‘समस्यात्मक बालक’ से आप क्या समझते हैं ? आप निम्नलिखित बालकों के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करेंगे- (a) चोरी करने वाला बालक, (b) झूठ बोलने वाला बालक, (c) क्रोध करने वाला बालक।
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समस्यात्मक बालक (Problem Child)
‘समस्यात्मक बालक’ उस बालक को कहते हैं, जिसके व्यवहार में कोई ऐसी असामान्य बात होती है, जिसके कारण वह समस्या बन जाता है; जैसे-चोरी करना, झूठ बोलना आदि ।
‘समस्यात्मक बालक’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए वैलेन्टाइन ने लिखा है- “समस्यात्मक बालकों- शब्द का प्रयोग साधारणतः उन बालकों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिनका व्यवहार या व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रूप से असामान्य होता है। “
“The term ‘problem children’ is generally used to describe children whose behaviour of personality is in some way seriously abnormal.” -Valentine
समस्यात्मक बालकों के प्रकार (Types of Problem Children)
समस्यात्मक बालकों की सूची बहुत लम्बी है। इनमें से कुछ मुख्य प्रकार के बालक हैं चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, क्रोध करने वाले, एकान्त पसन्द करने वाले, मित्र बनाना पसन्द न करने वाले, आक्रमणकारी व्यवहार करने वाले, विद्यालय से भाग जाने वाले, भयभीत रहने वाले, छोटे बालकों को तंग करने वाले, गृह-कार्य न करने वाले, कक्षा में देर से आने वाले आदि-आदि। हम इनमें से प्रथम तीन का वर्णन कर रहे हैं—
(1) चोरी करने वाला बालक (Boy Who Steals)
चोरी करने के कारण (Causes of Stealing) – किसी-किसी बालक में चोरी करने की बुरी आदत होती है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं; यथा-
1. अन्य विधि से अपरिचित (No other Knowledge)- कोई बालक इसलिए चोरी करता है, क्योंकि उसे वांछित वस्तु को प्राप्त करने की और कोई विधि नहीं मालूम होती है।
2. माता-पिता की अवहेलना (Ignoring the Child)- स्टैंग (Strang) के अनुसार, जिस बालक को अपने माता-पिता के द्वारा अवहेलना की जाती है, वह उनको समाज में अपमानित करने के लिए चोरी करने लगता है।
3. आत्म-नियन्त्रण का अभाव (Lack of Self-Control)- बालक, आत्म-नियन्त्रण के अभाव के कारण चोरी करने लगता है। उसे जो भी वस्तु अच्छी लगती है, उसी को वह चुरा लेता है या चुराने का प्रयत्न करता है।
4. आवश्यकताओं की अपूर्ति (No Fulfilment of Needs) – जिस बालक की आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं हो पाती हैं, वह उनको चोरी करके पूर्ण करता है। यदि बालक को विद्यालय में खाने-पीने के लिए पैसे नहीं मिलते हैं, तो वह उनको घर से चुरा ले जाता है।
5. अज्ञानता (Ignorance) – छोटा बालक, अज्ञानता के कारण चोरी करता है। वह यह नहीं जानता है कि जो वस्तु जिसके पास है, उसी का उस पर उचित अधिकार है।
6. उच्च स्थिति की इच्छा (Will of High Position) – किसी बड़े बालक में अपने समूह में अपनी उच्च स्थिति व्यक्त करने की प्रबल लालसा होती है। अपनी इस लालसा को पूरा करने के लिए वह धन, वस्त्र और अन्य वस्तुओं की चोरी करता है।
