साझेदारी संलेख से क्या आशय है? साझेदारी संलेख की विभिन्न शर्तें बताइए। What is meant by partnership deed? State the various conditions of partnership deed.
साझेदारी संलेख अथवा संविदा (Partnership Deed or Agreement)- ऊपर बताया गया है कि साझेदारी की स्थापना अनुबन्ध अथवा संविदा द्वारा होती है। अनुबन्ध मौखिक अथवा लिखित किसी भी रूप में हो सकता है। प्राय: साझेदार लिखित अनुबन्ध को ही अधिक उचित तथा आवश्यक समझते हैं क्योंकि इसके आधार पर भविष्य में होने वाले किसी भी विवाद को आसानी से सुलझाया जा सकता है। साझेदारों के इस लिखित अनुबन्ध को ही, जिसमें साझे सम्बन्धी सभी शर्तों तथा अन्य आवश्यक खातों का उल्लेख होता है, साझेदारी उल्लेख अथवा राजीनामा कहते हैं। साझेदारी संलेख में व्यापार के आकार और प्रकार के अनुसार प्रत्येक शर्तों का उल्लेख किया जाता है। लेकिन इस अध्याय में केवल उन्हीं शर्तों का उल्लेख या वर्णन किया जायेगा, जो बहीखाता तथा लेखाकर्म से सम्बन्धित है। लेखाकर्म की दृष्टि से प्रत्येक साझेदारी संलेख में निम्न शर्तों का होना आवश्यक है-
1. पूँजी (Capital) – प्रत्येक साझेदार द्वारा फर्म में लगाई जाने वाली पूँजी की मात्रा, पुँजी नकद दी जायेगी अथवा किसी सम्पत्ति के रूप में अथवा नकद तथा सम्पत्ति दोनों के रूप में।
2. लाभ-हानि वितरण अनुपात (Distribution Ratio of Profit & Loss) – साझेदारों का लाभ-हानि वितरण करने का क्या अनुपात होगा) यह निम्न में से किसी एक ढंग से व्यक्त किया जा सकता है-
- 3:2:1
- 1/2, 1/3, 1/6
- 50 पैसे: 33 पैसे : 17 पैसे
- 50% : 33.33% : 16.67%
3. आहरण (Drawings) – साझेदार फर्म से अधिक से अधिक कितना आरहण कर सकेंगे। प्रायः एक सीमा निश्चित कर दी जाती हैं जिससे अधिक रकम साझेदार अपने निजी व्यय के लिये नहीं निकाल सकता।
4. पूँजी और आहरण पर ब्याज (Interest on Capital & Drawings) – साझेदारों की उनकी पूँजी पर कोई ब्याज दिया जायेगा अथवा नहीं यदि दिया जायेगा तो उसका प्रतिशत। इसी प्रकार आहरण पर उनसे ब्याज लिया जायेगा अथवा नहीं, यदि लिया जायेगा, तो उनका प्रतिशत।
5. साझेदारों का वेतन अथवा पारिश्रमिक (Salary of Partners) – साझेदारों को मिलने वाले वेतन अथवा पारिश्रमिक का उल्लेख भी साझेदारी संलेख में अवश्य किया जाना चाहिये।
6. पूँजी खाते (Capital Account) – साझेदारों के पूँजी खाते स्थायी होंगे अथवा परिवर्तनशील स्थायी पूँजी खातों में केवल प्रारम्भिक पूँजी की रकम ही लिखी जाती है। साझेदारों – के फर्म के साथ होने वाले अन्य लेन-देनों (जैसे- ब्याज, वेतन, लाभ, आहरण आदि) का लेखा उनके चालू खातों में किया जाता है। इस प्रकार साझेदारों की पूँजी स्थायी रहती है। परिवर्तनशील पूँजी खातों के अनुसार, सभी लेन-देनों का लेखा पूँजी खातों में ही किया जाता है, जिसके फलस्वरूप पूँजी खातों का शेष प्रतिवर्ष परिवर्तित होता रहता है।
7. फर्म का हिसाब-किताब (Method of Keeping Accounts of Firm) – फर्म का हिसाब-किताब किस प्रणाली के अनुसार रखा जायेगा? अन्तिम खाते कब और कैसे तैयार किये जायेंगे तथा उनका अंकेक्षण कराया जायेगा अथवा नहीं।
8. ख्याति का मूल्यांकन (Valuation of Goodwill) – नये साझेदार के प्रवेश, किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर या मृत्यु तथा अन्य अवसरों का ख्याति का मूल्यांकन किस प्रकार किया जायेगा ?
9. साझेदारी की अवधि (Duration of Partnership) – साझेदारी संलेख में साझेदारी की अवधि का उल्लेख भी अवश्य किया जाना चाहिये। अवधि के अनुसार, साझेदारी एक निश्चित समय के लिये, एक निश्चित उपक्रम के लिये अथवा ऐच्छिक हो सकती है।
10. साझेदार की मृत्यु अथवा अवकाश ग्रहण (Dead or Retirement of Partner) – किसी साझेदार की मृत्यु या अवकाश ग्रहण करने पर उसकी देय राशि निकालने तथा उसके भुगतान की क्या विधि होगी ?
11. किसी साझेदार का दिवालिया होना (Insolvency of any Partner ) – किसी साझेदार का दिवालिया होने पर उसकी पूँजी की कमी अथवा हानि की पूर्ति शेष साझेदारों द्वारा किस अनुपात में की जायेगी ? गार्नर बनाम मरे का सिद्धान्त लागू होगा या नहीं।
12. ऋण (Debt)- फर्म द्वारा साझेदारों से ऋण लेने पर ब्याज की क्या दर होगी ? साझेदार फर्म से ऋण ले सकेंगे या नहीं। यदि ले सकेंगे तो ब्याज की दर क्या होगी ?
13. साझेदारों के आपसी विवाद (Disputes of Partners) – साझेदारों में होने वाले पारस्परिक विवादों का फैसला किस विधि से किया जायेगा।
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