अदत्त विक्रेता से क्या आशय है? अदत्त विक्रेता को प्राप्त उपचारों का वर्णन कीजिए।
अदत्त विक्रेता – अदत्त विक्रेता से आशय उस विक्रेता से है जिसे बेचे गये माल के – सम्बन्ध में पूर्ण या आंशिक भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है। भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम 1930 की धारा 45 के अनुसार, ‘अदत्त विक्रेता का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है-
(अ) जब उसे माल का सम्पूर्ण मूल्य नहीं चुकाया गया हो अथवा प्रस्तुत नहीं किया गया हो।
(ब) जब उसे कोई विनिमय-पत्र अथवा कोई अन्य विनिमय साध्य विलेख प्राप्त हुआ हो और वह अप्रतिष्ठित हो गया हो।
(स) एक विक्रेता जिसे माल का केवल आंशिक भुगतान मिला है वह भी अदत्त विक्रेता कहलाता है।
इस सम्बन्ध में कोई भी व्यक्ति जो कि विक्रेता की स्थिति में हो, विक्रेता कहलाता है जैसे विक्रेता का एजेण्ट।
उदाहरण– ‘राम’ श्याम से एक मोटरकार इस शर्त पर खरीदता है कि वह उसका आधा मूल्य नकद भुगतान करेगा और शेष आधा चार माह पश्चात भुगतान करेगा। ऐसी स्थिति में श्याम एक अदत्त विक्रेता होगा, क्योंकि उसकी मोटरकार का आधा मूल्य अभी बकाया (अदत्त) है।
(i) अदत्त विक्रेता के अधिकार- वस्तु विक्रय अधिनियम के अनुसार माल के अदत्त विक्रेता के निम्न दो प्रकार के अधिकार होते हैं –
- माल के विरुद्ध अधिकार।
- क्रेता के विरुद्ध व्यक्तिगत रूप में अधिकार।
माल के विरुद्ध अधिकार – यदि माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तान्तरित हो गया हो तो अदत्त विक्रेता को माल के सम्बन्ध में निम्न अधिकार प्राप्त हैं –
1. माल का ग्रहणाधिकार- ग्रहणाधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के माल को तब तक रोककर रख सकता है जब तक उसकी किन्हीं निश्चित माँगों को पूरा नहीं कर दिया जाता है। एक अदत्त विक्रेता कुछ परिस्थितियों में विक्रय किये गये माल को तब तक रोककर अपने अधिकार में रख सकता है तब तक कि उसे माल के मूल्य का भुगतान न कर दिया जाय। एक अदत्त विक्रेता को निम्न परिस्थितियों में ही ग्रहणाधिकार प्राप्त होता है-
- माल उधार की शर्त पर नहीं बेचा गया हो।
- उधार की अवधि समाप्त हो गयी हो।
- जब क्रेता को न्यायालय के द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया गया हो।
धारा 48 के अनुसार, जब अदत्त विक्रेता ने माल का आंशिक सुपुर्दगी दी है, तो यह शेष माल पर पूर्वाधिकार का प्रयोग तब तक कर सकता है, जब तक कि उस तरह की आंशिक सुपुर्दगी ऐसी परिस्थितियों में न दी गयी हो जिससे यह मालूम पड़ता है कि विक्रेता ने अपने पूर्वाधिकार का परित्याग करने का अनुबन्ध किया हो।
धारा 49 (1) के अनुसार, निम्नलिखित परिस्थितियों में अदत्त विक्रेता अपने पूर्वाधिकार खो देता है-
- जब विक्रेता किसी माल की सुपुर्दगी किसी वाहक को क्रेता तक पहुँचाने के लिए देता है, परन्तु माल व्यवस्थापन का अधिकार अपने हाथ में सुरक्षित नहीं रखता है।
- जब केता अथवा उसका प्रतिनिधि कानूनी ढंग से माल पर अधिकार प्राप्त कर लेता है।
- जब विक्रेता पूर्वाधिकार का परित्याग कर देता है।
- यदि क्रेता के द्वारा भुगतान प्रस्तुत किया जाता है, तो विक्रेता का पूर्वाधिकार प्रयोग करने का अधिकार समाप्त हो जाता है।
2. माल को मार्ग में रोकने का अधिकार-धारा 50 के अनुसार, जब माल का क्रेता न्यायालय के द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया गया है, तो उस अदत्त विक्रेता को, जिसने माल का अधिकार क्रेता को दे दिया है, माल को मार्ग में रोकने का अधिकार प्राप्त होता है।
धारा 51 के अनुसार, केवल निम्न परिस्थितियों में माल को मार्ग में रोका जा सकता हैं-
- जब विक्रेता माल का अधिकार क्रेता को दे चुका हो किन्तु उसने अपने माल का मूल्य प्राप्त न किया हो।
- जब विक्रेता ने एक वाहक को माल सौंपकर अपना अधिकार समाप्त कर दिया हो।
- जब माल अभी मार्ग में हो अर्थात् माल न तो क्रेता को सौंपा गया हो और न उसके किसी एजेन्ट को।
- जब विक्रेता ने किसी अन्य अनुबन्ध के अन्तर्गत माल को मार्ग में रोकने के अपने अधिकार को न छोड़ दिया हो।
- जब क्रेता दिवालिया हो चुका हो।
धारा 52 के अनुसार, प्रदत्त विक्रेता माल को वास्तविक रूप में रोक सकता है या वाहक को उपयुक्त सूचना देकर रोक सकता है।
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अदत्त विक्रेता किन परिस्थितियों में माल का पुनः विक्रय कर सकता है?
धारा 54 के अनुसार एक अदत्त विक्रेता निम्नलिखित परिस्थितियों में माल की पुन: बिक्री कर सकता है-
- जब माल नष्ट होने वाला है।
- जब माल की पुन: बिक्री का अधिकार उसने अपने पास सुरक्षित रखा हो।
- जब विक्रेता पूर्वाधिकार अथवा मार्ग में माल रोकने के अधिकार का उपयोग करते हुए क्रेता को पुनः बिक्री की सूचना दे।
(ii) क्रेता के विरुद्ध अधिकार- अदत्त विक्रेता को क्रेता के विरुद्ध निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं-
1. मूल्य के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार – अदत्त विक्रेता मूल्य न मिलने पर क्रेता पर मूल्य के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है चाहे वस्तु में निहित स्वामित्व हस्तान्तरित हुआ है अथवा नहीं।
2. क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार- सुपुर्दगी स्वीकार करने, मूल्य के भुगतान न करने अथवा क्रेता के अन्य कोई दोषपूर्ण कार्य से, यदि अदत्त विक्रेता को कोई हानि उठानी पड़ती है, तो वह ऐसी क्षतिपूर्ति के लिए बाद प्रस्तुत कर सकता है। (धारा 56)
3. अनुबन्ध को रद्द करने का अधिकार- जब क्रेता सुपुर्दगी की तिथि से पूर्व ही अनुबन्ध को रद्द कर देता है, तो विक्रेता या तो अनुबन्ध की सुपुर्दगी की तिथि तक प्रतीक्षा कर सकता है या अनुबन्ध को रद्द मानकर क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है। (धारा 60)
ब्याज के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार-
धारा 61 के अनुसार, निम्न परिस्थितियों में विक्रेता क्रेता से व्याज वसूल कर सकता है-
- जब उनमें ब्याज के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट अनुबन्ध हो ।
- अनुबन्ध के अभाव में जब विक्रेता ने ऐसा करने की सूचना क्रेता को दे दी हो।
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