अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक
अधिगम जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति के जीवन में अनेक तत्व या कारक ऐसे है जो उसके अधिगम पर प्रभाव डालते हैं। इन कारकों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में अध्ययन कर सकते हैं-
(1) परिपक्वता:- परिपक्वता एक विकासात्मक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति समयानुसार भिन्न-भिन्न लक्ष्य प्रदर्शित करता है। व्यक्ति समयानुसार शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होता रहता है। परिपक्वता के आधार पर उसके व्यवहार में परिवर्तन होता रहता है। व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से जितना परिपक्व होता है वह उतना ही सीखने में सफलता प्राप्त करता है।
(2) अभिप्रेरणा :- अभिप्रेरणा का सीधा संबंध अधिगम से होता है। व्यक्ति को किसी कार्य हेतु जितनी अधिक अभिप्रेरणा दी जाती है वह उसे उतना ही अधिक एवं शीघ्र तथा स्थायी रूप से सीखता है। अभिप्रेरणा व्यक्ति को कई प्रकार से दी जा सकती है। जैसे पुरस्कार के द्वारा प्रोत्साहन प्रदान करना अभिप्रेरणा के द्वारा व्यक्ति में किसी कार्य को करने की रूचि एवं महत्वकांक्षा उत्पन्न करती है।
(3) वातावरण :- वातावरण के द्वारा भी अधिगम प्रभावित होता है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार का वातावरण शामिल है जैसे आर्थिक वातावरण, सामाजिक वातावरण, प्राकृतिक वातावरण आदि जिस स्थान पर रहकर बालक सीखता है उसके शुद्ध साफ एवं प्रकाशयुक्त होने पर बालक अच्छी तरह से सीख सकता है। इसी प्रकार घर, परिवार, समाज एवं विद्यालय में यदि बालक को उपयुक्त वातावरण मिले तो बालक को सीखने में अधिक रूचि होगी और वह उचित रूप से सीखता है।
(4) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यः- व्यक्ति के अधिगम पर उसके शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है तो उसमें अनेक प्रकार की दुर्बलता, कुंठा आदि उत्पन्न होगी इससे अधिक अधिगम में रूचि और इच्छा नहीं होगी और वह उचित रूप से नहीं सीख पायेगा।
( 5 ) थकान:- थकान अधिगम में कमी लाती है। थकान दो प्रकार की होती है- शारीरिक एवं मानसिक थकान। शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने अथवा अधिक शारीरिक श्रम कर लेने पर व्यक्ति शारीरिक रूप से थकान अनुभव करने लगता है। शारीरिक अथवा मानसिक अस्वस्थता का प्रभाव मानसिक थकान पर भी स्पष्ट रूप से पड़ता है। यदि व्यक्ति अधिक मानसिक कार्य कर लेता है तो भी वह थकान अनुभव करने लगता है। व्यक्ति में थकान होने पर उसकी अधिगम क्षमता और गति में कमी आ जाती है।
( 6 ) दुर्बलता:- किसी व्यक्ति के दुर्बलता से पीड़ित होने पर वह किसी कार्य को करने में अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता। इस प्रकार यह माना जाता है कि दुर्बलता कार्य में रूकावट डालती है और छात्र में सीखने की प्रवृत्ति को कम करती है। कभी-कभी यह दुर्बलता अपना सकारात्मक असर भी दिखाती है वह छात्र को अधिक गति और तीव्रता के साथ सीखने के लिए भी प्रेरित करती है।
(7) इच्छा शक्ति:- व्यक्ति की किसी बात को सीखने की इच्छा शक्ति भी उसके सीखने को प्रभावित करती है। यदि व्यक्ति पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ किसी बात को सीखने का प्रयत्न करता है तो वह अधिक गति और स्थायी रूप से इस बात को सीख सकता है। यदि बालक किसी ज्ञान को सीखना ही न चाहे तो जबरदस्ती सिखाने पर भी वह उस ज्ञान को सीख नहीं सकता।
( 8 ) अभ्यासः- थार्नडाइक ने बताया है कि किसी कार्य को अभ्यास करने पर उसे सीखा जा सकता है। कक्षा अध्ययन में कई विषय ऐसे होते है जिनको सीखने के लिए अभ्यास आवश्यक होता है। तथापि अत्यधिक अभ्यास कार्य करने से बालक में होता रहता है। व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से जितना परिपक्व होता है वह उतना ही सीखने में सफलता प्राप्त करता है।