7. साहस दिखाने की भावना ( To Show Adventure)- किसी बालक में दूसरे बालकों को यह दिखाने की प्रबल भावना होती है कि वह उनसे अधिक साहसी है। वह इस बात का प्रमाण चोरी करके देता है।
8. चोरी की लत (Habit of Stealing)- किसी-किसी बालक में चोरी की लत (Kleptomania) होती है। वह अकारण ही विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की चोरी करता है। स्ट्रैंग (Strang) ने अपने एक बालक का उल्लेख किया है, जिसने 23 पेटियों (Belts) की चोरी की थी।
उपचार (Treatment) – बालक की चोरी की आदत को छुड़ाने के लिए निम्नांकित उपायों को काम में लाया जा सकता है-
- बालक में आत्म-नियन्त्रण की भावना का विकास करना चाहिए।”
- बालक की उसके माता-पिता द्वारा अवहेलना नहीं की जानी चाहिए।
- बालक को विद्यालय में व्यय करने के लिए कुछ धन अवश्य देना चाहिए।
- बालक को यह शिक्षा देनी चाहिए कि जो वस्तु जिसकी है, उस पर उसी का अधिकार है। दूसरे शब्दों में, उसको अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करने की शिक्षा देनी चाहिए।
- बालक पर चोरी का दोष कभी नहीं लगाना चाहिए।
- बालक को उचित और अनुचित कार्यों में अन्तर बताना चाहिए ।
- बालक की सभी उचित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
- बालक को खेलकूद और अन्य कार्यों में अपनी साहस की भावना को व्यक्त करने का अवसर देना चाहिए।
(II) झूठ बोलने वाला बालक (Boy Who Tells Lies)
झूठ बोलने के कारण (Causes of Telling Lie) – बालक द्वारा झूठ बोले जाने के अनेक कारण हो सकते हैं; यथा-
1. द्विविधा (Fix) – बालक कभी-कभी किसी बात को स्पष्ट रूप से न समझ सकने के कारण द्विविधा में पड़ जाता है और अनायास झूठ बोल जाता है।
2. प्रतिशोध (Revenge) – बालक अपने बैरी से बदला लेने के लिए उसके बारे में झूठी बातें फैलाकर उसको बदनाम करने की चेष्टा करता है।
3. वफादारी (Faithfulness) – कोई बालक अपने मित्र, समूह आदि के प्रति इतना वफादार होता है कि वह झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नहीं करता है। यदि उसके मित्र की तोड़-फोड़ करने की प्रधानाचार्य से शिकायत होती है, तो वह इस बात की झूठी गवाही देता है कि उसका मित्र तोड़-फोड़ के स्थान पर मौजूद नहीं था।
4. मनोविनोद (Recreation)- बालक कभी-कभी केवल मनोविनोद या मजा लेने के लिए झूठ बोलता है।
5. भय (Fear) – स्ट्रैंग (Strang) के अनुसार- “भय अनेक बालकों की झूठी बातों का मूल कारण होता है।” (“Fear lies at the basis of many children’s falsehoods.”)
भय, जिसके कारण बालक झूठ बोलता है, अनेक प्रकार का हो सकता है; जैसे-कठोर दण्ड का भय, कक्षा या समूह में प्रतिष्ठा खोने का भय, किसी पद से वंचित किये जाने का भय इत्यादि ।
6. मिथ्याभिमान (False Prestige)- किसी बालक में मिथ्याभिमान की भावना बहुत बलवती होती है। अतः वह उसे व्यक्त और सन्तुष्ट करने के लिए झूठ बोलता है। वह अपने साथियों को अपने बारे में ऐसी-ऐसी बातें सुनाता है, जो उसने कभी नहीं की हैं।
7. स्वार्थ (Own Interest)- बालक कभी-कभी अपने स्वार्थों के कारण झूठ बोलता है। यदि वह गृह-कार्य करके नहीं लाया है, तो वह दण्ड से बचने के लिए कह देता है कि उसे अकस्मात् पेचिश हो गई थी।
उपचार (Treatment) – बालक की झूठ बोलने की आदत को छुड़ाने के लिए निम्नांकित उपायों को काम में लाया जा सकता है-
- बालक में नैतिक साहस की भावना का अधिकतम विकास करने का प्रयत्न करना चाहिए।
