध में लिखे जाते हैं जबकि रेखाचित्र सामान्य व्यक्ति पर भी लिखा जा सकता है।
7. संस्मरण घटना-प्रधान होते हैं, जबकि रेखाचित्र व्यक्ति प्रधान होते हैं।
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