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सुमित्रानन्दन पन्त की काव्य भाषा की समीक्षा

सुमित्रानन्दन पन्त की काव्य भाषा की समीक्षा
सुमित्रानन्दन पन्त की काव्य भाषा की समीक्षा
सुमित्रानन्दन पन्त की काव्य भाषा की समीक्षा कीजिए? 

महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त जी अपनी सुकुमार एवं कोमल रचनाओं के आधार पर ‘कोमलकल्पना’ के सिद्धहस्त कवि कहलाये जाते हैं। सच पूछा जाय तो कल्पना वह शक्ति हैं जो काव्य-सरिता को रागात्मक प्रवाह प्रदान करती है, उसे बुद्धि भँवरों से सुसज्जित करके उसमें गम्भीरता लाती हैं। अपने कुलवर्ती काव्य कुंज को हरा भरा बनाकर आखिल विश्व के सौन्दर्य को यहाँ उपस्थित करती है और अन्त में रसानुभूति के अथाह सागर में ले जाकर उसका रस के साथ मधुर संगम करा देती है।

कविवर पन्त जी की कल्पना भी ऐसी ही है। उनकी यह कल्पना कोमलता का रीना झीना सहज सच्चिकरण आवरण पहनाकर सर्वत्र प्रस्फुटित हुई है। पन्त जी के काव्य-चेतना के निर्माण में प्रकृति का विशेष प्रभाव है। पन्त जी ने तो स्वयं ही यह स्वीकार किया है कि उनको काव्य-रचना की प्रेरणा प्रकृति से ही प्राप्त हुई है। उन्होंने स्वीकार किया है-“कविता की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति-निरीक्षण से मिली है, जिसका श्रेय मेरी जन्मभूमि कॅमचल प्रदेश को है।” यही तथ्य वे ‘रश्मि-बन्ध’ (परिदर्शन) में भी स्वीकार करते हैं।

कविवर सुमित्रा नन्दन पन्त की भाषा में कोमलता है। उसमें कलात्मकमता का आग्रह है और भावों का भव्य सौन्दर्य तथा ध्वनि की परख उन्हें शब्दों में झंकार उत्पन्न करने में सदा सहायता देती है। आधुनिक हिन्दी काव्य की खड़ी बोली को भी पन्त जी ब्रजभाषा की-सी मधुरता प्रदान करने में सफल हुए हैं। विचारपक्ष को पन्त जी कलापक्ष से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, इसी कारण आगे चलकर पन्त जी ने शब्द-कौशल की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया। पन्त की काव्य शैली चित्रात्मक अधिक है।

किया गया पन्त की कविता ‘ग्राम्या’ में शब्द-चित्रों की अधिकता है। चमारों का नाथ, बूढ़ा, ग्राम-नारी, गाँव के बच्चे आदि का चित्र पन्त जी द्वारा अत्यन्त कुशलतापूर्वक प्रस्तुत है। गीति-तत्व पन्त की काव्य शैली का प्रधान गुण है।

1. आलम्बन रुप- आलम्बन रुप में प्रकृति कवि के लिए साधन न होकर साध्य बन जाती है। प्रबन्ध काव्य में प्रकृति के संश्लिष्ट चित्र के लिए अधिक अवकाश रहता है किन्तु गीतिकाव्य में हमें प्रकृति का समग्र रुप एक साथ नहीं मिल पाता। पन्तजी ने गीतों की रचना की है। अतः उनके गीतों में प्रकृति के अनेक तंत्रों के स्पर्श तक एक साथ केन्द्रित रुप में अभिव्यक्त नहीं हो पाये। इस प्रणाली के अन्तर्गत ‘संश्लिष्ट चित्रण प्रणाली ‘ और ‘नाम परिगणन शैली’ दोनों रुप दृटव्य हैं। ‘नाम परिगणन शैली’ के आधार पर प्रकृति का आलम्बन रुप ‘कलरव’, ‘ग्राम्या’, ग्रामश्री’ आदि कविताओं में उभरा है।

2. उद्दीपन-रूप- जहाँ प्रकृति मानव भावनाओं का उद्दीपन करती रहती है, वहाँ प्रकृति का यही रुप होता है। इसमें सुखद क्षणों (संयोगादि) में और दुखद क्षणों (वियोगादि ) में कवि भावों का उद्दीपन करने के लिए प्रकृति का उपयोग करता है। पन्त जी ने दोनों प्रणालियों को अपनाया है। वियोग के क्षणों में प्रकृति का उद्दीपन रुप ‘ग्रंथि’, ‘आँसू’, ‘उच्छास’ आदि कविताओं में उभरा है।

3. संवेदनात्मक रुप- यह दो प्रकार का होता है-(क) जहाँ प्रकृति मानव के उल्लास के साथ आनन्दित दिखायी जाती है। (ख) जहाँ प्रकृति भी दुखी मानव के साथ आँसू बहाती है। पन्त जी ने दोनों के ही चित्र उभारे हैं।

4. रहस्यात्मक रूप में- प्रकृति में ईश्वर की व्यापित है, क्योकि ईश्वर समस्त जगत में व्याप्त है। अतः प्रकृति के परम तत्व का आभास करते ही कवि रहस्यवादी हो जाता है।

5. प्रतीकात्मक रुप- वर्तमान काव्य में प्रकृति का प्रयोग प्रतीको के रूप में भी किया है। प्रायः प्रकृति के उपकरण विविध भावों, रुपों एवं क्रियाओं के प्रतीक बनकर आधुनिक युग के काव्य में उभरे हैं।

6. अलंकार के रूप में- प्रकृति के विभिन्न उपकरणों का प्रयोग उपमान के रूप में पर्याप्त रुप से होता रहा है। पन्त जी ने उस क्रम में स्वाभाविक रूप से उसका प्रयोग किया है। ‘मधुबाला की सी गुंजार’, वारि-बिम्ब सा विकल हृदय’, ‘इन्द्रचाप सा वह बचपन’, ‘बालिका का सा मृदु स्वर’, ‘तरल तरंगों की सी लीला’ जैसे प्रयोग दृष्टव्य हैं।

7. मानवीकरण के रूप में- प्रकृति का मानवीकरण छायावाद की एक महत्वपूर्ण विशिष्टता है। प्रकृति पर चेतना का आरोप ही मानवीकरण है। पन्त के काव्य में यह प्रयोग प्रचुर मात्रा में मिलता है। प्रकृति की गोद में जन्मे-पन्त, प्रकृति के कवि के रुप में विख्यात हैं और इन्होंने अपने भाव चित्रों की साज-सज्जा, उन्मुक्त प्रकृति के सहज सुकुमार उपकरणों एवं रंगों से की है। इसके अतिरिक्त संक्षेप में पन्त जी की कोमल-कल्पना का स्वरुप निम्न शीर्षकों के आधार पर दिया जा सकता है-

  1. नारी के सौन्दर्य निरुपण में कोमलता।
  2. प्रकृति-चित्रण में कोमलता।
  3. वस्तु-वर्णन में कोमलता।
  4. भाव निरुपण में कोमलता।
  5. जीवन के विभिन्न दशाओं के चित्रों में कोमलता।
  6. भाषा एवं शब्द चयन में कोमलता।
  7. अलंकार-योजना में कोमलता।
  8. छन्द योजना में कोमलता।

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Anjali Yadav

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