( 2 ) अभिप्रेरणा :- अभिप्रेरणा का सीधा संबंध अधिगम से होता है। व्यक्ति को किसी कार्य हेतु जितनी अधिक अभिप्रेरणा दी जाती है वह उसे उतना ही अधिक एवं शीघ्र तथा स्थायी रूप से सीखता है। अभिप्रेरणा व्यक्ति को कई प्रकार से दी जा सकती है। जैसे पुरस्कार के द्वारा प्रोत्साहन प्रदान करना अभिप्रेरणा के द्वारा व्यक्ति में किसी कार्य को करने की रूचि एवं महत्वकांक्षा उत्पन्न करती है।
( 3 ) वातावरण :- वातावरण के द्वारा भी अधिगम प्रभावित होता है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार का वातावरण शामिल है जैसे आर्थिक वातावरण, सामाजिक वातावरण, प्राकृतिक वातावरण आदि जिस स्थान पर रहकर बालक सीखता है उसके शुद्ध साफ एवं प्रकाशयुक्त होने पर बालक अच्छी तरह से सीख सकता है। इसी प्रकार घर, परिवार, समाज एवं विद्यालय में यदि बालक को उपयुक्त वातावरण मिले तो बालक को सीखने में अधिक रूचि होगी और वह उचित रूप से सीखता है।
(4) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्यः- व्यक्ति के अधिगम पर उसके शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है तो उसमें अनेक प्रकार की दुर्बलता, कुंठा आदि उत्पन्न होगी इससे अधिक अधिगम में रूचि और इच्छा नहीं होगी और वह उचित रूप से नहीं सीख पायेगा।
( 5 ) थकान:- थकान अधिगम में कमी लाती है। थकान दो प्रकार की होती है- शारीरिक एवं मानसिक थकान। शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने अथवा अधिक शारीरिक श्रम कर लेने पर व्यक्ति शारीरिक रूप से थकान अनुभव करने लगता है। शारीरिक अथवा मानसिक अस्वस्थता का प्रभाव मानसिक थकान पर भी स्पष्ट रूप से पड़ता है। यदि व्यक्ति अधिक मानसिक कार्य कर लेता है तो भी वह थकान अनुभव करने लगता है। व्यक्ति में थकान होने पर उसकी अधिगम क्षमता और गति में कमी आ जाती है।
( 6 ) दुर्बलता:- किसी व्यक्ति के दुर्बलता से पीड़ित होने पर वह किसी कार्य को करने में अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता। इस प्रकार यह माना जाता है कि दुर्बलता कार्य में रूकावट डालती है और छात्र में सीखने की प्रवृत्ति को कम करती है। कभी-कभी यह दुर्बलता अपना सकारात्मक असर भी दिखाती है वह छात्र को अधिक गति और तीव्रता के साथ सीखने के लिए भी प्रेरित करती है।
(7) इच्छा शक्ति:- व्यक्ति की किसी बात को सीखने की इच्छा शक्ति भी उसके सीखने को प्रभावित करती है। यदि व्यक्ति पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ किसी बात को सीखने का प्रयत्न करता है तो वह अधिक गति और स्थायी रूप से इस बात को सीख सकता है। यदि बालक किसी ज्ञान को सीखना ही न चाहे तो जबरदस्ती सिखाने पर भी वह उस ज्ञान को सीख नहीं सकता।
( 8 ) अभ्यासः- थार्नडाइक ने बताया है कि किसी कार्य को अभ्यास करने पर उसे सीखा जा सकता है। कक्षा अध्ययन में कई विषय ऐसे होते है जिनको सीखने के लिए अभ्यास आवश्यक होता है। तथापि अत्यधिक अभ्यास कार्य करने से बालक में रूचि भी कम होने लगती है। क्योंकि एक ही कार्य को करते-करते बालक उससे ऊब जाता है अतः उचित रूप में अधिगम के लिए आवश्यक है कि अभ्यास कार्य उचित रूप से हो ।
( 9 ) अधिगम विधि:- प्रत्येक कार्य को सीखने की अलग-अलग विधि होती हैं। उचित विधि के प्रयोग से व्यक्ति उचित रूप से अधिगम कर सकता है। किसी कार्य को सैद्धान्तिक रूप से अध्ययन करके ही सीखा जा सकता है। किसी कार्य को व्यावहारिक रूप में ही करने पर सीखा जा सकता है। उदाहरण के लिए स्कूटर चलाना। इसी प्रकार अध्ययन के लिए, विभिन्न विषयों की पाठ्यक्रम को समझने के लिए भिन्न-भिन्न विधियों को सीखा जा सकता है।