- बालक से बात न करके, उसकी अवहेलना करके, और उसके प्रति उदासीन रह कर उसे अप्रत्यक्ष दण्ड देना चाहिए।
- बालक से उसका अपराध स्वीकार करवा कर उससे फिर कभी झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा करवानी चाहिए।
- सत्य बोलने वाले बालक की निर्भयता और नैतिक साहस की प्रशंसा करनी चाहिए।
- बालकों को यह बताना चाहिए कि झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं होता है।
- बालक में सोच-विचार कर बोलने की आदत का निर्माण करना चाहिए।
- बालक को ऐसी संगति और वातावरण में रखना चाहिए, जिससे उसे झूठ बोलने का अवसर न मिले।
- बालक की आत्म-सम्मान की भावना को इतना प्रबल बना देना चाहिए कि वह झूठ बोलने के कारण अपना अपमान सहन न कर सके।
(III) क्रोध करने वाला बालक (Boy Who Expresses Anger)
क्रोध व आक्रमणकारी व्यवहार (Anger & Aggressive Behaviour) – साधारणतः क्रोध और आक्रमणकारी व्यवहार का साथ होता है। क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार- “क्रोध आक्रमणकारी व्यवहार द्वारा व्यक्त किया जाता है।” (“Anger is expressed through aggressive behaviour.”)
क्रुद्ध बालक के आक्रमणकारी व्यवहार के कुछ मुख्य स्वरूप हैं—मारना, काटना, नोंचना, चिल्लाना, खरोंचना, तोड़-फोड़ करना, वस्तुओं को इधर-उधर फेंकना, गाली देना, व्यंग्य करना, स्वयं अपने शरीर को किसी प्रकार की क्षति पहुँचाना इत्यादि।
क्रोध आने के कारण (Causes of Anger)- बालक को क्रोध आने के अनेक कारण हो सकते हैं; यथा—
- बालक में किसी के प्रति ईर्ष्या होना ।
- बालक को किसी विशेष स्थान को जाने से रोकना ।
- बालक का किसी बात में निराश होना ।
- बालक का किसी कार्य को करने में असमर्थ होना ।
- बालक पर अपने माता या पिता के क्रोधी स्वभाव का प्रभाव पड़ना।
- बालक के किसी उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा पड़ना ।
- बालक के खेल, कार्य या इच्छा में विघ्न पड़ना ।
- बालक की किसी वस्तु का छीन लिया जाना ।
- बालक का अस्वस्थ या रोगग्रस्त होना ।
- बालक के कार्य, व्यवहार आदि में निरन्तर दोष निकाला जाना।
उपचार (Treatment) – बालक को क्रोध के दुर्गुण से मुक्त करने के लिए निम्नलिखित उपायों का प्रयोग किया जा सकता है-
- बालक को जिस बात पर क्रोध आए, उस पर से उसके ध्यान को हटा देना चाहिए।
- बालक को केवल अनुचित बातों के प्रति क्रोध व्यक्त करने का परामर्श देना चाहिए।
- बालक के क्रोध को दण्ड और कठोरता का प्रयोग करके दमन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उसका क्रोध और बढ़ता है।
- बालक की ईर्ष्या की भावना को सहयोग की भावना में बदलने का प्रयास करना चाहिए।
- जब बालक का क्रोध शान्त हो जाए, तब उससे तर्क करके उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि उसका क्रोध अनुचित था।
- बालक के रोग का उपचार और स्वास्थ्य में सुधार करना चाहिए।
- बालक को अपने क्रोध पर नियन्त्रण करने की शिक्षा देनी चाहिए।
- बालक के क्रोध को क्रोध व्यक्त करके नहीं, वरन् शान्ति से शान्त करना चाहिए।
- बालक के खेल, कार्य आदि में बिना आवश्यकता के बाधा नहीं डालनी चाहिए ।
- बालक के कार्य, व्यवहार आदि में अकारण दोष नहीं निकालना चाहिए।
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