सामाजिक न्याय की अवधारणा का विकास करने हेतु अध्यापक कथन को तैयार कीजिये।
न्याय की अवधारणा बहुत ही प्राचीन है। न्याय की अवधारणा राजनीतिक सिद्धान्त में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और इसका सम्बन्ध व प्रभाव मनुष्य जीवन के प्रत्येक पक्ष से है। सदियों से मनुष्य न्याय प्राप्त करने के प्रयत्नशील रहा है और यदि उसको समाज में उचित न्याय नहीं मिलता तो भगवान से सच्चे न्याय की प्रार्थना करता है । न्याय ही वह जीवन का आधार है जो मनुष्य को सत्य, कर्म, अहिंसा और ईमानदारी की राह पर ले जाता है। न्यायिक व्यक्ति ही दूसरों के साथ सच्चाई और ईमानदारी का पालन करता है। अत्याचार से ग्रस्त व्यक्ति को न्याय द्वारा ही छुटकारा मिलता है। न्याय की अवधारणा का अध्ययन करने का मुख्य उदेश्य न्याय की महत्वता व कमियों पर विचार करना व सुधार के उपाए बताना है। क्योंकि न्याय एक देश की सर्वोतम व्यवस्था है जो कि समाज की भावना से जुडी हुई है जैसा की- न्याय ही अराजकता, कलह, विवाद, अशांति भ्रष्टाचार और शोषण से मुक्ति देता है। न्याय की भावना मानव जीवन और सामाजिक व्यवस्था की आधारशिला है। न्याय ही प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के प्रति अधिकारों व स्वतन्त्रताओं का लाभ उठाने का माहौल बनाता है । यदि किसी स्थान की न्यायिक व्यवस्था उत्तम होती है तो वहां का कण-कण विकास करता है। न्याय की भावना सामाजिक सम्बन्धी और निजि स्वार्थो के बीच एक उचित संतुलन बनाती है। जिससे व्यक्ति की सामाजिक व्यवस्था एक नैतिक आधार लेकर मजबूत बनती जाती है। न्याय के बिना किसी का जीवन और सम्पत्ति भी सुरक्षित नहीं । न्याय के बिना एक सुदृड़ समाज और राज्य की कामना भी नहीं की जा सकती । न्याय और न्यायिक व्यवस्था के तो समाज में एक जंगल जैसा माहौल बन जाएगा । न्याय के अनेक रूपों में से सामाजिक न्याय काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है । सामाजिक न्याय व्यक्ति के जीवन की एक ऐसी कड़ी है जिसके बिना व्यक्ति का कोई अस्तित्व भी नहीं । सामाजिक न्याय की अवधारणा का सम्बन्ध आर्थिक न्याय के साथ भी जुड़ा है।
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