(10) पुरस्कारों का प्रभाव:- अधिगम प्रक्रिया पर पुरस्कार के प्रभाव को अध्ययन करने के लिए मनोवैज्ञानिक ने एक ही आयु तथा वृद्धि के 16 बच्चों पर एक प्रयोग किया। उन्होंने उन बच्चों को तीन दलों में बाँट लिया और भूल-भूलैया में पहुँचने की क्रिया को सिखाने के लिए पुरस्कार द्वारा प्रेरित किया। प्रथम दल को भूल-भूलैया से उचित पथ से जाने पर किसी भी प्रकार का पुरस्कार नहीं दिया गया। द्वितीय दल को कुछ पैसे दिये गये तथा तृतीय दल को शाबाशी एवं वाह-वाह आदि के द्वारा प्रोत्साहन दिया गया मनोवैज्ञानिक ने इस प्रयोग में यह पाया कि जिन दलों को पैसे तथा प्रशंसा आदि का पुरस्कार प्राप्त हुआ उन दलों ने सीखने की प्रक्रिया को जल्दी अंगीकार किया। जिन दलों को किसी भी प्रकार का पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ उनमें सीखने की प्रक्रिया धीमी रही थी। इस प्रयोग के आधार पर मनोवैज्ञानिक ने यह निष्कर्ष निकाला कि सीखने की क्रिया पर पुरस्कार तथा पुरस्कार स्वरूप दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
(11) स्पर्द्धा और सम्मान:- स्पर्द्धा और सम्मान से सीखने की क्रिया की गति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। जब किसी कार्य को करने में होड़ लग जाती है और इस कार्य के पूरा हो जाने पर समाज से सम्मान प्राप्त होने की आशा होती है तो व्यक्ति उस कार्य को करने की भरपूर प्रयास करता है। इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों ने जो प्रयोग किये गये उनके आधार पर-
- स्पर्द्धा से प्रेरित व्यक्तियों की सीखने की गति स्पर्द्धा रहित व्यक्तियों के सीखने की गति तीव्र होती है।
- स्पर्द्धा से प्रेरित व्यक्तियों के सीखने के कार्य स्पर्द्धा रहित व्यक्ति के सीखने के कार्यों में अधिक यथार्थ होते हैं।
- स्पर्द्धा से प्रेरित व्यक्ति स्पर्द्धा रहित व्यक्तियों की अपेक्षा निश्चित समय के अन्दर आर्थिक समस्याओं के समाधान करने में समर्थ हो जाते हैं। उक्त निष्कर्ष प्राप्त हुए। अतः स्पष्ट है कि अधिगम पर प्रेरणा का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
(12) अध्यापक से सम्बन्धित तथ्यः- छात्रों के अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। उसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यवहार छात्रों के अधिगम पर प्रभाव डालता है अध्यापक का व्यक्तित्व, उनकी योग्यता, उसके पढ़ाने की विधि, व्यवहार और उसके गुणों की छात्र-छात्राओं की रूचि को प्रभावित करती है।
(13) शिक्षा पद्धतिः- अधिगम का सम्बन्ध अध्यापक द्वारा कक्षा में अपनाई गई शिक्षा पद्धति से होता है। शिक्षण पद्धति सिखने की प्रक्रिया को प्रभावित करती है। यदि शिक्षण कार्य मनोवैज्ञानिक तरीकों से किया जाता तो अधिगम सरल हो जाता है।
(14) सफलता का ज्ञान:- विद्यालय अथवा शिक्षक का यह दायित्व है कि छात्र का समय पर मूल्यांकन कर उसे उसकी अथवा असफलता की जानकारी देता रहे।
( 15 ) आयुः- सीखने की आयु 8 से 18 वर्ष के मध्य मानी जाती है। इस आयु वर्ग में बालक सर्वाधिक उन्नति करता है। छोटी आयु के बालक प्रौढ़ों की अपेक्षा शीघ्र सीख जाते हैं। इस आयु में लगन, क्रियाशीलता, सीखने की इच्छा आदि प्रबल होती है तथा बालक निश्चिन्त रहता है।
(16) सीखने का समय:- अधिगम का सम्बन्ध समय से भी है। सीखने के लिए प्रातः कालीन समय सर्वोत्तम रहता है। प्रातः काल का समय शीतल और शांत रहता है। थकान नाममात्र की भी अनुभव नहीं होती तत्पश्चात जैसे-जैसे दिन बढ़ता है वातावरण व थकान के कारण अधिगम की प्रक्रिया कठिन होने लगती है, कार्य के प्रति रूचि का अभाव सा होने लगता है तथा निष्क्रियता बढ़ती जाती है अतः विद्यालय में सीखने के समय का भी ध्यान रखना चाहिए।
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