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समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi
समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि पर टिप्पणी लिखिये।

समस्या समाधान विधि :- समस्या समाधान विधि का लंबे समय तक गणित और विज्ञान से जुड़ाव रहा। किंतु आज इसे सामाजिक अध्ययन की प्रमुख विधियों में से एक माना जाता है। इसकी एक विधि की महत्ता को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक समाज में बच्चों के लिए समस्या समाधान निश्चित रूप से आवश्यक है।

समस्या समाधान को लेकर अनेक प्रकार के शोध मनोवैज्ञानियों द्वारा किए गए है। चूंकि इनमें से अधिकांश शोध प्रयोगशाला की स्थितियों में किए गए हैं और इनसे संबंधित प्रतिवेदन/शोध पत्र इतनी तकनीकी भाषा में लिखे गए हैं कि शिक्षकों को उन्हें समझने में काफी परेशानी आती है। आसान शब्दों में, समस्या समाधान को हम प्रगतिशील कदमों की एक श्रृंखला मान सकते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा तव प्रयोग किए जाते हैं जब वह किसी समस्या को हल करने के क्रम में हो। समस्या समाधान कोई एक कार्य न होकर निम्नलिखित कई कार्यों का समावेश है।

  1. पहला स्तर जब व्यक्ति किसी समस्या जिसका समाधान आवश्यक है से रूबरू होता है।
  2. आंकड़ा संग्रहण स्तरं जब व्यक्ति समस्या को बेहतर समझने की कोशिश करता है और समाधान के लिए सामग्री जुटाता है।
  3. इस स्तर पर व्यक्ति कुछ संभावित हल तैयार करता है।
  4. इस स्तर पर संभावित उत्तरों को जांचा जाता है।

सामाजिक अध्ययन की प्रायः सभी पाठ्यपुस्तकें समस्या समाधान विधि के रूप में उपरोक्त स्तरों के प्रयोग का समर्थन करती है। यह उल्लेखनीय है कि ये सभी स्तर जॉन ड्यूवी द्वारा आलोचनात्मक चिंतन के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि डिवी के द्वारा आलोचनात्मक चिंता के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि ड्यूवी का यह भी कहना है ‘चिंतन बुद्धिमत्तापूर्ण अधिगम का माध्यम है ऐसा अधिगम जिसमें मस्तिष्क शामिल भी रहता है और समृद्ध भी होता है।”

शिक्षकों द्वारा समस्या समाधान का प्रयोग

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समस्या समाधान महत्वपूर्ण है अतः एक अनुमान लगा सकते हैं कि शिक्षक इसे एक प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग करते होंगे। यद्यपि वास्तविक स्थिति हमें निराश ही करती है। कई शोध यह दर्शाते हैं कि शिक्षक सामाजिक अध्ययन में समस्या समाधान विधि को उचित महत्व नहीं देते और प्रयोग में नहीं लाते। अधिकांश शिक्षक बच्चों को तथ्यों और अवधारणाओं से परिचित करवाने तक ही सीमित रहते हैं। कुछ इससे आगे बढ़कर ‘सही’ अभिवृत्ति विकसित करने पर जोर देते हैं। ऐसी कोई गतिविधि, जिसमें बच्चे स्वयं सोचकर समाधान करके सीख सकें, व्यापक रूप से अनुपलब्ध है।

सुझाव

1. सबसे पहले शिक्षकों को सामाजिक अध्ययन को किसी पाठ्यपुस्तक के कुछ पन्नों के सीमित दृष्टिकोण से छूटकर एक व्यापक विषय के रूप में देखना होगा। यह दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है।

2. शिक्षकों की कार्ययोजना भी इस प्रकार बनानी चाहिए कि बच्चे समस्या से परिमित हो सकें और शिक्षक के मार्गदर्शन में उसका हल भी खोज सकें।

3. शिक्षक की भूमिका बच्चों को अलग-अलग प्रकार की पुस्तकें और स्त्रोंत प्रयोग करने में प्रोत्साहित करने की होनी चाहिए। समस्या समाधान बच्चों की वस्तुओं में तुलना में करने, संबंधों को खोजने और अध्ययन करने के लिए अवसर प्रदान करता है।

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Anjali Yadav

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