सामाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के दोष तथा प्रभावी बनाने हेतु किन सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए।
सामाजीकृत अभिव्यक्ति-पद्धति में गुणों के साथ ही साथ निम्नांकित दोष भी पाए जाते है:-
- पद्धति शिक्षक के महत्व को कुछ कम कर देती है।
- इस पद्धति में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान अध्यापक द्वारा बनायी गयी योजना, पाठ को खण्डों में विभाजित करना, छात्रों का उचित निर्देशन तथा समापन भाषण को प्राप्त है। यदि अध्यापक इन कार्यों को सरलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर पाता है तो यह सम्भव है कि पद्धति अपने उद्देश्यों को ही प्राप्त न कर पाएं।
- कभी-कभी कक्षा में व्यर्थ का वाद-विवाद होने का भय रहता है। छात्र मूल विषय को त्याग करके इधर-उधर का वाद-विवाद कर समय नष्ट कर सकते है।
- इसके संचालन में सभी छात्र समान रूप से भाग नहीं लेते है। केवल कुछेक छात्र ही एकाधिकार जमाए रहते हैं।
कुछ सुझाव
पद्धति को अपनाते समय निम्नांकित सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए-
- समूह-निर्माण के समय छात्रों का मानसिक स्तर सदैव ध्यान में रखा जाएं। इसके अलावा छात्रों की आर्थिक व सामाजिक अवस्थाएँ तथा व्यक्तिगत विभिन्नताओं का भी ध्यान रखा जाएं।
- सभी छात्रों को कक्षा-कार्य में समान रूप से भाग लेने के अवसर दिए जायं।
- आवश्यकता पड़ने पर इस पद्धति के साथ ही साथ अन्य पद्धतियों को भी अपनाया जाएं। अध्यापक को एक सी पद्धति से नहीं चिपका रहना चाहिए।
- कमजोर तथा पिछड़े छात्रों को विशेष सुविधाएं प्रदान की जायं। लज्जालु छात्रों की मुख्य भूमिका देकर उनकी लज्जालु प्रवृत्ति को छुड़ाया जाएं।
- व्यर्थ एवं निरर्थक वाद-विवाद को हतोत्साहित किया जाएं।
- इसका प्रयोग यथायोग्य अध्यापकों द्वारा ही किया जाएं।
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